Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीनेमिचन्द्र शास्त्री पी-एच० डी० जैन कालेज, आरा संस्कृत कोषसाहिय को आचार्य हेम की अपूर्व देन
संस्कृत कोशसाहित्य की परम्परा :- संस्कृत भाषा में निघण्टव :- निघण्टुओं की महत्त्वपूर्ण शब्दावली यास्क के कोश का नाम सर्वप्रथम आता है. ' अमरकोष की टीका में भागुरि के प्राचीन उद्धरण दीक्षित ने अपनी अमरकोशटीका में आचार्य आपिशल का एक वचन ऊद्धृत किया है. भी कोई कोषग्रन्थ लिखा है. उणादिसूत्र के वृत्तिकाल उज्ज्वयलदत्त द्वारा उद्धृत एक वचन से होती है. आपिशल वैयाकरण थे, इनका स्थिति काल पाणिनि से पूर्व है.
कोष-ग्रन्थ लिखने की परम्परा वैदिक युग से चली आ रही है. निरुक्त के साथ उपलब्ध है. विलुप्त कोष-ग्रन्थों में भागुरिकृत उपलब्ध होते हैं. भानुजि जिससे स्पष्ट है कि उन्होंने भी उक्त तथ्य की पुष्टि
केशव ने नानार्थार्गव संक्षेप में शाकटायन के कोशविषयक वचन ऊद्धृत किये हैं, जिनसे इनके कोशकार होने की संभावना है. 3 अभिधान चिन्तामणि आदि कोशग्रन्थों की विभिन्न टीकाओं में व्याडिकृत किसी विलुप्त कोश के उद्धरण मिलते हैं. ४ कीथ ने अपने संस्कृत साहित्य के इतिहास में नाममाला के कर्त्ता काव्यायन, शब्दार्णव के रचयिता वाचस्पति और संसारावर्त के लेखक विक्रमादित्य का उल्लेख किया है.
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उपलब्ध कोशग्रन्थों में सबसे प्राचीन और ख्यातिप्राप्त अमरसिंह का अमरकोश है. डॉ० हार्नले ने इसका रचनाकाल ६२५-४० ई० के वीच माना है. यह समानार्थ शब्दों का संग्रह है और विषय की दृष्टि से इसका विन्यास तीन काण्डों में किया गया है. इसकी अनेक टीकाओं में ग्यारहवीं शताब्दी में लिखी गयी क्षीरस्वामी की टीका बहुत प्रसिद्ध है. इसके परिशिष्ट के रूप में संकलित पुरुषोत्तमदेव का त्रिकाण्डशेष है, जिसमें उन्होंने विरल शब्दों का संकलन किया है. कवि और वैयाकरण के रूप में ख्यातिप्राप्त हलायुध ने अभिधानरत्नमाला नामक कोशग्रन्थ ई० सन् १५० के लगभग लिखा है. इसमें पर्यायवाची समानार्थक शब्दों का संकलन है. दाक्षिणात्य आचार्य यादव ने वैज्ञानिक पद्धति पर जयन्ती कोश लिखा है, नवीं शती के विद्वान् धनञ्जय ने नाममाला अनेकार्थनाममाता और अनेकार्थनिघण्टु ये तीन कोशग्रन्थ लिखे हैं ये तीनों को छात्रोपयोगी सरल और सुन्दर शैली में लिखे गये हैं.
कोश साहित्य की समृद्धि की दृष्टि से बारहवीं शताब्दी महत्त्वपूर्ण है. इस शती में केशवस्वामी ने नानार्थार्णवसंक्षेप एवं शब्दकल्पद्रुम, महेश्वर ने विश्वप्रकाश, अभयपाल ने नानार्थरत्नमाला और भैरव कवि ने अनेकार्थकोष की रचना की है. इसी शताब्दी के महाविद्वान् आचार्य हेमचन्द्र ने अभिधानचिन्तामणि, अनेकार्थसंग्रह एवं निषन्दुशेष की रचना की है.
१. सर्वानन्दविरचित टीकासर्वस्व भाग १ पृ० १६३.
२. श्रमरटीका १|१|६६ ५० ६८.
३. अभिधानचिन्तामणि- चौखम्बा संस्करण प्रस्तावना पृ० ६.
४. अभिधानचिन्तामणि १।५, ३४/२२ और २५.
५. कीथ-संस्कृत साहित्य का इतिहास पृ० ४८६.
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