Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
श्रीअनूपचन्द न्यायतीर्थ, साहित्यरत्न, जयपुर १८वीं शताब्दी की क्रान्तिकारी साहित्यकार: महापंडित टोडरमलजी
महापंडित टोडरमलजी राजस्थान के क्रांतिकारी साहित्यसेवी थे. ये १८ वीं शताब्दी के प्रसिद्ध विद्वान् एवं उच्चकोटि के गद्यसाहित्यकार थे. अपनी अपूर्व एवं असाधारण प्रतिभा के कारण उन्हें 'महापंडित' के नाम से पुकारा जाता है. प्राकृत एवं संस्कृत भाषा पर उनका पूर्ण अधिकार था, इसलिए जो कुछ लिखते उसे मानो यंत्रवत् लिखते. वे केवल २८ वर्ष तक ही जीये किन्तु इतने से अल्प काल में ही उन्होंने इतना अधिक साहित्य रच डाला कि जिसे देखकर बड़ेबड़े विद्वानों को दाँतोंतले अंगुली दबानी पड़ती है. इनके समय में समाज में कोई प्रभावशाली नेता नहीं था. भट्टारकों का भी समाज पर कोई खास प्रभाव नहीं था. वे विद्वत्ता से शून्य होकर शिथिलाचार के पोषक बन गये थे. समाज को एक नयी दिशा की आवश्यकता थी. वह ग्रंथों का स्वाध्याय करना चाहती थी किंतु प्राकृत एवं संस्कृत में होने के कारण वे उनकी स्वाध्यायशक्ति के बाहर हो गये थे. समाज में अन्य कोई जबरदस्त एवं प्रतिभाशाली विद्वान् नहीं था जो उसे नयी दिशा की ओर मोड़ सके. यही नहीं, विद्वान् होने की परंपरा को भी बन्द किया जाने लगा था. स्त्री-शिक्षा तो नाम मात्र की भी नहीं रही थी. मंदिरों का उपयोग स्वाध्याय भक्ति एवं पूजा पाठ करने के साथ-साथ जीमने एवं ताश, चौपड़ आदि खेलने में भी होने लगा था. जन्म :-ऐसे संक्रामक काल में पंडित टोडरमलजी का जन्म वि० सं० १७९७ में जयपुर के प्रसिद्ध ढोलाका वंश में हुआ. ये जाति के खंडेलवाल एवं गोत्र से गोदीका (भांवसा या बडजात्या) थे. पंडित जी के पिता का नाम जोगीदास एवं माता का नाम रंभाबाई था. पंडितजी के शब्दों में ही अपने माता-पिता का नामोल्लेख देखिये--
'रंभापति स्तुत-गुन-जनक जाको जोगीदास सो ही मेरो प्राण है धारे प्रकट प्रकास ॥'
इनके पिता चाकसू के रहने वाले थे और जयपुर नगर की स्थापना के साथ ही यहाँ आकर रहने लगे थे. शिक्षाः-प्रारंभ से ही बालक टोडरमल की शिक्षा एवं बौद्धिक विकास का पूरा ध्यान रखा गया. उनके अध्ययन के लिये समुचित प्रबंध किया गया किन्तु इन की विलक्षण बुद्धि एवं अद्भुत स्मरण शक्ति के कारण अपने शिक्षक से भी अधिक जान लेते और पढ़ाये हुए पाठ से भी अधिक उन्हें सुना देते. १० वर्ष की अवस्था में ही ये बड़े-बड़े सिद्धांतग्रन्थ समझने लगे. कहा जाता है, उन्हें पढ़ाने को काशी से जो विद्वान् आये थे उनसे केवल छह माह में सारा जैनेन्द्रव्याकरण पढ़ डाला. अपनी अलौकिक प्रतिभा एवं विलक्षण बुद्धि के कारण उन्हें एक बार पढ़ने से सब कुछ याद हो जाता था. ये एक-एक शब्द के अनेक अर्थ निकालते और अपने शिक्षक को सुनाया करते. टोडरमलजी के मुख्य गुरु बंशीधरजी थे. वे जयपुर के दि० तेरहपंथियों के बड़े मंदिर में शास्त्र पढ़ा करते थे. कहा जाता है कि एक बार उनसे शास्त्रार्थ करने एक बाहर का विद्वान् पाया. उस समय बंशीधर जी मंदिर में शास्त्र पढ़ रहे थे और अन्य श्रोताओं के साथ टोडरमलजी
HTTPy
Jained
Frary.org