Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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५८२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : तृतीय अध्याय
इतश्च वसुधावध्वा मौलिमाणिक्यसन्निभा, वेशालीति श्रीविशाला नगर्यस्ति गरीयसी । पाखंडल इवाखण्डशासनः पृथिवीपतिः, चेटीकृतारिभूपालस्तत्र चेटक इत्यभूत् । पृथग्राज्ञी भवास्तस्य, बभूवुः सप्त कन्यकाः, सप्तानामपि तद्राज्यांगानां सप्तेव देवताः । प्रभावती पद्मावती मगावती शिवापि च, जेष्ठा तथैव सुजेष्ठा चिल्लणा चेति ताः क्रमात् । चेटकस्तु श्रावकोऽन्यविवाहनियमं वहन् , ददौ कन्या न कस्मैचिदुदासीन इव स्थितः । तन्मातर उदासीनमपि ह्यापुच्छय चेटकम् , वराणामनुरूपाणां प्रददुः पंच कन्यकाः । प्रभावती वीतभयेश्वरोदायनभूपतेः, पद्मावती तु चंपेश - दधिवाहनभूभुजः । कोशाम्बीश - शतानीकनृपस्य तु मृगावती, शिवा तूज्जयिनीशस्य प्रद्योतपृथिवीपतेः । कुण्डग्रामाधिनाथस्य नन्दिवर्द्धनभूभुजः, श्रीवीरनाथज्येष्ठस्य ज्येष्ठा दत्ता यथारुचिः ।
सुज्येष्ठा चिल्लणा चापि कुमार्यावेव तस्थतुः, रूपश्रियोपमाभूते ते द्वे एव परस्परम् । अन्तिम दो पुत्रियां, जो कुंवारी थीं, उनमें से एक चिल्लणा का विवाह मगध के सम्राट् श्रेणिक के साथ किस प्रकार हुआ और दूसरी सुजेष्ठा जैन साध्वी कैसे बनी, उस पर आगे विचार किया जायगा. ज्येष्ठा किन्तु वय की दृष्टि से कनिष्ठा का जो विवरण ऊपर दिया गया है इससे अधिक जैनग्रंथों में उसके विषय में जानकारी उपलब्ध नहीं होती. प्रभावती
यह चेटक की प्रथम पुत्री है. इसने वीतिभय के राजा उदायन के साथ विवाह किया था. उदायन के जीवन की कुछ, झांकियां कई जैन-ग्रंथों में मिलती हैं. उनमें सबसे पुराना उल्लेख जैन सूत्र भगवतीसूत्र शतक १३ वें के छठे उद्देश में इस प्रकार है: तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधुसोवीरेसु जणवएसु वीतिभये नाम नगरे होत्था. तस्स णं वीतिभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए एत्थ णं मियवणं नाम उज्जाणे होत्था. तत्थ णं वीतिभये नगरे उदायणे नामं राया होत्था...तस्स... रन्नो पभावती नाम देवी होत्था. तस्स णं उदायणस्स रत्नो पुत्ते प्रभावतीदेवीए अत्तए अभीति नाम कुमारे होत्था. ... तस्स णं उदायणस्स रन्नो नियए भायणेज्जे केसी नाम कुमारे होत्था. से णं उदायणे राया सिंधुसोवीरप्पामोक्खाणं सोलसण्हें जणवयाणं वीतिभयप्पामोक्खाणं तिण्हं तेसट्ठीणं नगरागरसयाण महासेणप्पामोक्खाणं दसण्हं राईणं बद्धमउडाणं विदिन्नछत्तचामरवालवीयणाणं अन्नेसिं च बहूणं राइसरतलवर जाव सत्थवाहप्पभिईणं आहेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमारणे समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ. उस काल उस समय सिन्धुसौवीर नाम के जनपद में वीतिभय नाम का नगर था. उस नगर के बाहर उत्तर-पूर्व में मृगवन नाम का एक उद्यान था. उस नगर में उदायन नाम का राजा राज्य करता था. उसकी प्रभावती नाम की रानी थी और अभीति नाम का पुत्र था. उसका केशीकुमार नाम का भानजा था. उस राजा का सिन्धुसौवीर आदि सोलह जनपदों पर, वी तिभय आदि तीन सौ (तिरेसठ) नगरों पर, सैकड़ों खदानों पर, मुकुटबद्ध दस राजाओं पर एवं अनेक रक्षकों, दण्डनायकों, सेठों, सार्थवाहों पर अधिकार था. वह श्रमणोपासक था. जैनशास्त्र प्रतिपादित जीवादि तत्वों का जानकार था. इत्यादि.... इस सूत्र से यह निश्चित हो जाता है कि प्रभावती का विवाह उदायन से हुआ था. आवश्यकचूणि का उपरोक्त कथन भी इसी प्राचीन सूत्रपरम्परा पर आधारित है. उपरोक्त सूत्र में महासेन आदि दस मुकुटबद्ध राजाओं पर उदायन का अधिकार था, यह वाक्य ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत महत्त्व रखता है, महासेन के सिवा अन्य नौ आज्ञांकित राजा कौन थे यह किसी भी जैन ग्रंथ में नहीं मिलता. किन्तु महासेन उदायन का आज्ञांकित राजा कैसे बना, इसका कई जैन ग्रंथों में विवरण प्राप्त होता है. यह महासेन और कोई नहीं, इतिहासप्रसिद्ध अवंती का राजा चंडप्रद्योत ही था. इसी का
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