Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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डॉ. राजकुमार जैन : वृषभदेव तथा शिव-संबंधी प्राच्य मान्यताएं : ६१७ देव के ही विशेषण उल्लिखित किये गये हैं और 'वृषभदेव तथा वैदिक अग्निदेव' में उपस्थित किये गये विवरण से स्पष्ट है कि भगवान् वृषभदेव को ही वैदिक काल में अग्निदेव के नाम से अभिहित किया जाता था. फलतः रुद्र, महादेव, अग्निदेव, पशुपति आदि वृषभदेव के ही नामान्तर हैं.
वैदिक परम्परा में वैदिक रुद्र को ही पौराणिक तथा आधुनिक शिव का विकसित रूप माना जाता है, जब कि जैन परम्परा में भगवान् ऋषभदेव को ही शिव, उनके मोक्ष-मार्ग को शिवमार्ग तथा मोक्ष को शिवगति कहा गया है. यहाँ रुद्र के उन समस्त क्रम-विकसित रूपों का एक संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है.
ऋग्देव में रुद्र मध्यम श्रेणी के देवता हैं. उनकी स्तुति में तीन पूर्ण सूक्त कहे गये हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य सूक्त में पहले मन्त्र छह रुद्र की स्तुति में हैं और अन्तिम तीन सोम की स्तुति में. एक अन्य सूक्त में रुद्र और सोम का साथ स्तवन किया गया है. अन्य देवताओं की स्तुति में भी जो सूक्त कहे गये हैं, उनमें भी प्रायः रुद्र का उल्लेख मिलता है, इन सूक्तों में रुद्र के जिस स्वरूप की वर्णना हुई है, उसके अनेक चित्र हैं और उनके विभिन्न प्रतीकों के सम्बन्ध में विद्वानों की विभिन्न मान्यताएँ हैं. रुद्र का शाब्दिक अर्थ, मरुतों के साथ उनका संगमन, उनका बभ्र वर्ण और सामान्यतः उनका क्रूर स्वरूप इन सब को दृष्टि में रखते हुए कुछ विद्वानों की धारणा है कि रुद्र झझावात के प्रतीक हैं. जर्मन विद्वान् वेबर ने रुद्र के नामपर बल देते हुए अनुमानित किया है कि रुद्र झंझावात के 'रव' का प्रतीक है.४ डाक्टर मेकडौनल ने रुद्र और अग्नि के साम्य पर दृष्टि रखते हुए कहा कि रुद्र विशुद्ध झंझावात का नहीं, अपितु विनाशकारी विद्युत के रूप में झंझावात के विध्वंसक स्वरूप का प्रतीक है.५ श्री भाण्डारकर ने भी रुद्र को प्रकृति की विनाशकारी शक्तियों का ही प्रतीक माना है. अंग्रेज विद्वान् म्यूर की भी यही मान्यता है. विल्सन ने ऋग्वेद की भूमिका में रुद्र को अग्नि अथवा इन्द्र का ही प्रतीक माना है. प्रो० कीथ ने रुद्र को झंझावात के विनाशकारी रूप का ही प्रतीक माना है, उसके हितकर रूप का नहीं. इसके अतिरिक्त रुद्र के घातक वाणों का स्मरण करते हुए कुछ विद्वानों ने उन्हें मृत्यु का देवता भी माना है और इसके समर्थन में उन्होंने ऋग्वेद का बह सूक्त प्रस्तुत किया है, जिसमें रुद्र का केशियों के साथ उल्लेख किया गया है. रूद्र की एक उपाधि 'कपदिन्' है, जिसका अर्थ है, जटाजूटधारी और एक अन्य उपाधि है 'कल्पलीकिन',११ जिसका अर्थ है, दहकनेवाला. दोनों की सार्थकता रुद्र के केशी तथा अग्निदेव रूप में हो जाती है.
अपने सौम्य रूपों में रुद्र को 'महाभिषक्' बतलाया गया है, जिसकी औषधियां ठंडी और व्याधिनाशक होती हैं. रुद्र सूक्त में रुद्र का सर्वज्ञ वृषभ रूप से उल्लेख किया गया है और कहा गया है.२ 'हे विशुद्ध दीप्तिमान सर्वज्ञ वृषभ, हमारे ऊपर ऐसी कृपा करो कि हम कभी नष्ट न हों."
१. ऋग्वेद : १,११४; २, ३३७, ४६. २. ऋग्देव १,४३. ३. वही : ६, ७४ ४. वेबर : इगदीश स्टूडीन, २,१६-२२. ५. मेकडौनल : वेदिक मायीथोलोजी, पृष्ठ सं० ७८, ६. भाण्डारकर : वैष्णविज्म, शैविज्म. ७. म्यूर : ओरिजिनल संस्कृत टेक्स्ट स. ८. विल्सन : ऋग्वेद, भूमिका है. कीथ : रिलिजन एण्ड माइथोलोजी आफ दी ऋग्वेद, पृष्ठ सं० १४७. १०. ऋग्वेद : १,११४,१ और ५. ११. वही: १,११४५. १२. एव वभ्रो वृषभ चेकितान यथा देव न हृषीपं न हंसि. ऋग्वेद : २, ३३, १५.
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