Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८७६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
त्रियावाच
सोरठा जंबूसर बड़भाग, धनि तेरे माता पिता । जन्मत ही जग त्याग, छाड लग्यो पर ब्रह्म सं ॥४८॥ द्रव्य लैण कुं चोर, बांधी पोटज परीति करि । ज्ञान भयौ तिहि ठौर, जंबूसर को ज्ञान सुणि ॥१६॥ अष्ट नारि इह ज्ञान, सुणत ही सांसो सब गयौ। चोर भयो गलतान, शीलवान का शब्द सुनि ॥५०॥ सुणत त्रास ज्यूं नरक की, मन में उपजी एह । शील न कबहू त्यागिए, भावे जावो देह ॥५१॥
दोहा भाग विना पावै नहीं, सील पदारथ सोइ । जो त्यागे या सीलकु, तो नरक प्रापति होइ ॥५२॥
कुण्डलिया जो कोई त्याग सील , सो पावै नरक अघोर । अपकीरति होइ जगत में, भक्ति मांहि नहिं ठौर । भगत मांहि नहिं ठौर, और कहा कहीए भाई। लहै विपति भरपूर, नूर मुख चढे न कोई । देवा सदा फिरि तासक, जम मारै करि जोर ।। जो कोई त्यागै सीलकु सो पावै नरक अघोर ।।५३।।
॥ इति जंबूसर को प्रसंग संपूर्ण ।।
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