Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४२८ : मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय
का अखण्ड अविछिन्न सूत्र हाथ लग जाता है और समस्त विनाशशीलों में अविनाशीतत्त्व - ' विनश्यत्सु अविनश्यन्तं' का स्वर्णसूत्र हाथ लग जाने पर मानव विश्वकल्याण की कामना से ओतप्रोत होकर इसका उद्घोष करता है—
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यंतु मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् । दुर्जनः सज्जनो भूषात् सञ्जनः शान्तिमाप्नुयात् शान्तः मुच्येत् बंधेभ्यो मुक्तश्चान्यान् विमोचयेत् ।
संसार में सभी जीवजन्तु कीट पतंग स्थावर जंगम सुखीहों, सभी निरामय हों, सभी कल्याण कामी मंगलदृष्टिसम्पन्न हों किसी को भी किसी प्रकार दुख न हो. दुर्जनों में सज्जनता आ जाय, सज्जनों को शान्ति प्राप्त हो, जो शान्त हैं वे बंधनों से मुक्त हो जाएँ और जो मुक्त हैं वे मायाबद्ध जीवों को मुक्त
करें.
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