Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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पं० अंबालाल प्रेमचन्द शाह : जैनशास्त्र और मंत्रविद्या : ७७५
इसके सिवाय इंद्रियों पर काबू प्राप्त करने की शक्ति - ब्रह्मचर्य, मिताहार, मौन, श्रद्धा, दया, दाक्षिण्य आदि गुणों की आवश्यकता पर भार दिया गया है.
इसके पीछे मंत्रसाधक को साधनासमय में नीचे बताई हुई प्रक्रिया में से पार होना चाहिये.
१ योग, २ उपदेश, ३ देवता, ४ सकलीकरण, ५ उपचार, ६ जप, ७ होम-उसमें जप करनेवाले को १ दिशा, २ काल, ३ मुद्रा, ४ आसन, ५ पल्लव, ६ मंडल, ७ शान्ति आदि कर्मों के प्रकार जानकर जप और होम करना चाहिए.
१. योग-मंत्र के आदि अक्षर के साथ नक्षत्र, तारा, और राशि की अनुकूलता ज्योतिःशास्त्र के साथ मिलान करे. यदि किसी प्रकार का विरोध न हो तो ही मंत्र सिद्ध होता है.
इसी प्रकार साध्य आदि भेद को भी चकासने-परखने की आवश्यकता है. साध्य और साधक का यदि मेल न बने तो मंत्र आदि का आराधन करने कराने में अनेक विघ्न उपस्थित होते हैं और अंत में परिणाम अनिष्टकारक बनता है. साध्य आदि भेद चकासने की अनेक रीतियाँ देखने में आती हैं. उनमें से १ भद्रगुप्ताचार्य ने अनुभव सिद्ध मन्त्रद्वा त्रिशिका में जो रीति बतायी है वह इस प्रकार है
'अ इ उ ए ओ' इन पांच स्वरों से आरम्भ कर 'ड ढ ण' वर्णों को छोड़कर पाँच सरीखी पंक्तियों में सर्व मातृकाक्षर लिखें. पीछे साध्य नाम से गिनते हुए साधक का नाम जिस स्थान में आवे उस स्थान का फल देने वाला मंत्र है ऐसा समझना. ये पाँच नाम इस प्रकार हैं
१ साध्य, २ सिद्धि, ३ सुसिद्ध, ४ शत्रुरूप और ५ मृत्युदायी. इन पाँच प्रकारों में से आद्य तीन भेद क्रम से श्रेष्ठ, मध्य और स्वल्प फल देने वाले होने से शिष्य की योग्यता के अनुसार दे सकते हैं, परन्तु अंतिम दो भेद शत्रुरूप और मृत्युदायी होने से किसी को भी देने योग्य नहीं हैं.
उपर्युक्त प्रकारों का 'मातृकाचक्र' इस प्रकार है
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२ उपदेश - मंत्र पढ़ लेने के बाद मात्र जाप करना नहीं चाहिए परन्तु मंत्र और विधि गुरु के पास से जानकर ही, गुरु के मुख से मंत्र पाठ लेकर साधना करनी चाहिए.
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