Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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दृष्टिबाद १२ वृष्णि दशा
"पुष्पचूलिका ८निरयावलिका कल्पिका ८अन्तकृत्दशा
७चन्द्र प्रज्ञप्ति पृ.भा उपासकदशा
८९४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय चौदह पूर्वो के नाम पदपरिमाण १. उत्पाद पूर्व
१ करोड़ २. अग्रणीय,
६६ लाख ३. वीर्य ,
७० लाख ४. अस्तिनास्तिप्रवाद पूर्व । ६० लाख ५. ज्ञानप्रवाद पूर्व
६६ लाख ६६ हजार ६६६ ६. सत्यप्रवाद "
१ करोड ६ ७. आत्मप्रवाद "
२६ करोड़ ८. कर्मप्रवाद "
१ करोड ८० हजार ६. प्रत्याख्यानप्रवाद ८४ लाख १०. विद्यानप्रवाद "
१ करोड १० लाख ११. अवंध्य
२६ करोड़ १२. प्राणायु
१ करोड ५६ लाख १३. क्रियाविशाल " ९ करोड़ १४. लोकबिन्दुसार " १२३ करोड़ शेष आगमों (उपांग, छेद, मूल, और प्रकीर्णकों) के पदों की संख्या का उल्लेख किसी आगम में नहीं मिलता. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति के पद' ३०५००० थे. चन्द्रप्रज्ञप्ति के पद ५५०००० थे. सूर्यप्रज्ञप्ति के पद ३५०००० थे.
नंदीसूत्र की चूणि में द्वादशांग श्रुत को पुरुष रूप में चित्रित किया है. जिस प्रकार पुरुष के हाथ पैर आदि प्रमुख अंग होते हैं, उसी प्रकार पुरुष के रूप में श्रुत के अंगों की कल्पना पूर्वाचार्यों ने प्रस्तुत की है
आचारांग और सूत्रकृतांग श्रुत-पुरुष के दो पैर स्थानांग और समवायांग पिंडलियाँ भगवती सूत्र और ज्ञाताधर्मकथा दो अँघायें हैं उपासक दशा पृष्ठ भाग अंतकृद्दशा दशा अग्रभाग (उदर आदि) अनुत्तरोपपातिक और प्रश्नव्याकरण दो हाथ विपाकश्रुत ग्रीवा और दृष्टिवाद मस्तक है
(देखिए चित्र) द्वादश उपांगों की रचना के पश्चात् श्रुत-पुरुष के प्रत्येक अंग के साथ एक-एक उपांगकी कल्पना भी प्रचलित
अनुत्तपिपातिक दशा टकलपावर्तसिका
५भगवती सूत्र
जंबूदीप प्रज्ञप्ति
१० पुष्पिका १० प्रश्न व्याकरण OP ६ सूर्य ग्रहप्ति
ताधर्मकथा
३स्थानाङ्ग जीवाभिगम
४समवायाङ्ग ४ प्रज्ञापना
आचाराङ औषपातिक
२ सूत्रकृताङ्ग रायप्रश्नीय
०००.०
10000
10000 100
३
१. केवल इन तीन उपाङ्गों के पदों का उल्लेख स्व० श्राचार्य श्रीअमोलक ऋषिजी महाराज ने जैन तत्त्व प्रकाश (संस्करण
वें में) में किया है किन्तु चन्द्रप्राप्ति और सूर्यप्राप्ति के पदों में इतना अन्तर क्यों है ?
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