Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८४४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
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और उनकी कृति का सम्बन्ध भी अंशतः किशनगढ से जान पड़ता है. नाम के आगे श्वेताम्बर शब्द का प्रयोग भी इन्हें इसी भूखण्ड का प्रमाणित करता है. आगामी पंक्तियों में देखेंगे कि परवर्ती कवि पंचायण ने भी इस शब्द का उपयोग आत्माभिधान के आगे किया है. पर वह जैन धर्मावलंबी प्रतीत नहीं होते जैसा कि ग्रंथों की प्रशस्तियों से सिद्ध है. कवि नानिंग की अज्ञात रचना है 'मजलिस शिक्षा'. सभा-समितियों का व्यावहारिक ज्ञान इम में संचित है. किस प्रकार की सभा में कैसे लोगों का प्रवेश होना चाहिए और जैसी मंजलिस हो वैसा अपने को बनाने का प्रयत्न करने की ओर कवि का संकेत है. सभाओं के नियमों से अनभिज्ञ एक मोहणोत परिवार का सदस्य देवीदास [जो सम्भवतः किशनगढ का ही निवासी हो] कवि के साथ ढाका की एक महफ़िल में सम्मिलित हुआ और बेअदबी से लातों का शिकार हो गया. इस प्रसंग पर कवि ने अपने बंगाल के अनुभवों का रोचक वर्णन किया है. बंगाल की सामाजिक स्थिति का सुन्दर चित्र उपस्थित किया है बताया गया हैं बंगाल देश के ढाका नाम के नगर में एक सुन्दर उपवन हैं जिसके मध्य में विशाल सरोवर है, आलीशान मकान बने हुए हैं जिन पर चित्रों का काम राजस्थान के भवनों की चित्रकला का स्मरण कराते हैं. मजलिस शिक्षा के अन्तः परीक्षण से पता चलता है कि संभवतः कवि का वृद से या उनके पुत्र से अवश्य ही सम्बन्ध रहा होगा, असंभव नहीं उन्हीं के साथ ढाका गया हो, कारण कि तृदने अपनी सतसई वहाँ ही सं० १७६० में समाप्त की. उन दिनों इनका पुत्र वल्लभ भी ढाका में ही था जैसा कि मेरे संग्रहस्थ एक उन्हीं के हाथ से प्रतिलिपित गुटके से प्रमाणित है. मोहोणोत परिवारीय व्यक्ति की चर्चा नानिंग ने की है, किशनगढ में उन दिनों यह परिवार उच्च स्थान पर प्रतिष्ठित था जैसा कि सं० १७८६ के जैन विज्ञप्ति पत्र से सिद्ध है. किशनगढ़ के राजकीय सरस्वती ज्ञान भण्डार में इनके हाथ से लिखे ग्रंथों की संख्या पर्याप्त है. इनकी रचना का विवरण इस प्रकार है :
गणेशाय नमः अथ मजलस सिछा लिष्यते
दोहा जै जै श्रीब्रजराज जै जै जै नन्दकुमार । जै जै श्रीराधारवन जै जै मदन मुरार ।।१।। जै जै श्रीगनपति सदा जै जै सरस्वति बांनि । जै जै श्रीगुरुदेव मम जै जै कवि जग आंनि ।।२।। सभा सिछा की बारता, हौं कछु कहत जताय । बुरौ न मानहिं सुघर नर, समझत भलें बताय ॥३॥ कवि नानिंग ऐसे कहैं श्रोता सुनहु सुजान ।
बुरी जु मानौं बात सौं वे मूरष अज्ञांन ।।४।। अन्तः भाग--
संवत सतरासै निवै भादव मास पुनीत ।
तिथि चवदसि ससिबार कौं, रच्यौं ग्रंथ जुत नीत ।।१६८।। इति श्रीमजलस सिछा कवि नानिंग कृत संपूर्ण ।। शुभं भवतु ।। सं० १७६० में कवि ने कृति समाप्त की. पंचायण -ये अजमेर के निवासी जान पड़ते हैं. इनकी अज्ञात कृति मिली है "मुहूर्त कोश" इस लघुतम रचना में सामान्य मुहूर्तों का परिचय दिया गया है. कृति हिन्दी कविता में निबद्ध है. प्राचीन कई ऐसी रचनाएं मिल जाती हैं उनका सम्बन्ध तो अपने-अपने विषय से रहता है, पर कभी-कभी उनकी अन्त्य प्रशस्तियों में ऐतिहासिक संकेत बड़े काम के मिल जाते हैं. मुहूर्त कोश यद्यपि ज्यौतिष से संबद्ध है, पर इसमें अन्त
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