Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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रतनलाल संघवी : भारतीय दर्शनों में आत्मवाद : ४०१
ईश्वर-तत्त्व के साथ आत्म-तत्त्व का किसी न किसी प्रकार से सम्बन्ध अवश्य है. दोनों का पृथक्-पृथक् अस्तित्व होते हुए भी आश्चर्य है कि दोनों का मौलिक स्वरूप समान है. (६) सभी भारतीय दर्शनों ने आत्म-तत्त्व को चेतनामय, ज्ञानमय, और अनुभूति-शक्ति-संपन्न स्वीकार किया है. इससे निश्चय होता है कि भारतीय दर्शन का चिन्तन मूल में एक जैसा ही है. यह है भारतीय-दर्शनों में आत्मवाद का सुन्दर सिद्धांत. 'सत्, चित् और आनन्द' की प्राप्ति करना ही इसका मूल ध्येय है तथा चिरंतन सत्य का अनुसंधान करते हुए आत्म-तत्त्व का जो 'शिव-स्वरूप' है उसके मधुर संदर्शन करने में ही यह भारतीय दर्शन समूह अपने आप को कृतकृत्य मानता है.
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