Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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जैनाचार्य विजयेन्द्र सूरीश्वर : तुम्बवन और आर्य वज्र : ६८१
श्राबवंतीमबंतीञ्च सर्वमेवानुपश्यत' २. महाभारत में इस प्रदेश के दो राजाओं-विंद और अनुविंद-का उल्लेख आया है. इनका सहदेव के साथ समर हुआ है. ये कौरवों के पक्ष में महाभारत में लड़े थे. द्रोणपर्व में आया है कि अर्जुन ने इनको परास्त किया. और उसके सम्बन्ध में टी० आर० कृष्णाचार्य-सम्पादित महाभारत के उपोद्घात के साथ प्रकाशित वर्णानुक्रमणिका में लिखा है : सेकापरसे कयोर्नर्मदायाश्च दक्षिणतो विद्यमानो मालवदेशान्तर्गतो देशः ।
-वर्णानुक्रमणिका, (महाभारत), पृष्ठ १६. ३. इनके अतिरिक्त कितने ही अन्य पुराणों में अवन्ती नगर का उल्लेख है: (थ) अवन्ती नगरे रम्ये दीक्षितां ऋषिसत्तमः, सत्कुलीनः सदाचारः शुभकर्मपरायणः ।
-शिवपुराण, ज्ञान सं० २५ अ० (श्रा) अवन्त्यां तु महाकालं शिवं मध्यमकैश्वरे। -शिवपुराण सनत्कुमार सं० ३१ अ० (इ) अवन्तीनगरी रम्या मुक्तिदा सर्वदेहिनाम् , शिप्रा चैव महापुण्या वर्तते लोकपावनी ।
शिवपुराण, ज्ञान सं० ४६ अ० (ई) अवन्ती नगरी रम्या तत्रादृश्यत वै पुनः
-शिवपुराण, ज्ञान सं० ४६ अ० (उ) स्कंदपुराण में तो एक पूरा अवन्ती खंड है. उसमें आया है : अवन्तिकायां विहितावतारं ...। अवन्ति पुण्यनगरी प्रतिकल्योद्भवा शुभा। अस्ति चोज्जयिनी नाम पुरो पुण्य फलप्रदा । यत्र देवो महाकालः सर्वदेवगुणः स्तुतः । (ऊ) गरुड़ पुराण में इसकी गणना ७ तीर्थस्थानों में की गई है :
अयोध्या मथुरा माया काशी काञ्ची अवन्तिका ।
पुरी द्वारावती चैव सप्तैताः मोक्षदायिकाः । (ए) आज्ञा चक्र स्मृता काशी या बाला श्रुतिमूर्धनि ।
स्वधिष्ठानं स्मृता काञ्ची मणिपूरमवन्तिका । नाभि देशे महा कालस्तन्नाम्ना तत्र वै हरः ।
-वाराह पुराण. (3) श्रीमद्भागवत में सन्दीपनि के आश्रम के प्रसंग में आया है : अथो गुरुकुले वासमिच्छन्तावुपजग्मतुः, काश्यां सान्दीपनि नाम यवन्तीपुरवासिनः ।
–श्रीमद्भागवत, द्वितीय भाग, दशम स्कंध, अ० ४५, श्लोक ३१, पृष्ठ ४०३ (गोरखपुर)
-महाभारत, सभापर्व, अध्याय ३२, श्लोक ११, पृष्ठ ५०.
१. श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, किष्किंधा कांड, २. विन्दानुविन्दावावन्त्यौ सैन्येन महतावृतौ । जिगाय समरे वीरावाश्विनेयः प्रतापवान् ।। महीपालो, महावार्येर्दक्षिणापथवासिभिः ।
आवन्त्यौ च महापालौ महाबल-सुसंवृतौ ।२५. ३. विन्दानुविन्दाबावन्न्यों विराट दशभिः शिरैः ।
आजन्धतुः सुस'द्वौ तव पुत्रहितैपिणी ।।
-महाभारत, उद्योग पर्व, अध्याय १६, श्लोक २५, पृष्ठ २५.
-महाभारत, द्रोणपर्व, अध्याय १३, श्लोक ४, पृष्ठ१४०.
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