Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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७६० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : चतुर्थ अध्याय
जो सौन्दर्य है, वह अन्यत्र दुर्लभ है. भाषा पर उनका असाधारण अधिकार है. उनके शब्दों का भण्डार विशाल है और शब्दालंकार व अर्थालंकार दोनों से उनकी कविता समृद्ध है" : प्रस्तुत रचना एक महाकाव्य है. इसमें १०२ सन्धियाँ हैं. इसमें जैन-परम्परा में मान्य त्रेषठ शलाका पुरुषों का चरितवर्णन हुआ है. ८१ से १२ तक की सन्धियों में हरिवंशपुराण की प्रसिद्ध जैन-कथा को पद्यबद्ध किया गया है. इसकी रचना ६५६-६६५ ई० में हुई : (३) हरिवंशपुराण :-जयपुर के बड़े तेरापंथियों के मन्दिर में उपलब्ध कवि धवल कृत प्रस्तुत कृति कृष्ण-काव्य की दृष्टि से उल्लेखनीय है. इसका कथानक जैन-परम्परागत है और मुख्यतः जिनसेन (प्रथम) कृत हरिवंशपुराण (संस्कृत) पर आधारित है. इस ग्रन्थ में १२२ सन्धियाँ हैं. यह १० वीं शताब्दी की रचना है. (४) सकलविधिनिधान काव्य :-आमेर (राजस्थान) शास्त्रभण्डार में इसकी हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है. ग्रन्थ का प्रमुख विषय विधिविधानों एवं आराधनाओं का उल्लेख व विवेचन है. धार्मिक भावनाओं को व्यक्त करने के लिये प्राचीन कथाओं और उपाख्यानों का आश्रय लिया गया है. ग्रन्थ में ५८ सन्धियाँ हैं. ३६ वीं सन्धि में महाभारत युद्ध का उल्लेख है. इसके रचयिता नयनंदी हैं. कृति का रचनाकाल ११०० के लगभग अनुमान किया गया है : (५) पज्जुण्णचरिउ :-प्रस्तुत कृति १५ सन्धियों की खण्डकाव्य कोटि की रचना है. इसमें श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न का चरित वर्णन हुआ है. इसके रचयिता कवि सिंह (१३ वीं शता० वि० प्रारंभ) थे. कुछ लोगों का अनुमान है कि मूलग्रन्थ सिद्ध नामके किसी कवि की रचना है, क्योंकि ग्रन्थ की प्रथम आठ सन्धियों में कवि का नाम सिद्ध मिलता है, बाद में सिंह. संभव है सिंह कवि ने मूलग्रन्थ का उद्धार किया हो : (६) णेमिणाहचरिउ :-णेमिणाहचरिउ एक खण्डकाव्य है. इसमें ४ सन्धियां व ८३ कड़वक हैं. ग्रन्थ का मुख्य विषय श्रीकृष्ण के चचेरे भाई तथा जैन-परम्परा के २२ वें तीर्थंकर नेमिनाथ का चरित है. इस ग्रन्थ के रचयिता लखमदेव (लक्ष्मणदेव) हैं. ग्रन्थ की रचना १५ वीं शताब्दी के उत्तरकाल में हुई, क्योंकि वि० सं० १५१० की लिखी एक हस्तलिखित प्रति उपलब्ध है. कवि ने स्वयं रचनाकाल का कोई निर्देश नहीं किया है. (७) महाकनि यशकीर्ति व उनके ग्रन्थ :-यशकीर्ति १५ वीं शताब्दी के उत्तरकाल के कवि हैं. कृष्ण-साहित्य की दृष्टि से उनके दो ग्रन्थ 'पाण्डवपुराण' व 'हरिवंशपुराण' उल्लेखनीय हैं. इनमें पाण्डवपुराण को कवि ने कार्तिक शुक्ला अष्टमी बुधवार वि० संवत् १४६७ में समाप्त किया. हरिवंशपुराण की समाप्ति भाद्रपद शुक्ला एकादशी गुरुवार वि० संवत् १५०० में हुई. पाण्डवपुराण में ३४ सन्धियाँ तथा हरिवंशपुराण में १३ सन्धियां व २६७ कडवक हैं. काव्यदृष्टि से हरिवंशपुराण अच्छी रचना है : (८) श्रुतकीर्ति का हरिवंशपुराण :-कवि श्रुतकीर्तिकृत हरिवंशपुराण की हस्तलिखित प्रतिलिपि जयपुर (आमेर) के शास्त्रभण्डार में उपलब्ध है. यह कवि १६ वीं शताब्दी के मध्य में हुए थे. इनके दो ग्रन्थ अभी प्रकाश में आए हैं. (१) हरिवंशपुराण (२) परमेष्ठिप्रकाश. हरिवंश में ४४ सन्धियाँ हैं: डॉ० कोछड़ ने इसे महाकाव्यों में गिना है.६ कृष्ण-चरित का वर्णन करने वाले अपभ्रंश के उक्त काव्य ही अभी तक प्रकाश में आये हैं. अपदंश साहित्य की खोज के साथ और भी कुछ ग्रंथ प्रकाश में आवें, ऐसी पूरी संभावना है.
१. नाथूराम प्रेमा-जैन सा० और इतिहास पृ० ५२५. २. विस्तृत विवरण के लिये देखिये-डा० कोछड़-अपभ्रंश साहित्य पृ० ७२-८५. ३. अपभ्रंश साहित्य-डा० हरिवंश कोछड पृ० १७५. ४. पं० परमानन्द जैन का लेख-अनेकान्त ८।१०११। पृ० ३९१. ५. अपभ्रंश साहित्य-डा० हरिवंश कोछड़ पृ० ११८-१२२. ६. बही पृ० १२८-२८
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