Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि श्रीकान्तिसागर अजमेर समीपवर्ती क्षेत्र के कतिपय उपेक्षित हिन्दी साहित्यकार
भारतीय इतिहास के निर्माण में अजयमेरु-अजयगढ़-अजमेर की अपनी विशिष्ट देन रही है. इस भूखंड का अतीत अत्यन्त गौरवमय रहा है. मध्यकाल आते-आते तो यह दिल्ली आगरा के साथ ही सम्पूर्ण भारतीय राजनीति और संस्कृति का प्रेरक केन्द्र हो गया. धार्मिक दृष्टि से अजमेर का महत्त्व अक्षुण्ण है. राजा अजयपाल, आचार्य श्री जिनदत्तसूरिजी और सूफी संत ख्वाजा मुईनुद्दीन, चिश्ती से संबद्ध धर्ममूलक कथाएं आज भी जनमानस में अनुप्राणित हैं. दरगाह ख्वाजा साहब और पुष्करजी मुसलमान और हिन्दुओं के पुण्य तीर्थस्थल स्थानीय धार्मिक विभूति के रूप में मान्य है. राजपूत संस्कृति और आर्यधर्म का गढ़ समझा जानेवाला यह भूखंड संस्कृत एवम् हिन्दी साहित्यकारों की कर्मभूमि रहा है. हिन्दी रासो साहित्य का आदि ग्रंथ पृथ्वीराज रासो की प्रणयनभूमि एवम् अन्तिम आर्यसम्राट् चौहानकुलतिलक पृथ्वीराज की क्रीड़ास्थली के रूप में अजमेर हिन्दी भाषा और साहित्य के इतिहास में सर्वज्ञात रहा है. किसो समय परम सारस्वतोपासकों का यहां अच्छा संगम था, देश के दिग्गज विद्वान् शास्त्रार्थार्थ यहाँ आया करते थे. सं० १२३६ का खरतर. गच्छीय श्री जिनपतिसूरि और पद्मप्रभ का सफल शास्त्रार्थ इतिहासविश्रुत है. प्राचीन जैन-संस्कृति की दृष्टि से सूचित भूखण्ड विशिष्ट महत्त्व रखता है. प्रश्नवाहनकुलीय आचार्यों की परम्परा हर्षपुर से संबद्ध रही है जो बाद में चंद्रगच्छ या राजगच्छ के नाम से प्रसिद्ध हुई. प्रद्युम्नसूरि इस शाखा के ऐसे आचार्य हुए जिनने सपादलक्ष और त्रिभुवनगिरि के नरेशों को अपनी चारित्रिक और औपदेशिक शक्ति से प्रभावित कर जैन धर्मानुयायी बनाया. इनकी परम्परा ने भारतीय तत्त्वज्ञान की गुत्थिये सुलझाने वाले दार्शनिक साहित्य की सृष्टि की जिसके प्रतीकसम 'वादमहार्णव' को उपस्थित किया जा सकता है. यह हर्षपुर अजमेर मण्डल में ही अवस्थित है. कहा जाता है इसे राजा अल्लट की रानी ने बसाया था. कहने का तात्पर्य है कि अजमेर जब नहीं बसा था इसके पूर्व से ही जैन संस्कृति का संबंध इस भूमि से रहता आया है. आगे चलकर यह संबंध और भी घनिष्ठतर होता गया और मध्यकाल के बाद तो अजमेर जैन श्रद्धालुओं का केन्द्र ही बन गया. यद्यपि आज इस नगर की विशेष ख्याति जैन समाज में आचार्य श्रीजिनदत्त सूरिजी के निर्वाणस्थल के कारण ही है, पर यदि इसका समुचित वैज्ञानिक दृष्टि से पुनर्मूल्यांकन किया जाय तो अनेक सांस्कृतिक नव्य तथ्य उपलब्ध किये जा सकते हैं. यद्यपि अजमेर पर स्व. हरविलास शारदा ने आंग्ल भाषा में एक कृति प्रस्तुत की है, पर आज नव्य शोध द्वारा जो नूतन सूचनाएं प्राप्त हैं, उनके आधार पर परिमार्जन अपेक्षित है. व्यापक दृष्टिकोण से इस नगर और तत्सन्निकटवर्ती भूभागों का तथ्यपूर्ण वर्णन अद्यतन शैली में वांछनीय है. सीमित अन्वेषण के आधार पर कहा जा सकता है कि ज्ञात से भी अज्ञात महान् है. यह तो मैं केवल साहित्यिक अपेक्षा से ही कह रहा हूं, पुरातात्त्विक दृष्टि से तो इस का और भी महत्त्व हो सकता है. अजमेर के समीप जयपुर मार्ग पर किशनगढ़ अवस्थित है. वह लगभग तीन शताब्दियों से भारतीय संस्कृति, साहित्य और चित्रकला का अनुपम केन्द्र रहा है. आगामी पंक्तियों से स्पष्ट होगा कि वहां के नरेशों ने इनके विकास के लिये
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