Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४१४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय
भक्ति का समन्वय
संसार के सभी धर्मों में भक्ति का उल्लेखनीय स्थान है. जो ईश्वर की सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो ईश्वर की सत्ता को स्वीकार नहीं करते, उनका भक्ति तत्त्व अनेक दृष्टियों से समान नहीं है. गीता का अध्ययन करने से पता चलता है कि ईश्वर की सत्ता स्वीकार करके भी गीताकार निष्काम भक्ति पर बहुत जोर देते हैं. ऐसा ज्ञात होता है कि गीताकार पर कर्तस्ववाद की कोई छाप ही नहीं है. गीताकार की भक्ति और जैनभक्ति में अनेक दृष्ठियों से साम्य है किन्तु उपास्य का स्वरूप दोनों में एक-सा नहीं है. विभिन्न धर्मों में जो भक्तितत्त्व की व्याख्या मिलती है उसका अनेकान्तवाद के आधार पर समन्वय किया जा सकता है. इस प्रकार के समन्वय की आज अत्यन्त आवश्यकता है. अतः साध्य की सिद्धि के लिये उसका निष्कपट भाव से प्रयोग करना चाहिए, यही भक्तियोग की मर्यादा है.
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