Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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बद्रीप्रसाद पंचोली : महावीर द्वारा प्रचारित आध्यात्मिक गणराज्य और उसकी परम्परा : ६४६
ने इन्द्र का साथ छोड़ दिया था, परन्तु इन्द्र को ऋग्वेद में प्रधान माना गया है.२ वह सम्माननीय है और मरुद्गण उसके पुत्र के समान हैं. मरुतों के देवगण के संक्षिप्त वर्णन से निम्न निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं : (१) समान कुल-परम्परा, पैतृक संबंध आदि के द्वारा गण में एकता बनी रह सकती है. (२) सबको एक सूत्र में बांधने वाली वस्तु धन-समृद्धि है. द्रव्यादि का समान वितरण, पशुधन के प्रति पूज्यभाव एकता
के अन्य कारण हैं. (३) मातृभूमि का प्रेम एकता को जन्म देता है. मरुत एक ही सिन्धु-सिंचित भूमि की सन्तान (सिन्धुमातरः) कहे
(४) गणप्रमुखों तथा गणसदस्यों में कोई बड़ा-छोटा नहीं होता, उनमें विचार वैभिन्य नहीं होता, सबको सन्तति के
विकास के समान साधन उपलब्ध होते हैं. (५) गणसदस्यों की पत्नियाँ उत्तम व सहकर्मिणी होती हैं. क्रीड़ा, उत्सव आदि की सम्यक् व्यवस्था भी एकता का
कारण है. (६) राजा के होते हुए भी गणों की सत्ता रह सकती है. वे अपनी शक्ति व एकता के स्वर से राजा की सामर्थ्य को
शतगुणित कर दिया करते हैं. महामात्य चाणक्य ने संघलाभ को राजा के लिये सर्वोत्तम लाभ माना है.५ ।। (७) गणों से सम्राट का वैमनस्य भी हो सकता है, परन्तु गण राजा के पुत्र के समान हैं. राजा को उन्हें नष्ट करने
का प्रयत्न नहीं करना चाहिए. भारत में गणों का विकास इन्हीं मान्यताओं को लेकर हुआ था. महाभारतयुद्ध के पहले तक भारत में गणराज्य व राजतंत्र साथ-साथ पनप रहे थे. उग्रसेन के राज्य में अन्धक व वृष्णि गण राज्य अपना स्वतंत्र अस्तित्व रखते थे. भारत में धर्म को सर्वोपरि माना गया है जिसके प्रति राजा व गण दोनों ही उत्तरदायी हैं. इस प्रकार यहाँ न राजा ही निरंकुश थे और न गणतंत्र ही. राजा धर्म और प्रजा के प्रति इस सीमा तक उत्तरदायी था कि उसे सबसे अधिक पराधीन व्यक्ति कहा जा सकता है. इसी तरह गणतंत्र इतने स्वतंत्र थे कि वह स्वतंत्रता ही बन्धन बन कर उन्हें संयत बना दिया करती थी. महाभारत युद्ध के बाद भारत में जिस युग का प्रारंभ हुआ, उसमें संघशक्ति की प्रधानता (संघे शक्तिः कलौ युगे) स्वीकार की गई है. सच तो यह है कि भारत का कलियुग का ५ हजार वर्षों का इतिहास संघशक्ति के उत्थान, पतन व पुनरुत्थान का इतिहास कहा जा सकता है. प्रबल व समर्थ राज्यों के विकास के बाद गणजीवन की ओर अभिरुचि का एक कारण महाभारत के भीषण युद्ध में भारत के प्रतिष्ठित राजपरिवारों का नष्ट हो जाना भी है. इसके पहले भी राजतंत्र के साथ पनपने वाले गणतंत्रों के पास राज्य के पारिभाषिक सभी अधिकार थे, परन्तु महाभारत के बाद ये गणसंस्थाएँ राज्य के स्थानापन्न होकर विकसित हुई और उनकी सुव्यवस्था व सामर्थ्य का प्रमाण इस बात से मिलता है कि महाभारतपूर्व भारत पर आक्रमण करने वाले कालयवन के बाद सिकन्दर के समय तक भारत पर आक्रमण करने का दुस्साहस कोई विदेशी आक्रान्ता न कर सका.
१. तत्तिरीयब्राह्मण २१७/१११. २. ऋग्वेद १२३८. ३. ऋग्वेद११००१५. ४. ऋग्वेद १०।७८६. ५. कौटिलीय अर्थशास्त्र ११११११.
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