Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रन्तः-
मुनि कान्तिसागर अजमेर-समीपवर्ती क्षेत्र के कवि उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार ८३२
दोहा
यह प्रसंग ऐसो कह्यो में मो मति उपमांन ।
कृष्ण सुजस कौं कहि सके ऐसी कौंन सुजान ॥ १६६ ।।
तामैं मो मतिमंद है अरु अति चित्त अजांन ॥ १७० ।। यह विचार कीनों सु मैं गुरु कृपा उर ऑन ॥ कृपासिंधु तुम जुगल हो की मोहिय वास । ब्रजदासी बिनती करत यह धरि हिय में आस ।। १७१ ।। निगमबोद यमुना तटे उत्तर दिसि के ठांहि ।
यह पोथी कीनी लिखी इन्द्रप्रस्थ के मांहि ॥ १७२ ॥ संवत सतरा से समैं बरस तियास्यौ मान । मंगसर वदि एकादशी मास चैत सुभ जांन ॥। १७३ ।। ।। इति श्री सालवजुद्ध सम्पूर्ण ॥
इसकी रचना सं० १७८३ में दिल्ली में निगमबोध घाट पर हुई. इस प्रतिलिपि का काल सं० १७८७ है.
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आशीष संग्रह:
यह नाम मैंने दिया है. वस्तुतः इसका नाम क्या रहा होगा ? नहीं कहा जा सकता, कारण कि कृति अपूर्ण ही उपलब्ध हुई है. इसमें विवाह के प्रसंग पर भिन्न-भिन्न जातियों द्वारा दी जानेवाली आशीर्वादमूलक वचनावलियों का संग्रह है, इसीलिए यह नाम रख लिया गया है. खण्डित प्रति में मालनी, चित्रकार, चितेरी, गंधी, गंधिनी, नायण, दरजण, तंबोबाढी, ग्वालन, भांडण, रंगरेजन, कुंभारी, मनिहारन और मेहतरानी की आशीयों का संकलन है कतिपय पद्यों में ब्रजदासी का नाम भी आया है
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ब्रजदासि प्रांत किय वारनैं,
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कह जु ब्रजदासियं वसो जुव्यांन वासियं, - मालण की आशीस,
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भई वारने कुवरि पद बार-बार ब्रजदासी, चतेरा की देवा की आशीष,
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दासी निज सुन्दर मन,
ब्रजदासी पार्व यहै जुगल
पाठकों की जानकारी के लिए एक आशीष उद्धत करना समुचित होगा
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ढांढण के देवा की आशीष,
भगति की चाही - ढाढी के पढवा की वंशावली,
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अथ चतेरे की देवाकी आशीष
छंद भुजंगी
नृपं भान आज उछव अपारं भई हैं कुवारं लड़ैती उदारं । लजैं मेघ ऐसे जबे हैं जिसानं तिहु लौक आनन्द छायो अमानं ॥ बधाई बधाई बरसांन छाई लली होत सोभा रवि वंस पाई । दए दांन ऐसे महाराज भानं भए हैं कंगालं नृपालं समानं ॥
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