Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८७८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
तो की ही थी. साथ-साथ यह भी बतलाया गया है कि हनुमान श्रीपुर के राजा बनाये गये थे जो श्रीपर्वत की उपत्यका में बसा हुआ था. हनुमान का अपर नाम श्रीशैल भी है [पउम० १८, ४६, ५५, १६, ८५, २६]. इस प्रकार बार-बार श्रीपर्वत का उल्लेख हमें पुराणों के उन श्रीपर्वतीय प्रान्ध्रों की याद दिलाता है जो इतिहास में दक्षिण आन्ध्रदेश के इक्ष्वाकु राजवंश के नाम से प्रसिद्ध हैं. इस वंश के राजाओं का काल तृतीय ई० शताब्दी माना गया है. ' लवण और अंकुश अपनी दिग्विजय में अनेक राज्यों को अपने अधीन करते हैं. उन राज्यों में आनन्द लोगों और अनके राज्य का भी उल्लेख है [ पउम० ६८, ६६ ]. भारतीय इतिहास स्पष्ट बतलाता है कि आनन्द राजवंश का उद्भव ईसा की चतुर्थ शताब्दी में हुआ था और उनके राज्य का क्षेत्र गुण्टूर प्रदेश था. बृहत्फलायन आनन्दों के पूर्ववर्ती शासक थे. इस प्रकार स्पष्ट है कि विमलसूरि चौथी शताब्दी तक के राजवंशों व राज्यों से परिचित थे. पउमचरिय में तीन ऐसी राजनैतिक घटनाएँ हैं जिनका भारतीय इतिहास से सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है. ये संघर्ष बिम्ब प्रतिबिम्ब रूप में पूर्ण सादृश्य तो नहीं रखते फिर भी उस काल की राजनैतिक हलचल की झलक पउमचरियं की घटनाओं में दृष्टिगोचर होती है. पउमचरियं के अनुसार नर्मदा के दक्षिण में विन्ध्याटवी के क्षेत्र पर कागोनन्द जाति का अधिकार था. उस जाति के नेता रुद्रभूति ने कुववद्दपुर के शासक बालिखिल्य का अपहरण कर उसको बन्दी बना लिया. वह उसके राज्य से धमकी पूर्वक द्रव्य उपार्जित करता था. बालिखिल्य के मंत्री ने उज्जैनी के राजा सिंहोदर से सहायता मांगी परन्तु उसने बालिखिल्य को मुक्त करवाने में अपनी असमर्थता प्रकट की. राम-लक्ष्मण कुववद्दपुर आये तब उन्होंने अपनी सहायता का बचन दिया. वे वहाँ से आगे बढ़े. विन्ध्याटवी में पहुँच कर उन्होंने रुद्रभूति को परास्त किया और बालिखिल्य को उसके पंजे से छुड़वाया. इस सम्बन्ध में द्वितीयार्धं शताब्दी के भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध उज्जैनी के महक्षत्रप रुद्रसिंह प्रथम, आभीर सेनानायक रुद्रभूति तथा एक अन्य आभीरनेता ईश्वरदत्त से मेल बिठाया जा सकता है. रुद्रभूति ने आभीरों की तरफ से जीवदामन को गद्दी से हटाने और रुद्रसिंह को महाक्षत्रप बनाने में भरपूर सहायता की थी. ईश्वरदत्त ने कुछ समय पश्चात् नासिक में अपना अलग राज्य स्थापित किया और रुद्रसिंह को हटाकर स्वयं ही उज्जैनी का महाक्षत्रप बन बैठा. परन्तु दो ही वर्ष के बाद रुद्रसिंह ने अपना पूर्व अधिकार वापिस प्राप्त कर लिया. इन दोनों वृत्तान्तों में रुद्रभूति समान है. पउमचरियं में सिंहोदर का नाम है व इतिहास में रुद्रसिंह का यह अन्तर सिर्फ प्रथम दो वर्णों के हेर-फेर का है. सिंहोदर ने रुद्रभूति के विरोध में कदम उठाने में आनाकानी की थी. कारण स्पष्ट है कि रुद्रभूति ने ही रुद्रसिंह को महाक्षत्रप बनाया था. ईश्वरदत्त के नासिक के आभीर राज्य का कागोनन्द जाति के अधीनस्थ नर्मदा से दक्षिण की ओर के क्षेत्र के साथ सम्बन्ध स्थापित किया जा सकता है.
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दूसरी घटना इस प्रकार है. दशपुर [ मण्डसौर ] का राजा वज्रकर्ण उज्जैन के राजा सिंहोदर के अधीन था. चूंकि वह स्वतन्त्र बनना चाहता था, इसलिए उज्जैनी के साथ एक भृत्य की तरह व्यवहार करने में आपत्ति करता था. इस पर सिंहोदर ने वज्रकर्ण पर आक्रमण किया और उसको बन्दी बना लिया. राम और लक्ष्मण को दशपुर पहुँचने पर वज्रकर्ण की दयनीय दशा का पता लगा. उन्होंने सिंहोदर को ललकारा और वज्रकर्ण को उससे मुक्त कराया. साथ ही सिंहोदर का कुछ राज्य भी वज्रकर्ण को दिलवा दिया. यह घटना दशपुर की स्वाधीनता की ओर संकेत करती है. दशपुर की ऐतिहासिक जानकारी इस प्रकार प्राप्त होती है. नासिक के नहपान के शिलालेखों में दशपुर का एक तीर्थ की तरह उल्लेख है, उसका कोई खास राजनैतिक महत्त्व नहीं है. गुप्तकाल में ही दशपुर राजनैतिक धरातल पर आता है. जयवर्मा, सिंहवर्मा, और विश्ववर्मा वहाँ के उत्तरोत्तर स्वाधीन राजा थे. तत्पश्चात् विश्ववर्मा के पुत्र राजा बन्धुवर्मा ने कुमारगुप्त प्रथम [ ४१४-४५४ ई०] का
१. वही पृ० ५६-३०.
२. कृष्णराव - वही पृ० २१५, २३३, ३३६.
३. पउमचरियं, ३४. २५-४६.
४. डा० अल्टेकर - वही, पृ० ५४.
५. पउमचरियं, अ०. ३३.
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