Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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८०० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
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का ज्ञान प्राप्त किया जाय, उसे ज्योतिष कहते हैं. वर्णागम वर्णलोप वर्णविकार आदि के द्वारा जिसका निर्वचन उपस्थित किया जाय उसे निरुक्ति कहते हैं. १. प्रत्यक्षागमाभ्यामीक्षितस्य पश्चादीक्षणं अन्वीक्षा सा प्रयोजनमस्यामान्वीक्षिकी. पुरापि न नवं पुराणम् (२।१६५. १६६). टीकयति गमयत्यर्थान् टीका सुषमाणां विषमाणां च निरन्तरं व्याख्या यस्यां स तथा. पञ्च्यन्ते व्यक्तीक्रियन्ते पदार्था अनया पजिचका, पृषोदरादित्वाद् जत्वे पञ्जिका अर्थात् विषमाण्येव पदानि भनक्ति पदभब्जिका (२११७०). निबध्यते विशेषोऽस्मिन् निबन्धः (२।१७१). प्रहेलयति अभिप्रायं सूचयति प्रहेलिका (२।१७३), प्रत्यक्ष और आगम के द्वारा अवगत कर लेने के पश्चात् तर्क आदि के द्वारा विषय को जानना अन्वीक्षा है और यह अन्वीक्षा जिसका प्रयोजन है उसे आन्वीक्षिकी विद्या कहा जाता है. पुराण सदा ही पुरातन रहते हैं, जिनका विषय प्राचीन समय में भी नया न रहे, उसे पुराण कहते हैं. किसी ग्रंथ के साधारण या असाधारण प्रत्येक शब्द की निरन्तर व्याख्या को टीका कहते हैं. विषमपदों को स्पष्ट करने वाली व्याख्या का नाम पञ्जिका है. जिसमें विशेष विषय को निबद्ध किया जाय, उसे निबन्ध कहते हैं. जिस पद्य का अर्थ पूर्वापर विरुद्ध प्रतीत होता हो, परन्तु विशेष अनुसन्धान करने से अविरुद्ध अर्थ निकले, उसे प्रहेलिका या पहेली कहते हैं. ६. बध्नाति स्नेहः बन्धुः (३१२२४), विगृह्यते रोगादिभिरिति विग्रहः (२१२२७) ऊर्ध्वं मिलति धम्मिल्लः (३१२३४). केशानां वेषे रचनायां कूयते कवरी (२।२३४). पलति याति श्वेतत्वं पाकात् पलितं (३।२३५). भाल्यते परिभाप्यते शुभाशुभमत्र भालम् (३।२३७.) स्नेह के कारण जो बन्धन उत्पन्न करे उसे बन्धु कहते हैं. बन्धु शब्द का व्युत्पत्तिमूलक यही अर्थ है कि जो स्नेहबन्ध का कारण है, वही बन्धु है. जो स्नेह उत्पन्न नहीं करता है, वह बन्धु नहीं कहा जा सकता. रोग आदि के द्वारा जो विकृत किया जाता है, वह विग्रह अर्थात् शरीर कहलाता है. शरीर को रोग आदि नित्य जीर्ण करते रहते हैं. ७. धम्मिल्ल उस केशरचना का नाम है, जो जटाजूट की तरह ऊपर की ओर मिलती है अर्थात् बालों को ऊपर की ओर एकत्र कर बांधना धम्मिल्ल है. यह केशरचना अत्यन्त सावधानी पूर्वक की जाती है. केशों को सजाकर वेणी के रूप में बांधना कवरी है. कवरी और धम्मिल्ल ये दोनों ही प्रकार केशरचना के हैं. महिलाएँ इन दोनों प्रकार की केशरचनाएँ करती थीं. ८. पककर श्वेत हुए बालों को पलित केश कहा गया है. जिस प्रकार धान की फसल पककर समाप्त हो जाती है, उसी प्रकार समय के प्रभाव से केश भी श्वेत हो जाते हैं. ६. भाल-मस्तक-ललाट उसे कहते हैं, जिसके अध्ययन से शुभाशुभ को कहा जा सके. हाथ, पैर और ललाट के अध्ययन से शुभाशुभ के फलप्रतिपादन की प्रणाली प्राचीन काल से भारत में प्रचलित है. अतः भाल-ललाट की व्युत्पत्ति आचार्य ने यह की है—यों तो 'ललतेऽत्रालंकारो ललाटम्' अर्थात् जहाँ अलंकार सुशोभित हो, उसे ललाट कहते हैं. १०. ओष्ठ की व्युत्पति करते हुए लिखा है-"उष्यते तीचणाहारेण पोष्ठः' अर्थात्-तीक्षण आहार से जो अवगत हो और उसकी अनुभूति जिसे निरन्तर होती रहे, उसे ओष्ठ कहते हैं. ११. भाष्यते भाषा २।११५–भाषण या कथन को भाषा कहते हैं. सुष्टु या समन्तात् अधीयते स्वाध्यायः २।१६३अच्छी तरह अध्ययन करने को स्वाध्याय कहते हैं. १२. अवति विघ्नाद् ओम् अव्ययम् २।१६४---विघ्नों से रक्षा करने वाला 'ओम्' होता है. यह ओम् अव्यय है. १३. न श्रियं लाति-अश्लीलम्-न श्रीरस्यास्तीति वा २।१८०—जिसके आचरण से कल्याण उत्पन्न न हो, उसे अश्लील कहते हैं.
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