Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
परमानन्द जैन : मध्यभारत का जैन पुरातत्त्व : ७११
२. राज्ये कुलस्याधि विवर्द्धमाने षड्भियुतवर्षशतेथ मासे (1) सुकातिके बहुल दिनेथ पंचमे ३. गुहामुखे स्फटविकटोत्कटामिमां, जितद्विषो जिनवर पाश्वसंज्ञिकां, जिनाकृति शम-दमवान ४. चीकरत् (1) आचार्यभद्रान्वयभूषणस्य शिष्यो ह्यसावार्यकुलोद्वतस्य आचार्य गोश ५. र्म मुनेस्सुतास्तु पद्मवतावश्वपते र्भटस्य (1) परैरजेयस्य रिपुघ्न मानिनस्स संघिल ६. स्येतित्यभिविश्रुतो भुवि स्वसंज्ञया शंकरनामशब्दितो विधानयुक्तं यतिमार्गमस्थित: (11) ७. स उत्तराणां सदृशे कुरूणां उददिशा देशवरे प्रसूतः ८. क्षयाय कारिगणस्य धीमान् यदत्र पुण्यं तदपाससर्ज (1)–फ्लीट, गुप्त अभिलेख पृ० २५८. इस लेख में उल्लिखित आचार्य भद्र और उनके अन्वय में प्रसिद्ध मुनि गोशर्म, कहां के निवासी थे और उनकी गुरुपरम्परा क्या है ? यह कुछ मालूम नहीं हो सका. नरवर :-एक प्राचोन ऐतिहासिक स्थान है. नरवर को 'नलगिरि और नलपुर' भी कहा जाता था.' इसका इतिवृत्त ग्वालियर दुर्ग के साथ सम्बन्धित रहा है. विक्रम की १० वीं शताब्दी के अन्त में दोनों दुर्ग कछवाहा राजपूतों के अधिकार में चले गए थे. विक्रम ११८६ में उस पर प्रतिहारों का अधिकार हो गया था. लगभग एक शताब्दी शासन करने के बाद सन् १२३२ में अल्तमश ने ग्वालियर को जीत लिया, तब प्रतिहारों ने नरवर के दुर्ग में शरण ली. विक्रम की १३ वीं शताब्दी के अन्त में दुर्ग को चाहडदेव ने प्रतिहारों से जीत लिया, जो नरवर के राजपूत कहलाते थे. भीमपुर के वि० सं० १३१८ के अभिलेख में इस वंश के सम्बन्ध में कुछ सूचनाएँ की हैं. और उसका यज्वपाल नाम सार्थक बतलाया है. तथा कचेरी के सं० १३३६ के शिलालेख में जयपाल से उद्भूत होने से इस वंश को 'जज्जयेल' लिखा है. नरवर और उसके आस-पास के उपलब्ध शिलालेखों और सिक्कों से ज्ञात होता है कि चाहड देव के वंश में चार राजा हुए हैं. चाहडदेव, नरवर्म देव, आसल्लदेव, गोपालदेव और गणपतिदेव. चाहडदेव ने नलगिरि और अन्य बड़े पुर शत्रुओं से जीत लिये थे. नरवर में इसके जो सिक्के मिले हैं उनमें सं० १३०३ से १३११ तक की तिथि मिलती है. चाहड के नाम का एक लेख सं० १३०० का उदयेश्वर मन्दिर की पूर्वी महराव पर मिलता है, उसमें उसके दान का उल्लेख है. नरवर्म देव भी बड़ा प्रतापी और राजनीतिज्ञ राजा था, जैसा कि उसके निम्न वाक्य से प्रकट है :
___ 'तस्मादनेकविधविक्रमलब्धकीर्तिः पुण्यश्रुतिः समभवन्नरवर्मदेवः.' वि० सं० १३३८ के एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि नरवर्म देव ने धार (धारा नगरी) के राजा से चौथ वसूल की थी. यद्यपि इस वंश की परमारों से अनेक छेड़छाड़ होती रहती थी, किन्तु उसमें नरवर्मदेव ने सफलता प्राप्त की थी. नरवर्म देव के बाद इसका पुत्र आसल्लदेव गद्दी पर बैठा. इसके राज्यसमय के दो शिलालेख वि०सं० १३१८ और १३२७ के मिलते हैं. आसल्लदेव के समय उसके सामन्त जैत्रसिंह ने भीमपुर में एक जिनमंदिर का निर्माण कराया था. इस मंदिर की प्रतिष्ठा संवत् १३१८ में नागदेव द्वारा सम्पन्न हुई थी. इसके समय में भी जैन धर्म को पनपने में अच्छा सहयोग मिला था. जैत्रसिंह जैनधर्म का संपालक और श्रावक के व्रतों का अनुष्ठाता था. आसल्लदेवका पुत्र गोपालदेव था. इसके राज्य का प्रारम्भ सं० १३३६ के बाद माना जाता है. इसका चंदेल वंशी राजा वीरवर्मन के साथ युद्ध हुआ था, जिसमें इसके अनेक वीर योद्धा मारे गये थे. गणपति देव के राज्य का उल्लेख सं० १३५० में मिलता है. यह सं० १३४८ के बाद ही किसी समय राज्याधिकारी
-भीमपुर शिलालेख १४.
१. अस्य प्रापकनकैरमल यशोभि-मुक्ताफलैरखिलभूषण विभ्रमाया । पादोनलक्षविषयक्षितिपक्ष्मलाक्ष्या, मास्ते पुरं नलपुर तिलकायमानम् ।। नलगिरि 'का उल्लेख कचेरी वाले अभिलेख में मिलता है. यथा - 'तत्राभवन्नृपतिरुग्रतरप्रतापः श्रीचाहडस्त्रिभुवनप्रथमानकीर्तिः । दोर्दण्डचंडिमभरेण पुरः परेभ्यो येनाहृता नलगिरिप्रमुखा गरिष्ठाः ।।
-देखो, कचेरी अभिलेख सं० १३३६.
PA INDIATRAPATTINATIONAL CHANDRANI
Suma HITICISM
HARTIAL
)
Jain Educa
H
Ty.org