Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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डॉ. राजकुमार जैन : वृषभदेव तथा शिव-संबंधी प्राच्य मान्यताएँ : ६२१ सामान्यतः ईश, महेश्वर, शिव और ईशान कहा गया है.' वह मोक्षाभिलाषी योगियों के ध्यान के विषय हैं और उनको एक स्रष्टा, ब्रह्म और परमात्मा माना गया है. इस काल में वह केवल जन सामान्य के ही देवता नहीं थे. अपितु आर्यों के सबसे प्रगतिशील वर्गों के आराध्य देव भी बन चुके थे. इस रूप में उनका सम्बन्ध, दार्शनिक विचारधारा और योगाभ्यास के साथ हो गया था, जिसको उपनिषद् के ऋषियों ने आध्यात्मिक उन्नति का एक मात्र साधन माना था. अपर वैदिक काल में योगी, चिन्तक और शिक्षक के रूप में जो शिव की कल्पना की गई है, वह भी इसी सम्बन्ध के कारण थी. श्वेताश्वतर उपनिषद् में रुद्र को ईश, शिव और पुरुष कहा गया है. लिखा है कि प्रकृति, पुरुष अथवा परब्रह्म की शक्ति है, जिसके द्वारा वह विविध रूप विश्व की सृष्टि करता है. पुरुष स्वयं स्रष्टा नहीं, अपितु एक बार प्रकृति को क्रियाशील बनाकर वह अलग हो जाता है और केवल प्रेक्षक के रूप में काम करता है. इससे ज्ञात होता है कि इस समय तक रुद्र उन लोगों के आराध्य देव बन गये थे जो सांख्य विचार-धारा का विकास कर रहे थे. प्रश्नोपनिषद् में रुद्र को परिरक्षिता कहा गया है और प्रजापति से उसका तादात्म्य प्रकट किया गया है.५ मैत्रायणी उपनिषद् में रुद्र की 'शम्भु' [अर्थात् शान्तिदाता] उपाधि का पहली बार उल्लेख हुआ.६ श्रोत-सूत्रों में रुद्र की उपासना का वही स्वरूप उपलब्ध होता है जैसा ब्राह्मण ग्रंथों में. यहाँ रुद्र का रूप केवल एक देवता का है और उनके रुद्र , भव, शर्व आदि अनेक नामों का उल्लेख है. महादेव, पशुपति, भूतपति आदि उपाधियों से भी विभूषित किया गया है.८ रुद्र से मनुष्यों और पशुओं की रक्षा के लिये प्रार्थना की गई है. उन्हें रोगनाशक औषधियों का दाता और व्याधिनिवारक' कहा गया है. गृह्य सूत्रों में रुद्र की समस्त वैदिक उपाधियों का उल्लेख मिलता है,१२ यद्यपि इनके 'शिव' और शंकर ये नवीन नाम अधिक प्रचलित होते जा रहे हैं.१३ यहाँ उन्हें श्मशानों, पुण्यतीर्थों एवं चौराहों जैसे स्थलों में एकान्त विहारी के रूप में चित्रित किया गया है.१४ सिन्धु घाटी के निवासियों का वैदिक आर्यों के साथ संमिश्रण हो जाने पर रुद्र ने सिन्धु घाटी के पुरुष देवता को आत्मसात् कर लिया. इसके फलस्वरूप सिन्धु घाटी की स्त्री देवता का रुद्र की पूर्वसहचरी अम्बिका के साथ तादात्म्य हो गया और उसे रुद्रपत्नी माना जाने लगा. इस प्रकार भारतवर्ष में देवी की उपासना आई और शक्तिमत का सूत्रपात हुआ. इसके अतिरिक्त जननेन्द्रिय सम्बन्धी प्रतीकों की उपासना, जो सिन्धुघाटी के देवताओं की उपासना का एक अंग थी, का भी रुद्र की उपासना में समावेश हो गया. इसके अतिरिक्त 'लिंग' रुद्र का एक विशिष्ट प्रतीक माना जाने लगा और इसी कारण उसकी उपासना भी प्रारम्भ हो गई. परन्तु धीरे-धीरे लोग यह भूल गये कि प्रारम्भ में यह एक जननेन्द्रिय सम्बन्धी प्रतीक था. इस प्रकार भारत में लिंगोपासना का प्रादुर्भाव हुआ, जो शैव
१. श्वेताश्वतर उपनिषद् ३-११-४-१०-४, ११, ५,१६. २. वही:३,२-४,३,७,४,१०-२४. ३. श्वेताश्वतर उपनिषद् ४,१. ४. वहीः ४, ५. ५. प्रश्नोपनिषद् २,६. ६. मैत्रायणी उपनिषद् १५, ८. ७. शांखायन श्रौतसूत्र : ४, १६, १. ८. वही : ४, २०, १४. है. वही: ४, २०,१.आश्वलायनः ३,११,१. १०. लाणयन श्रौतसूत्रः ५, ३, २. ११. शांखायन श्रौतसूत्रः ३, ४, ८. १२. आश्वलायन गृह्यसूत्रः ४,१०. १३. वहीः २,१,२. १४. मानवगृह्यसूत्र २, १३, ६, १४.
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