Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३७८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय परस्पर सम्बद्ध हो जाते हैं तब वे स्कन्ध कहलाने लगते हैं. स्कन्ध का खण्ड भी स्कन्ध कहलाता है.' स्कन्धदेश-स्कन्ध का कोई भी अंश या खण्ड (part) जो अपने अंगी से पृथग्भूत न हो, स्कन्धदेश कहा जाता है.२ स्कन्धप्रदेश-स्कन्ध या स्कन्धदेश का एक परमाणु जो अपने अंगी से पृथग्भूत न हो, स्कन्धप्रदेश कहलाता है. अथवा पुद्गल के परमाणु और स्कन्ध के रूप में दो भेद होते हैं लेकिन ग्राह्य और अग्राह्य के रूप में भी दो भेद सम्भव हैं. ग्राह्य पुद्गल-पुद्गल के जो परमाणु जीव द्रव्य से संयुक्त होते हैं उन्हें ग्राह्य कहा जाता है. इन्हें हम कार्मण आदि वर्गणा भी कह सकते हैं. अग्राह्य पुद्गल-ग्राह्य पुद्गलों के अतिरिक्त शेष सभी अग्राह्य हैं, उन्हें जीव ग्रहण नहीं करता, जीव से उनका संयोग नहीं होता. तीन भेद-पुद्गल द्रव्य परिणमनशील है. उसमें परिणमन स्वयमेव तो होता ही है, जीव के संयोग से भी होता है, इसी दृष्टि को लेकर उसके तीन भेद सम्भव हैं.४ प्रयोग-परिणत (Organic matter)—ऐसे पुद्गलों को प्रयोग-परिणत कहते हैं जिन्होंने जीव के संयोग से अपना परिणमन किया है. विस्रसा-परिणत (Inorganic matter)-विस्रसा-परिणत ऐसे पुद्गलों को कहते हैं जो अपना परिणमन स्वतः किया करते हों, जीव का संयोग ही जिनसे कभी न हुआ हो. मिश्र-परिणतये वे पुद्गल हैं जिनका परिणमन जीव के संयोग से और स्वयमेव, दोनों प्रकार से एक-ही-साथ रहा होता है. मिश्र-परिणत पुद्गल उन्हें भी कहा जा सकता है जिनका परिणमन कभी जीव के संयोग से हुआ हो लेकिन अब किन्हीं कारणों से जो स्वयमेव अपना परिणमन कर रहे हैं.
चार भेद पुद्गल के चार भेद किसी विशिष्ट दृष्टि से नहीं होते, स्कन्ध के तीन भेद जिनका अध्ययन हमने अभी-अभी किया है. और परमाणु का एक भेद मिलकर पुद्गल के चार भेद कहलाने लगते हैं. ५
छह भेद
परमाणु और स्कन्ध के रूप में हमने पुद्गल का अध्ययन किया, और हम देखेंगे कि उसका अध्ययन छह भेदों के रूप में भी हो सकता है. ये छहों भेद स्कन्ध को दृष्टि में रखते हुए किये गये हैं.
१. भेदसवातेभ्य उत्पद्यन्ते । -आचार्य उमास्वामी : तत्त्वार्थसूत्र, अ०५, सू० २६. २. वस्तुनो पृथग्भूतो बुद्धिकल्पितोऽशो देश उच्यते । -जैनसिद्धान्तदीपिका, प्र०१, सु० २२. ३. निरंशो देशः प्रदेशः कथ्यते । -वही, प्र०१, नु० २३. ४. तिबिहा पोग्गला पण्णत्ता, पोगपरिणया, वोससापरिणया, मोसापरिणया। -भगवतीसूत्र, ८।११. ५. जे रूवी ते चउबिहा परणत्ता, खंधा, खंधदेसा, खंधपदेसा, परमाणुपोग्गला । ---वही, २२१०६६. ६. (१) बादरबादर-बादर-बादरसुहुमं च सुहुमथूलं च ।
सुदुभं च सुहुमं सुहुमं धरादियं होदि छम्मेयं । -नेभिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती : गोम्मटसार, जोवकाण्ड गा० ६०२. (२) अश्थूलथूल-थूलं थूलसुहुमं च सुहुमथूलं च।
सुहुमं अइमुहुमं इदि धरादियं होदि छब्भेयं । भूपब्बदमादोया भणिदा अइथूलथूलमिदि खंधा । थूला इदि विएणेया सप्पोजलतेलमादीया ।
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