Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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राजाराम जैन : रइधू-साहित्य की प्रशस्तियों में ऐतिहासिक व सांस्कृतिक सामग्री : ६६३
राजाओं ने अपने आक्रमणों से ग्वालियर को जर्जर कर दिया था. उसके समय में चतुर्दिक अनिश्चित परिस्थितियों का वातावरण था. ऐसी स्थिति में राजा डूंगर सिंह को राजगद्दी मिली थी. अनेकों रात्रियाँ घोड़े की पीठ पर ही काटने के बाद उस नरव्याघ्र ने अपने कुशल पराक्रम से शत्रुओं का बल नष्ट कर ग्वालियर के प्रजा-जीवन के इतिहास का एक . नवीन अध्याय प्रारम्भ किया था. रइधू-साहित्य में इसके प्रचुर मात्रा में उल्लेख मिलते हैं. एक स्थान पर कवि ने लिखा है.
तहिं तोमर कुलसिरि रायहंसु, गुण गण रयणाहस लद्धसंसु । अण्णाय णाय सासण पवीणु, पंचंग मंत सत्यहं पवीणु । अरिराय उरत्थलि दिण्ण दाहु, समरंगणि पत्तउ विजयलाहु । खग्गग्गि डहिय जे मिच्छवंसु, जस ऊरिय ऊरिय जे दिसंतु । णिव पट्टालंकिय विउल भालु, अतुलिय बल खलकुल पलयकालु । सिरि शिवगणेस णंदणु पयंडु, णं गोरक्खण विहिणउवसंडु । सत्तंग रज्ज भर दिण्ण खंडु, सम्माणदाण तोसिय सबंधु ।
करबाल पट्टि विष्फुरिय जीहु, पवंत णिवइ गयदलण सीहु ।। राजा डूंगर सिंह का दरबार सभी के लिये समान रूप से खुला रहता था. प्रजा का कोई भी धनी या गरीब व्यक्ति उनके सम्मुख जाकर अपने दुःख-सुख की बातें सुना सकता था. पिछले एक स्थल पर संघपति कमल सिंह के साथ घटित एक घटना का उल्लेख किया ही जा चुका है. उससे यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि वह केवल तलवार का धनी एवं लड़ाकू मात्र ही न था अपितु प्रजा के सुख-दुःख का सच्चा सहभागी, सात्त्विक एवं साहित्य प्रेमी भी था. इससे भी बढ़ कर जो एक नवीन बात ज्ञात होती है वह यह कि वह इतिहासवेत्ता भी था. कल्पना कीजिये ५०० वर्ष पहले के युग की जब कि यातायात के आज जैसे सुविधाजनक एवं शीघ्रगामी साधनों की उस समय कल्पना भी न थी फिर भी डूंगर सिंह ने सैकड़ों मील दूर स्थित सोरठ, आबू तथा दिल्ली आदि के इतिहास की जानकारी प्राप्त की थी तथा उन-उन राज्यों के आदर्शों से प्रेरणाएँ लेता रहा. यह कह सकना तो कठिन है कि महाकवि रइधू उनके गुरु थे किन्तु इतना तो निश्चित ही है कि वह रइधू का सम्मान करता था तथा उन्हें दुर्ग में रहने के लिये सर्वसुख-सम्पन्न निवास स्थान दिया था जैसा कि पूर्व में लिखा ही जा चुका है. उनकी सत्संगति में रहकर ही राजा ने आत्मिक एवं बौद्धिक विकास के साथ ही यदि इतिहास की जानकारी भी प्राप्त की हो तो यह असम्भव नहीं. कवि डूंगर सिंह से स्वयं ही अत्यन्त प्रभावित था. उसकी नीतिमत्ता, कलाप्रेम पराक्रम एवं एकच्छत्र राज्य की स्थापना का वर्णन करते हुए कवि ने लिखा है.२
णीइ तंरगिणी णावइ सायरु, सयल कलालउ णवि दोसायरु । वे पक्वुज्जलु णियपय पालउ, म्लिच्छ गरिंद बंस खय कालउ ।
एयच्छत्तु रज्जु रज्जु जिजो भुंजई, मुणियण विंदह दाणे रंजइ । डूंगर सिंह की पट्टरानी का नाम था चंदादे. उससे एक पुत्र उत्पन्न हुआ जिसका नाम था कीर्तिसिंह. बल, पराक्रम एवं धार्मिक-कार्यों में वह अपने पिता से कम न था. कवि ने उसके सम्बन्ध में लिखा है :
तहु णंदणु णिरुवमु गुण णिहाणु, तेयग्गलु णं पंचक्खु भाणु । णं णवउ णसंकरु पुहमि नाउ, जं जय सिरीए पयडियउ भाउ । सिरि कित्तिसिंधु णामें गरिट, णं चंदु कलायरु जय मणिट्ट ।
१. देखिये-पासणाह०१।४।१-१२. २. देखिये- मेहेसर० ११५५१-३. ३. देखिये-पासणाह०११५.१. ४. देखिये-मेहेसर० ११५।३-५.
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