Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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४५६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय उपनिषत् - ईश, केन, कठ, प्रश्र, मुण्डक, माण्डूक्य, ऐतरेय, तैत्तरीय, छान्दोग्य, बृहदारण्यक और श्वेताश्वतर अधिक प्रामाणिक हैं. चूंकि इन उपनिषदों में महाभारत काल से लेकर बुद्ध, महावीरकाल तक की वैदिक और श्रमण दो मौलिक संस्कृतियों के सम्मेलन की कथा अंकित है.' चूंकि इनमें जिज्ञासु ऋषियों की सरल विचारणा, सत्यपरायणता और तत्कालीन आध्यात्मिक शिक्षा-दीक्षा के जीते-जागते चित्र दिये गए हैं, चूंकि इन में आर्य ऋषियों के तत्त्वज्ञान का अंतिम निष्कर्ष दिया हुआ है जो वेदान्तदर्शन के नाम से प्रसिद्ध है, चूंकि ये आधुनिक हिन्दू दर्शनशास्त्र के मूलाधार हैं, इन्हीं का दोहन करके २०० बी० सी० के लगभग शुंग काल में गीता का विकास हुआ है, इन्हीं का दोहन करके २०० बी० सी० के लगभग बादरायण ऋषि के नाम से ब्रह्मसूत्र की रचना की गई है, इसलिये इनका भारतीय साहित्य में एक अमूल्य स्थान है. बुद्ध और महावीर से पहले की भारतीय संस्कृति की जांच करने के लिये इनका अध्ययन बहुत ही आवश्यक है. उस जमाने की शिक्षापद्धति के अनुसार इन उपनिषदों की कथनशैली आलंकारिक है. तत्त्व-बोध के लिये नित्य अनुभव में आनेवाली प्राकृतिक वस्तुओं को प्रतीक रूप में (Symbols) प्रयुक्त किया गया है. जगह-जगह याज्ञिक परिभाषाओं को भी काम में लाया गया है: आध्यात्मिक आख्यानों को रूपकों की (Parables) शक्ल में पेश किया गया है. इस कारण पिछले आचार्यों को इन्हें अपने-अपने साम्प्रदायिक साँचे में ढालने के लिये इनकी व्याख्या करने में खींचातानी करने की बहुत सुविधा मिल गई है. इस खींचातानी के कारण ही दार्शनिक युग में ब्राह्मण आचार्यों ने कितने ही नये वेदान्त दर्शनों को जन्म दिया है. कुछ भी हो, यह बात निर्विवाद सिद्ध है कि उस जमाने के ऋषियों की कथनशैली दार्शनिक और वैज्ञानिक ढंग की न थी.
उस समय ब्रह्मज्ञान के प्रसार में पिप्पलाद, नारायण, श्वेतकेतु, भृगु, वामदेव, अंगिरस याज्ञवल्क्य आदि ऋषियों के अलावा जिन क्षत्रिय राजाओं ने बड़ा भाग लिया है, वे हैं कैकेयदेश के अश्वपति, पांचाल देशके प्रवाहण जैबलि, काशीके अजातशत्रु, विदेह के जनक और दक्षिण देशके वैवस्वत यम आदि. इसके आख्यानों के कुछ नमूने यहां उद्धृत किये जाते हैं. प्रवाहण जयबलि की कथा-एक वार अरुणि-गौतम ऋषि का पुत्र श्वेतकेतु पांचाल देश के क्षत्रियों की सभा में गया. तब पांचाल के राजा प्रवाहण जयबलि ने उस को कहा-हे कुमार ! क्या तुझे तेरे पिता ने शिक्षा दी है ? यह सुनकर उसने उत्तर दिया-हाँ भगवन् ! उसने मुझे शिक्षा दी है. राजा ने कहा-हे श्वेतकेतु ! जिस प्रकार मर कर प्रजाएँ परलोक को जाती हैं, क्या तू उसे जानता है ? उसने कहा-भगवन् ! मैं नहीं जानता. राजा ने कहा-जिस प्रकार से प्रजायें पुनः जन्म लेती हैं क्या तू उसे जानता है ? उसने कहा-भगवन् ! मैं नहीं जानता. राजा ने पूछा-क्या तू देवयान और पितृयान के मार्गों की विभिन्नता को जानता है ? उसने कहा-भगवन् ! मैं नहीं जानता. उसके बाद राजा ने फिर पूछा-जिस प्रकार यह लोक और परलोक कभी जीवों से नहीं भरता, क्या तूउसे जानता है ? उससे कहा-भगवन् ! मैं नहीं जानता. राजा ने फिर पूछा-जिस प्रकार गर्भ में पुरुषाकृति बन जाती है, क्या तू उसे जानता है ? उसने कहा-भगवन् ! मैं नहीं जानता. तदनन्तर राजा ने कहा-जो मनुष्य इन प्रश्नों का उत्तर नहीं जानता वह किस भांति अपने को सुशिक्षित कह सकता है ? इस प्रकार प्रवाहण राजा से परास्त हो वह श्वेतकेतु अपने पिता अरुणि के स्थान पर गया और कहने लगाआपने मुझे विना शिक्षा दिये हुए ही यह कैसे कह दिया कि मुझे शिक्षा दे दी गई है ? राजा ने मुझसे पांच प्रश्न पूछे, परन्तु मैं उनमें से एक का भी उत्तर देने में समर्थ न हो सका. तब अरुणि बोला--मैं भी इन प्रश्नों का उत्तर नहीं जानता. यदि मैं इनका उत्तर जानता होता तो तुम्हें कैसे न बताता !
3. A. Upnishads are the product of the Aryan and Drividian intermixture of Cultures.
--Keith-Religion and Philosophy of the Vedas and Upnishads. Page 447. B. Dr. Winternitz-History of Indian Literature. Vol. I. P. 226-244. २. छान्दोग्य उपनिषत् ५-३. बृहदारण्यक उपनिषत् ६२.
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