Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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७५२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय का इसमें गुंफन किया है. कवि की अन्य रचनाएं सं० १७४६-८६ की प्राप्त होने से इसका रचनाकाल, १८ वीं शताब्दी निश्चित है. (१७) सीताहरण चौढालिया- इसमें तपागच्छीय दौलतकीति ने ४६ पद्यों एवं ४ ढालों में सीताहरण के प्रसंग का वर्णन किया है. रचना बीकानेर में संवत् १७८४ में बनाई गई है. इसकी दो पत्रों की प्रति हमारे संग्रह में है.. (१८) रामचन्द्र पाख्यान-इसमें धर्मविजय ने ५५ छप्पय (कवित्तों) में रामकथा. संक्षेप में वर्णन की है. इसकी पांच पत्रों की प्रति (१६ वीं शताब्दी के प्रारम्भ की लि०) मोतीचन्द्र जी खजांची के संग्रह में है. अतः रचना १८ वीं शताब्दी की होनी संभव है. ब्र० जिनदास, गुणकीति महीचन्द्र के रामचरित को छोड़ कर उपर्युक्त सभी रचनाएं श्वेताम्बर विद्वानों की हैं. अन्य दिगम्बर रचनाओं में संवत् १७१३ में रचित(१६) सीताचरित हिन्दी में है जो कवि रायचन्द द्वारा रचित है. उसकी १४४ पत्रों की प्रति आमेर भंडार में है. गोविंद पुस्तकालय, बीकानेर में भी इसकी एक प्रति है. (२०) सीताहरण—दि० जयसागर ने संवत् १७३२ में गंधार नगर में इसकी रचना की. भाषा गुजराती मिश्रित राजस्थानी है. उसकी ११३ पत्रों की प्रति उपर्युक्त आमेर भंडार में है. १६ वीं शताब्दी (२१) ढालमंजरी-रामरास-तपागच्छीय सुज्ञानसागर कवि ने संवत् १८२२ मगसिर सुदी १२ रविवार को इसकी उदयपुर में रचना की. भाषा में हिन्दी का प्रभाव भी है. चरित्र काफी विस्तार से वर्णित है. ग्रंथ ६ खण्डों में विभक्त है. इसकी प्रति लींवडी के ज्ञान भंडार में १८१ पत्रों की है. संभवतः राजस्थानी जैन रामचरित्र ग्रंथों में यह सब से बड़ा है. ग्रंथकार बड़े वैरागी एवं संयमी थे. इनकी चौबीसी आदि रचनाएं भी प्राप्त हैं.. (२२) सीता चउपई-तपागच्छीय चेतनविजय ने संवत् १८५१ के वैसाख सुदि १३ को बंगाल के अजीमगंज में इसकी रचना की. इनको अन्य रचनाओं की भाषा हिन्दी प्रधान है. प्रस्तुत चौपाई की १८ पत्रों की प्रति बीकानेर के उ० जयचन्दजी के भंडार व कलकत्ते के श्रीपूर्णचन्द नाहर के संग्रह में है. परिमाण मध्यम है. (२३) रामचरित-स्था० ऋषि चौथमल ने इस विस्तृत ग्रंथ की रचना की. श्री मोतीचन्दजी खजांची के संग्रह में इसकी दो प्रतियां पत्र ६५ व ८४ की हैं. जिनमें से एक में, अन्त के कुछ पत्र नहीं हैं और दूसरी में अन्त का पत्र होने पर भी चिपक जाने से पाठ नष्ट हो गया है. इसका रचनाकाल सं० १८६२ जोधपुर है. इनकी अन्य रचनाऋषिदत्ता चौपाई सं० १८६४ देवगढ़ (मेवाड़) में रचित है. प्रारम्भिक कुछ पद्यों को पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि समयसुन्दर की सीताराम चौपाई के कुछ पद्य तो इसमें ज्यों के त्यों अपना लिये गये हैं. (२४) रामरासो-लचमण सीता बनवास चौपाई-ऋषि शिवलाल ने संवत् १८८२ के माघ वदि १ को बीकानेर की नाहटों की बगीची में इसकी रचना की. इसमें कथा संक्षिप्त है. १२ पत्रों की प्रति स्व० यति मुकन जी के संग्रह में देखी है. २० वीं शताब्दी (२१) रामसीताढालीया-तपागच्छीय ऋषभविजय ने संवत् १६०३ मिगसिर वदि २ बुधवार को सात ढालों में संक्षिप्त चरित्र वर्णन किया है. भाषा गुजराती प्रधान है. (२६) बीसवीं के उत्तरार्द्ध में अमोलक ऋषि ने सीताचरित्र बनाया है वह मैंने देखा नहीं है पर उसकी भाषा भी हिन्दी प्रधान होगी.
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