Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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Jain Ed
अन्त भाग
मुनि कान्तिसागर : अजमेर-समीपवर्ती क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार : ८५३
किसुनद पितु धर्म-धुरंधर सदावर्त हरि भजन दयाकर । अति सुसील बुधिवंत घनेरा हीराचंद भ्रात वड मेरा ॥ अमिल रत्न जिभि अर गुनसागर जगत विदित जस कीति उजागर | महमदसाहि नवाब सु लषकर कंपू सात सवारा बहादर ॥ पोतदार तो कते भए मारवार 5 डारहि गएं । अह मेवाड़ देस विसेसा जानत सकल सेठ भा ऐसा ।। अति हुसयार सुबुद्ध प्रवीनां स्यामलाल सुत भगवती दीन्हौं । बीकानेर सुराज सुहायो हिन्दुमल वकील भायो ॥ करे नौकरी तिनकी मनसे रर्षं न और वासता किन सँ । मन वच कर्म काज कर सोई स्वांमि धर्म ऐसा नहि कोई ॥ नांवासेर मंदिर करवायो एकलाष मैं किला दुजा गढ टोंक सु तामें सवालाष लग रूपा सांभर मैं तीरथ दे दांनी तहाँ मंदर द्विजराज सत्य सिधु मन कपट न ताके देई न सकै
मन
वणायो । स्वामें ।। भवांनी
दोहा
सुषद भ्रात मंझले सरस मानकचन्द सुनाम । घरको कारज ते करे सव सिधि रसप तमांम ॥
चीपाई
में पढ हिन्दी और फारसी सेर कवित मिली आरसी । सव कामिन में सजी त्यारी ज्वाब स्वाल में अति हुस्यारी ।। वनांमी असि सेठ रीयांके वस अजमेर सुवास ह्यांके । राज कंपनी सव सुषदारी अजा-सिंघ जल पिय इक ठाई ॥ दोईलापका दावा तिन पर कीयौ गुमास्ता जाल वणांकर । ता कारण हमकों बुलवाये भयो निसाफ सेठ सुष पाये ।। लाषनिकेर मुकदमा कीनां रहें अदालति मैं जस लीनां । साहिब लोग रहें नित राजी जे इन्साफ मार्ग सुष साजी || हातम की किताब हम पाई लिषी फारसी बात सुहाई । करों हिन्दवी यों मन आवा चरित नीर जिमि होइ तलावा ।।
पर हित आपन दुष सहै करे और को काज । ताको साषीं ग्रंथ यही कहा वनौं तिहि राज || वरनहुं कहा तिहि राजकों साषी सु सव यह ग्रंथ हैं । जो सुनहीं पर हित ना करें पाषांन ऊर मतिमंद हैं ।। कह प्रेम जगमैं सार दोईक नांम हरि ऊपगार हैं । इक व जीभ से इक सक्तिसों जानें न मुसकल भार हैं ।।
सोरठा
लेवे तो लेहु राम नाम सोदा सरस । देत वने तो देहु दान मांन उपिगार ॥
इति श्रीहातमचरित्र प्रेमकृते सप्तम सवाल मितिमा
॥
दोज सोमवासरे संवत १८२२ सम्पूर्ण
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