Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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५१६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय नहीं, प्रजा के नैतिक कानून की और प्रजा की सामुदायिक चारित्र की सत्ता महान् है. आखिर ब्रिटिश शासन समाप्त हुआ. अहिंसा-शक्ति वाली प्रजा की विजय हुई. गांधीजी गये. एक शून्यता व्याप गई. सद्भाग्य से इसी अन्तराल में भालनलकांठा प्रयोग इसी अनुसंधान में शुरू हुआ. पुनः यह सूत्र गूंज उठा—'राज्य की अपेक्षा प्रजा महान् है. प्रजा की अपेक्षा नैतिकता महान् है ! और नैतिकता अध्यात्मलक्षी बनी रहे इसके लिये क्रान्तिप्रिय साधु साध्वियों का मार्गदर्शन अनिवार्य है.' यद्यपि भालनलकांठा प्रदेश का विस्तार स्वल्प है. वहां (१) क्रान्ति-प्रिय साधु प्रेरणा (२) रचनात्मक कार्यकर्ताओं की संस्था का संचालन (३) नैतिक ग्राम संगठन (४) उसका कांग्रेस के साथ (सत्य, अहिंसा के लक्ष्य को सुरक्षित रखते हुये) अनुसंधान के साथ सफलता प्राप्त की जा चुकी है, किन्तु गहराई के साथ यदि व्यापकता पर्याप्त प्रमाण में न आवे तो सम्पूर्ण सफलता की दिशा में आगे बढ़ने के बदले पीछे हटना कहलायगा. इसी हेतु से जैसे पच्चीस वर्ष गुजरात के ग्रामों को दिये गये हैं, उसी प्रकार अन्तिम लगभग ६ वर्ष से बम्बई जैसी महानगरी के साथ और इतर प्रान्तों के साथ गाढ़ा सम्पर्क साधने के लिये मैं और साथी श्रीनेमिमुनि प्रयत्नशील हैं. इसी दृष्टि से नेमिमुनि ने मद्रास में चातुर्मास किया और लगभग आठ प्रान्तों का प्रवास किया. इसीलिए हम दोनों ने दिल्ली में चातुर्मास किया और अब कलकत्ते की ओर प्रयाण करने का निश्चय किया है.
अब कांग्रेस का कायापलट हो रहा है. कांग्रेस राज्य की अपेक्षा, कांग्रेस का संस्था-संगठन महान् है. इतनी बात उसने विधिपूर्वक स्वीकार करने की तैयारी की है. किन्तु जब तक काँग्रेस ग्रामों, महिलाजाति और पिछड़ी हुई जातियों के वर्गों की नैतिक संस्थाओं का मार्गदर्शन स्वीकार नहीं करती तब तक सच्ची कायापलट होना अशक्य है. ऐसी परिस्थिति में यदि क्रान्तिप्रिय-साधु साध्वी अपना आध्यात्मिक बल ऊपरी दृष्टि से नाम मात्र के लिए बनी हुई ग्रामों और शहरों की जनसंस्थाओं को अर्पित करें-गांधीयुग के रचनात्मक कार्यकर्ता और उपर्युक्त साधु-साध्वी के श्रद्धालु श्रावक-श्राविकाएं तथा संन्यासी भक्त जन अपना नैतिक बल संस्थारूप बन कर उन्हें प्रदान करें और जहां ऐसी संस्थाएं न हों, वहां उन्हें खड़ी करने में लग जाएं तो कांग्रेस में कायापलट होना सुशक्य है. अगर ऐसा हुआ तो भले ही ऐसे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका विरल मिलें, परन्तु जनशासन के पाये पर निर्भर जिनशासन की इमारत सुदृढ़ बन जाएगी. सद्गत पूज्य श्रीहजारीमलजी महाराज के संतपन को जब श्रद्धांजलि के रूप में यह स्मारक-ग्रन्थ अपित किया जा रहा है, तब यदि जिनशासन के पाये जनशासन का ठिकाना न हो और सत्ता के सामने जनता, जनसेवक और साधु-सन्त मस्तक झुकाते रह जाएं, तो यह अंजलि कैसे सार्थक बनेगी ? जब छठे आरे के अन्त तक, भले ही छोटा सही, चतुर्विध संघ रहना है, तब पंचम आरे में यह महत्त्वपूर्ण काम क्यों नहीं बन सकता ? अवश्य बनेगा.
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