Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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१८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय आवश्यक व्यतिरिक्त के २ भेद हैं-कालिक' और उत्कालिक. इनकी सूची इस प्रकार है-- उत्कालिक सूत्र-१ दशवकालिक, २ कल्पिकाकल्पिक, ३. चुल्ल (लघु) ३ कल्पसूत्र, ४ महाकल्प सूत्र, ५ औपपातिक, ६ राजप्रश्नीय, ७ जीवाभिगम, ८ प्रज्ञापना, ६ महाप्रज्ञापना, १० प्रमादाप्रमादम्, ११ नंदीसूत्र, १२ अनुयोगद्वार, १३ देवेन्द्रस्तव, १४ तंदुल वैचारिक, १५ चन्द्रावेध्यक, १६ सूर्य प्रज्ञप्ति, १७ पौरुषी मंडल, १८ मंडल प्रवेश, १६ विद्याचरणविनिश्चय, २० गणिविद्या, २१ ध्यानविभक्ति, २२ मरणविभक्ति, २३ आत्मविशोधि, २४ वीतराग श्रुत २५ संलेखना श्रुत, २६ विहारकल्प, २७ चरणविधि, २८ आतुरप्रत्याख्यान, २६ महाप्रत्याख्यान, इत्यादि. कालिक सूत्र-१ उत्तराध्ययन, २ दशा [दशाश्रुतस्कन्ध], ३ कल्प [बृहत् कल्प], ४ व्यवहार, ५ निशीथ, ६ महानिशीथ, ७ ऋषिभाषित, ८ जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, १० चन्द्र प्रज्ञप्ति, ११ भुद्रिकाविमान प्रविभक्ति, १२ महल्लिका प्रविभक्ति, १३ अंग चूलिका, १४ वर्ग चूलिका, १५ विवाह चूलिका, १६ अरुणोपपात, १७ वरुणोपपात, १८ गरुडोपपात, १६ धरणोपपात, २० वैश्रमणोपपात २१ वलंधरोपपात, २२ देवेन्द्रोपपात, २३ उत्थानश्रुत, २४ समुत्थानश्रुत, २५ नागपरिज्ञावणिका, ३६ निरयावलिका, २७ कल्पिका, २८ कल्पावतंसिका, २६ पुष्पिका, ३० पुष्पचूलिका, ३१ वृष्णिदशा, ३२ आशिविष भावना, ३३ दृष्टिविष भावना, ३४ स्वप्न भावना, ३५ महास्वप्न भावना, ३६ तेजोग्नि निसर्ग. श्रागम के दो भेद-लौकिक और लोकोत्तर अनुयोगद्वार में केवल आचारांगादि द्वादशांगों को ही लोकोत्तर आगम माना है. इसी प्रकार लोकोत्तर श्रुत भी आचारांग आदि द्वादशांग ही माने गये हैं. श्रागम के दो भेद-गमिक और अगमिक, गमिक दृष्टिवाद, अगमिक---कालिकसूत्र आगम के तीन भेद-(१) सूत्रागम (२) अर्थागम (३) तदुभयागम. सूत्रागम-मूलरूप आगम को सूत्रागम कहते हैं. अर्थागम-सूत्र-शास्त्र के अर्थरूप आगम को अर्थागम कहते हैं. तदुभयागम-सूत्र और अर्थ दोनों रूप आगम को तदुभयागम कहते हैं.
-अनुयोगद्वारसूत्र १४३ श्रागम के और तीन भेद हैं-(१) आत्मागम (२) अनन्तरागम (३) परम्परागम. आत्मागम-गुरु के उपदेश विना स्वयमेव आगमज्ञान होना आत्मागम है. जैसे-तीर्थंकरों के लिए अर्थागम आत्मागम रूप है और गणधरों के लिए सूत्रागम आत्मागमरूप है.
१. (क) कालिक और उत्कालिक वर्गीकरण का रहस्य क्या है, यह अब तक दृष्टि पथ में नहीं आया.
(ख) यहां उत्कालिक सूत्र २६ के नाम लिखे हैं किन्तु अन्त में 'इत्यादि' का कथन होने से अन्य नाम का होना भी सम्भव है.
(ग) कालिक सूत्रों के अन्त में 'इत्यादि' का उल्लेख नहीं है अतः अन्य सूत्रों का परिगणन करना उचित नहीं माना जा सकता है. २. सूर्य प्रज्ञप्ति को उत्कालिक और चन्द्र प्रशप्ति को कालिक मानने का क्या कारण है जबकि दोनों उपांग हैं और दोनों के मूल पाठों में
पूणे साम्य है ? ३. उत्तराध्ययन यदि भ० महावीर की अन्तिम अपुट्ट वागरणा है तो उसे अंगबाट कैसे कहा जा सकता है, यह विचारणीय है. क्योंकि
सर्वज्ञ कथित और गणधरग्रथित आगम अंगप्रविष्ट माना जाता है. ४. नंदीसूत्र में निर्दिष्ट इस वर्गीकरण से एक आशंका पैदा होती है--कि उत्कालिक सूत्र गमिक हैं या अगमिक ? क्योंकि केवल कालिक
सूत्र अगमिक हैं. नंदी सूत्र में कालिक और उत्कालिक ये दो भेद केवल अंग बाह्य सूत्रों के हैं-अतः अंगप्रविष्ट अर्थात्-ग्यारह अंग कालिक हैं या उत्कालिक, यह ज्ञात नहीं होता. ग्यारह अंग गमिक हैं या अगमिक ? यह भी निर्णय नहीं होता. परम्परा से ग्यारह
अंगों को अगमिक और कालिक मानते हैं किन्तु इसके लिए आगम प्रमाण का अन्वेषण आवश्यक है. ५. अनुयोगद्वार में कालिक श्रत को और दृष्टिवाद को भिन्न-भिन्न कहा है अतः दृष्टिवाद कालिक है या उत्कालिक ? यह भी विचारणीय
है, क्योंकि नंदी सूत्र में कालिक एवं उत्कालिक की सूची में द्वादशांगों का निर्देश नहीं है.
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