Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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६७८ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय
वज्रस्वामी के पिता धनगिरि इस तुम्बवन के रहनेवाले थे. उपर्युक्त प्रमाणों से यह स्पष्ट है कि यह तुम्बवन अवन्ति देश में था. हम अवन्ति के सम्बन्ध में और तुम्बवन की स्थिति के सम्बन्ध में बाद में विचार करेंगे. पहले यह देख लें कि इसका विवरण अन्य साहित्यों में मिलता है या नहीं. बौद्ध-ग्रन्थों में तुम्बवन तुम्बवन और उसकी स्थिति के सम्बन्ध में बौद्ध-ग्रन्थों में आये एक यात्राविवरण से अच्छा प्रकाश पड़ता है. सुत्तनिपात में बावरी के शिष्यों का यात्राक्रम इस प्रकार वर्णित है :
बावरि अभिवादेत्या करवा च नं पदक्खिण, जटाजिनधरा सव्ये पक्कामु उत्तरामुखा ।३।। अलकम्स पतिद्वानं पुरिमं माहिस्सतिं तदा, उज्जेनिं चापि गोनद्धं वेदिसं वनसव्हय ।३६। कोसंबिं चापि साकेतं सावत्थिं च पुरुत्तमं, सेतव्यं कपिलवत्थु कुसिनारं च मंदिरं ।३७। पावं च भोगनगरं वेसालि मागधं पुरं, पासाणकं चेतियं च रमणीयं मनोरमं ।३८।
-सुत्तनिपात, पारायण वग्ग, वत्थुगाथा (भिक्खु उत्तम प्रकाशित, पृ १०८) बावरी के शिष्य अल्लक से प्रतिष्ठान, माहिष्मती, उज्जैनी, गोनद्ध, विदिशा, वनसव्हय, कोसंबी, साकेत, सावत्थी, श्वेतव्या, कपिलवस्तु, कुशीनारा, पावा, भोगनगर, वैशाली होकर मगधपुर (राजगृह) गये. इसमें वनसव्हय पर टीका करते हुए ५-वीं शताब्दी में हुए थेरा बुद्धघोष ने इसे तुम्बवन अथवा वनसावत्थी लिखा है.४ वनसव्हय का शाब्दिक अर्थ हुआ---'जिसे लोग वन कहते थे'. इसकी टीका बुद्धघोष ने तुम्बव की. 'व' का एक अर्थ 'सम्बोधन'५ भी है. अर्थात् जो 'तुम्ब' नाम से सम्बोधित होता था. इसका दूसरा नाम बुद्धघोष ने वनसावत्थी लिखा है. इससे स्पष्ट हो गया कि तुम्बवन अवन्तिराज्य में विदिशा वर्तमान भेलसा के बाद कोसंबी के रास्ते में था.
वैदिक ग्रंथों में तुम्बवन
बराहमिहिर की बृहत्संहिता में भी तुम्बबन का उल्लेख आया है.
१. राहुल सांकृत्यायन ने कुशीनारा और मंदिर को पृथक् माना है. पर 'मंदिर का अर्थ नगर होता है. यह कुशीनारा के लिए ही प्रयुक्त
हुआ है. इसके लिए हम यहां कुछ प्रमाण दे रहे हैं: (अ) मन्दिरो मकरावासे मंदिरे नगरे गृहे.
-हेमचन्द्राचार्य कृत अनेकार्थ संग्रह, तृतीय कांड श्लोक ६२४, पृ० ६७. (आ) अगारे नगरे पुरं । १८३ | मंदिरं च'.
अमरकोष, तृतीय कांड, पृष्ठ २३५ (खेमराज श्रीकृष्णदास). (इ) नगरं मंदिरं दुर्ग, -भोजकृत समरांगण सूत्राधार भाग १, पृष्ठ ८६.
(ई) मंदिर-बर, देवालय, नगर, शिविर संयुद्ध-वृहत् हि० को० पृ० ६९२. २. राहुल सांकृत्यायन, आनंदकौसल्यापन और जगदीश काश्यप-सम्पादित सुत्तनिपात के नागरी संस्करण में शब्द है 'क्नसव्हयं'. ऐसा ही
पाठ हार्वर्ड ओरियंटल सीरीज, वाल्यूम ३७ में लार्ड चाल्मर्स-प्रकाशित सुत्तनिपात (पृ०२३८) में भी है. पाली इंगलिश डिक्शनरी में भी सव्य शब्द है. उसका अर्थ दिया है. 'काल्ड' नेम्ड,' (पृष्ठ १५६) पर राहुल जी ने बुद्धचर्या (पृष्ठ ३५२) पर 'साव्य' शब्द दिया है. यह पाठ कहीं भी देखने को नहीं मिला. ३. द लाइफ ऐंड वर्क आव बुद्धघोष, ला लिखित, पृष्ठ ६. ४. बारहुत वेणीमाधव बरुमा-लिखित, भाग १, पृष्ठ २८. ५. आटेज संस्कृत इंगलिश डिक्शनरी.
--भाग ३, पृष्ठ १३७७, संस्कृतशब्दाकौस्तुभ, पृष्ठ ७२६. ६. वृहत्संहिता, पंडितभूषण बी० सुब्रह्मण्य शास्त्री-सम्पादित; अ० १४, श्लोक १५, पृष्ठ १६२. 'वृहत्संहिता अर्थात् वाराहीसंहिता
दुर्गाप्रसाद द्वारा सम्पादित और अनुवादित, पृष्ठ ६६.
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