Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८३० . मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय मिला है जिसके लेखक हैं कविवर वृद के सुपुत्र कवीश्वर वल्लभ. ढाका में इसकी प्रतिलिपि की गई थी. सूचित गुटके में महाराजा राजसिंह की कुमारावस्था में प्रणीत दोहे लिखे हैं जिसके उपरि भाग में इन शब्दों का उल्लेख है “अथ दूहा महाराजि कंवर श्री राजसिंह जी रा कहीया छ." प्रतिलिपिकाल से इतना तो स्पष्ट ही है कि सं० १७६० से पूर्व ही इनने कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था. इनकी रचनाओं के एक बड़े चोपड़े में कुछ कवित्त 'माजि साहिबां रा कहीया छै" माँजी सा० से तात्पर्य इनकी माता से ही होना चाहिए. इनकी रचनाओं का विवरण इस प्रकार है.
श्रीगणेशाय नमः अथ दुहा महाराजीकवार श्रीराजसिंघजी रा कहीया छै---- काम सुभट बादर कहै विरहनि के उर दाह । संनाह बारि लैं सिंधु त भए सेत ते स्याह ।।१।। बूंद बांद घनयंद को चपला कर तरवार । गाज अरावा साथि लैं विरहनिकू सजि मार ।।२।। जगनू चमकत जामगी धूवांधार सौ रात । गाज अरावा छुटि सधन, मार-मार के जात ।।३।। रति मनौंज तुम मैं कहूं पर्यो न अंतर ओट । दुःखदाई जाने कहा मेरे जियकी चोट ॥४।।
x २ बज विलास या रसपायनायक-रसपायनायक इनकी अन्यत्र उल्लिखित कृति है, मेरे संग्रह में इसकी जो प्रति है उसमें प्रारम्भ में तो रसपायनायक नाम आता है पर अन्त भाग में और मध्यवर्ती भाग में कई स्थानों पर इसका नाम 'ब्रजविलास' आया है. अतः जब तक रसपायनायक की अन्य प्रति सम्मुख न हो तब तक निश्चित नहीं कहा जा सकता है कि दोनों कृति एक ही है या भिन्न ? आलोचित कृति तीन भागों में विभक्त है, प्रथम भाग में आवश्यक मंगलाचरण, कविवचन और विवेक-अविवेक के बाद कवि ने रुक्मिणीहरण कथा का विस्तार किया है. इसे इतिहास की संज्ञा से अभिहित किया गया है. दूसरे भाग में नायक और नाइका का वर्णन प्रस्तुत है. तीसरे भाग में अन्य प्रासंगिक विषयों का स्फुट वर्णन है. ग्रंथ में कवि ने अपनी बात के समर्थन के लिए बंद के पुत्र वल्लभ रचित "वल्लभ विलास" के पद्य उद्धृत किये हैं. वल्लभ राजसिंह के समय में अपनी जवानी पर थे. उन दिनों वह ढाका से लौट आये थे. कवि ने इस रचना में इतिहास शब्द को इतना रूढ़ बना दिया है कि सामान्य वर्णन को भी इतिहास की संज्ञा दी गई है. इस कृति का रचनाकाल इन शब्दों में लिखकर बाद में काट दिया है.
सतरासै अरु ठयासियै सुदी दसमी ससिवार ।
चैतमास पुरहुतपुर ग्रंथ लयौ अवतार ।। इस कृति का आदि और अन्त भाग इस प्रकार है.
श्रीगणेशाय नमः
दोहा श्रीगोपाल सहाय हैं महा छैलपति राज । गुर गनपति सरस्वति सुनौं, देहु विद्या वर आज ॥१॥ जातौं हौं चाहत कह्यौ नायक भेद अनूप । ग्रंथ रीति बरनी कबिन यह नायक रस भूप ।।२।।
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