Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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वर्धमान पार्श्वनाथ शास्त्री : कर्नाटक साहित्य की परम्परा : ८५६
है. इसने यशोधरचरित्र को लिख कर अपने रचनाकौशल को व्यक्त किया है. इसका प्रमेय यशस्तिलकचम्पू महाकाव्य का है. कर्नाटकसाहित्य में जन्न की रचना के लिए भी वही स्थान प्राप्त है जो संस्कृत साहित्य में यशस्तिलक चम्पू को है. यह कविचक्रवर्ती उपाधि से विभूषित हुआ है. प्रायः इसी समय हस्तिमल्ल हुआ, वह उभय भाषा कविचक्रवर्ती था, उसने गद्य में आदिपुराण की रचना की है. यह करीब १२६० में हुआ. इसके कुछ संस्कृत ग्रंथ हैं.
अभिनव पम्प नागचन्द्र १२ वें शतमान में नागचन्द्र नामक एक विद्वान् कवि हुआ है जिसने रामायण की रचना की है. जैन परम्परा के उपदेशानुसार निर्मित पउमचरिउ रविषेणकृति पद्मपुराण आदि के अनुसार ही इसने रामायण की रचना की है. इसकी रचना भी सुन्दर हुई है. इसने अपने को अभिनव पम्प के नाम से उल्लेख किया है. इसने विजयपुर में एक मल्लिनाथ के जिनालय का निर्माण कराया, उस की स्मृति में मल्लिनाथपुराण की रचना की है. इसके बाद १४ वें शतक में भास्कर कवि ने जीबंधरचरित का निर्माण किया और कवि बोम्मरस ने सनत्कुमारचरित्र और जीवंधरचरित्र की रचना की है. १६ वें शतक के प्रारम्भ में मंगरस कवि ने सम्यक्त्वकौमुदी, जयनृपकाव्य, नेमिजिनेशसंगति, श्रीपालचरित्र, प्रभंजनचरित
और सूपशास्त्र आदि ग्रंथों की रचना की है. इसी प्रकार साक्वकवि ने भारत और कविदोड्ड ने चन्द्रप्रभचरित्र को इसी समय के लगभग निर्माण किया है.
महाकवि रत्नाकर वर्णी इसके बाद महाकवि रत्नाकर वर्णी का उल्लेख बहुत आदर के साथ साहित्य जगत् में किया जा सकता है. इसने भरतेश्वरवैभव नामक बहुत बड़े आध्यात्मिक सरस ग्रंथ की रचना की है. इसमें करीब १० हजार सांगत्य श्लोक हैं । कवि का वर्णनाचातुर्य, पदलालित्य, भोग-योग का प्रभावक वर्णन उल्लेखनीय है. इस ग्रंथ को कवि ने भोगविजय, दिग्विजय, योगबिजय, मोक्षविजय और अर्ककीति विजय के नाम से पंच कल्याण के रूप में विभक्त किया है. उसका समय क्रि० श. १५५७ का माना जाता है. इस महाकाव्य में कवि ने आदिप्रभु के पुत्र भरतेश्वर को अपना कथानायक चुनकर उसकी दिनचर्या का वृत्त अत्यन्त आकर्षक ढंग से वर्णन किया है. इस काव्य में जैसे अध्यात्म का पराकाष्ठा का वर्णन है. यह महाकाव्य आध्यात्मिक सरस कथा है. लेखक के द्वारा उसका समग्र हिन्दी अनुवाद हो चुका है और उसकी कई आवृत्तियां प्रकाशित हो चुकी हैं. गुजराती, मराठी और अंग्रेजी में भी यह प्रकाशित होने जा रहा है. इसी से इस ग्रंथ की महत्ता समझ में आ सकती है. इस महाकाव्य को भारतीय साहित्य अकादमीने भी प्रकाशित करने का विचार किया है. उसने इस ग्रंथ के अलावा रत्नाकरशतक, अपरजिनशतक और त्रिलोकशतक नामक शतकत्रय ग्रंथ की भी रचना करके आध्यात्मिक जगत् का उपकार किया है. इसके बाद सांगत्य छंद में अनेक कवियोंने ग्रंथरचना की है-बाहुबलि कवि ने (१५६०) नागकुमार चरिते, पायव्णवति ने (१६०६) सम्यक्त्वकौमुदी, पंचबाल ने (१६१४) भुजबलचरित्र की रचना की. इसी प्रकार चन्द्रभ कवि ने (१६४६) कार्कल के गोम्मटेशचरित्र, धरणीपंडित ने (१६५०) विज्जणराम चरित्र, नेमि पंडित ने (१६५०) सुविचारचरित, चिदानंद ने (१६८०) मुनिवंशाभ्युदय, पद्मनाभ ने (१६८०)जिनदत्तरायचरिते, पायण कवि ने (१७५०) रामचन्द्रचरिते, अनंत कवि ने (१७८०) श्रवणवेलगोल के गोम्मटेश चरित्र, धरणी पंडित ने वरांगचरित्र, वहणांव ने जिनभारत, चन्द्र सागर वर्णी ने (१८१०) रामायण की रचना की है. इसी के लगभग चार पंडित ने भव्यजन-चिन्तामणि, और देवचन्द्र ने राजावलीकथा नामक ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना की है. पम्प के युग को हम चम्पूयुग कह सकते हैं तो रत्नाकर वर्णी के युग को हम सांगत्य का युग कह सकते हैं. दो युगपुरुष हैं.
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