Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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साध्वी कुसुमवती सिद्धान्ताचार्या : भारतीय संस्कृति में संत का महत्त्व : ५६७ उनको देखकर ही राजा प्रभावित हो जाता है और कहता है-'अहो इन महात्मा की कमनीय कान्ति, अतुल रूप सम्पति, क्षमा, सौम्यभाव तथा निर्लोभता आदि गुण धन्य हैं ! इनकी निस्संगवृत्ति प्रशंसनीय है.' मुनि ने ध्यान खोल कर राजा श्रेणिक को अनाथ-सनाथ का रहस्य समझाया. विशदरूप में अपना जीवन कह कर उपदेश दिया. राजा श्रेणिक अनाथी मुनि का उपदेश सुनकर इतना प्रभावित हुआ कि वह बौद्धधर्म को छोड़ कर जैन धर्मावलम्बी बन गया.
३. अंगुलीमाल और महात्मा बुद्ध : 'क्षणमपि सज्जनसंगतिरेका, भवति भवार्णवतरणे नौका' सज्जन पुरुषों की एक क्षण की भी संगति महान् फलदायिनी होती है, वह संसार रूप समुद्र से पार लगा देती है. महात्मा बुद्ध की संगति का प्रभाव अंगुलीमाल पर ऐसा पड़ा कि वह घोर हिंसक भी अहिंसक बन गया. श्रावस्ती के जंगल में एक लुटेरा रहता था. वह मनुष्यों को लूट कर उनकी अंगुलियाँ काट लेता था और उनकी माला बना कर पहनता था. अत: वह 'अंगुलीमाल' के नाम से प्रख्यात हो गया था. श्रावस्ती की सारी प्रजा उससे हैरान थी. राजा भी उसको अपने वश में नहीं कर सकता था. यह बात सुनकर महात्मा बुद्ध उस जंगल की ओर गये. अंगुलीमाल ने दूर से बुद्ध को आते हुए देखा तो सोचा-'इस जंगल में कोई भी अकेला आने की हिम्मत नहीं करता. यह मानव कैसे अकेला आ रहा है ? क्या इसे अपनी जान प्यारी नहीं है ?' वह बुद्ध के सामने आया और खड़ा होकर बोला --- 'ठहरो, आगे मत बढ़ो' तब चलते-चलते ही महात्मा ने कहा—'मैं तो खड़ा हूँ, लेकिन तुम खड़े रहो.' यह सुनकर वह लूटेरा असमंजस में पड़ गया और सोचने लगा-'यह कैसा मानव है, जो स्वयं चल रहा है फिर भी अपने को खड़ा कह रहा है. और मैं खड़ा हूँ फिर भी मुझे कहता है--'खड़े रहो.' बुद्ध ने उस दस्यु को उपदेश देते हुए कहा—'भाई, मैं तो प्रेम और मैत्री में स्थिर हूँ, लेकिन तू अभी अस्थिर है. अतः स्थिर हो जा.' महात्मा बुद्ध की वाणी का उस लुटेरे पर ऐसा प्रभाव पड़ता है कि वह उसी क्षण तथागत का शिष्य बन गया.
४. हेमचन्द्राचार्य और कुमारपाल : परमशैव कुमारपाल पर हेमचन्द्राचार्य का ऐसा प्रभाव पड़ा कि वह परमाहत बन गया. एक दिन हेमचन्द्राचार्य गोचरी (भिक्षा) लेकर आये ही थे कि कुमारपाल आचार्य के दर्शनार्थ आ पहुँचे. राजा ने अपने गुरु आचार्य के पात्र में मक्की की घाट (दलिया) देखी. कुमारपाल ने कहा- 'स्वामिन् ! आप मेरे गुरु होकर यह मक्की की घाट लाते हैं ? क्या आपको सुन्दर पौष्टिक आहार नहीं मिलता ?' आचार्य ने कहा-'इस संसार में बहुत ऐसे गरीब मानव हैं जिनको उदरपूर्ति करने को घाट भी प्राप्त नहीं होती है. उनकी अपेक्षा तो मैं बहुत ही सुखी हूँ.' आचार्य के शरीर पर जीर्ण-शीर्ण वस्त्र देखकर कुमारपाल ने कहा-'आप मेरे जैसे राजा के गुरु होकर फटे हुए और मोटे वस्त्र क्यों धारण करते हैं ?' आचार्य ने उत्तर दिया-'राजन् ! मुझे ऐसे वस्त्र तो मिलते हैं किन्तु बहुत से गरीब लोगों को तो लज्जानिवारणार्थ फटे वस्त्र भी उपलब्ध नहीं होते हैं. कलिकालसर्वज्ञ आचार्य से कुमारपाल बहुत ही प्रभावित हुए.
५. हीरविजय सूरीश्वर और सम्राट अकबर : अकबर पर सूरीश्वर का ऐसा प्रबल प्रभाव पड़ा कि आचार्य ने अकबर के जीवन में अहिंसा की ज्योति जगा दी. हीरविजय सूरि अकबर के राजदरबार में जाकर उपदेश देते थे. उससे प्रभावित होकर अकबर ने अपने राज्य में 'अमारी' की घोषणा करवा दी. सच्चे संत का प्रभाव विश्व पर ऐसा पड़ता है.
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