Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३७६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय अन्तर्लीन हो जाते हैं, जीव द्रव्य के साथ कार्मणवर्गणायें अपना एकक्षेत्रावगाही सम्बन्ध स्थापित कर लेती हैं, अर्थात् आकाश के जिस और जितने प्रदेशों में जीव स्थित होता है, अपनी सूक्ष्म-परिणमन शक्ति के बल पर ठीक उन्हीं और उतने ही प्रदेशों में उससे सम्बन्धित कार्मणवर्गणाएँ भी स्थित हो जाया करती हैं. इस स्थिति (एकक्षेत्रावगाही सम्बन्ध) का यह तात्पर्य कदापि नहीं कि वे दोनों एक दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं. इस सम्बन्ध के रहते हुए भी जीव, जीव ही रहता है और पुद्गल पुद्गल ही. दोनों अपने-अपने मौलिक गुणों (Fundamental realities) को एक समय के लिए भी नहीं छोड़ते. संघर-जीव अपने ही पुरुषार्थ से निरन्तर संयुक्त होती रहने वाली कार्मण वर्गणाओं पर रोक लगा सकता है, और यही रोक संवर तत्त्व कहलाती है. निर्जरा-इसी प्रकार, जीव अपनी पूर्व-संयुक्त कार्मणवर्गणाओं को क्रमश: निर्जीर्ण या दूर भी कर सकता है और यही निर्जरा तत्त्व है. मोक्ष-अपनी कार्मणवर्गणाओं से सदा के लिए पूर्णरूपेण मुक्त हो जाना जीव का मोक्ष कहलाता है.'
पुद्गल का वर्गीकरण पुद्गल क्या है, यह हम जान चुके हैं. वह एक द्रव्य है. उसके परमाणु-परमाणु में प्रतिसमय उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य की अखण्ड प्रक्रिया वर्तमान है. इस प्रक्रिया की दृष्टि से, जितने भी पुद्गल हैं चाहे वे परमाणु के रूप में हों, चाहे स्कन्ध के रूप में, सब एक समान हैं. उनमें भेद या वर्गीकरण को अवकाश ही नहीं. अतः हम कह सकते हैं कि द्रव्यदृष्टि से पुद्गल का केवल एक ही भेद है, अथवा यों कहिए कि वह अभेद है. पुद्गल का अधिकतम प्रचलित और सरल वर्गीकरण किया जाता है अणु (परमाणु) और स्कन्ध के रूप में. हम यहाँ इन दोनों वर्गों का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करेंगे.
अणु
अणु और उसकी परिभाषा - अणु, पुद्गल का वह सूक्ष्मतम अंश है जिसका पुनः अंश हो ही न सके.४ अरणु का विभाजन नहीं किया जा सकता, वह अविभाज्य है.५ अणु को पुद्गल का अविभाग-प्रतिच्छेद भी कहा जाता है. अणु की मुख्यतः पांच विशेषतायें हैं—(क) सभी पुद्गल-स्कन्ध अणुओं से ही निर्मित हैं. (ख) अणु नित्य, अविनाशी और सूक्ष्म है, वह दृष्टि द्वारा लक्षित नहीं हो सकता, इस बात का समर्थन वैज्ञानिकों द्वारा भी होता है, जब हम किसी परमाणु का निरीक्षण करते हैं तो हर हालत में हम कोई-न-कोई बाहरी उपकरण उपयुक्त करते हैं. यह उपकरण किसी-न-किसी रूप में परमाणु को प्रभावित करता है और उसमें परिवर्तन ला देता है. और हम यही परिवर्तित परमाणु देख पाते हैं, वास्तविक परमाणु नहीं.६
१. प्रास्रबनिरोधः संवरः। -प्राचार्य उमास्वामी; तत्त्वार्थ सत्र, अ०६, ०. २, बन्धहेत्वभावनिर्जराज्य कृत्स्नकर्मविप्रमोक्षो मोक्षः । -दही अ०१०, सू०२. ३. (१) अगवः स्कन्धाश्च।-वही, अ०५, सू० २५.
(२) एगत्तेण पुहुत्तेण खंथा य परमाणु य । -उत्तरज्झयणमुत्त ३६,११. ४. नाणोः। -आचार्य उमास्वामीः तत्वार्थसूब अ०५. ५. अविभाज्यः परमाणुः। -जैनसिद्धान्तदीपिका, प्रकाश १ सत्र १४. ६. सर डब्लू० सी० पियर : विज्ञान का संक्षिप्त इतिहास-(हिन्दी अनु० पृ० २६६)
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