Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
पं० के० भुजबली शास्त्री : कर्णाटक के जैन शासक : १७३
के ई० सन् १३६५ का एक लेख बहुत ही महत्त्वपूर्ण है. यह लेख श्रवणबेल्गोलस्य 'भंडारिबसदि' में आज भी मौजूद है. इस लेख में लिखा है कि जैनधर्मावलबियों के द्वारा बुक्कराय से वैष्णवों की ओर से होने वाले अत्याचार की शिकायत की जाने पर बुक्कराय ने जैन और वैष्णव दोनों सम्प्रदायों के प्रभावशाली व्यक्तियों को एकत्रित कर जैन भक्तों का हाथ वैष्णवों के हाथ में रख कर, दोनों में मेल कराया. साथ ही घोषणा की कि जैन और वैष्णव दोनों मत अभिन्न हैं. दोनों एक ही शरीर के अंग हैं. इसी प्रकार चेंगाल्व, कोंगाल्व, शांतर आदि दक्षिण के कई जैन सामंत शासक भी काफी प्रसिद्ध रहे. खासकर तोलव [दक्षिण कन्नड] के बेररस, बंग, अजिल, मूल, चौट, सेवंत, बिण्णाणि, कोन्न आदि कई सामंत शासक, पक्के जैन-धर्मावलंबी हो वैभवपूर्वक यहाँ पर शासन करते रहे. इन सामंतों में से बैररस के द्वारा कारकलस्थ गोम्मट-मूर्ति और निम्मण्ण अजिल के द्वारा वेणूरस्थ गोम्मट-मूर्ति समारोहपूर्वक स्थापित की गई थी. इस प्रकार एक जमाने में कर्णाटक में जैनधर्म लिये के जैन शासकों का बड़ा बल रहा. वह जमाना जैनधर्म के लिये सुवर्ण-युग ही था.
SATH
हालपण
Jain Education Intemational
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org