Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३७६ पुद्गल का यह वर्गीकरण, विश्व के अनन्त पुद्गल-परमाणुओं का यह पृथक्-पृथक् विभाजन, इतना वैज्ञानिक बन पड़ा है कि वह आधुनिक विज्ञान-वेत्ताओं के लिए आश्चर्य का विषय है. इस वर्गीकरण में हम कुछ उन तत्त्वों का भी अन्त
र्भाव करते चलेंगे जिनका आविर्भाव या आविष्कार इसी युग में हुआ है. स्थूल-स्थूल [Solids]. लकड़ी पत्थर आदि जैसे ठोस पदार्थ इस वर्ग में आते हैं. स्थूल [Liquids]. इस वर्ग में जल, तेल आदि द्रव पदार्थ आते हैं. स्थूल-सूचम [Visible Energies]. प्रकाश, छाया, अन्धकार आदि जैसे दृश्य पदार्थ इस वर्ग में लिए गये हैं, प्रकाश ऊर्जा [Energy] भी इसी वर्ग में रखी जा सकती है. सूक्ष्म-स्थूल [Ulteravisible but intrasensual matters]. ऐसे पदार्थ इस वर्ग में आते हैं जिन्हें हम नेत्र इन्द्रिय से तो नहीं जान पाते लेकिन शेष चारों में से किसी-न-किसी इन्द्रिय द्वारा अवश्य जान सकते हैं. इसके उहाहरण हैं उद्जन [Hydrogen], जारक [Oxygen] आदि वातियें [Gases] और ध्वनि ऊर्जा [Sound energies] आदि जैसी ऊर्जाये. सूचम [Ultravisible matter]. शास्त्रीय भाषा में जिन्हें कार्मणवर्गणा कहते हैं, उन पुद्गलों को इस वर्ग में रखा गया है. ये वे सूक्ष्म स्कन्ध हैं जो हमारी विचार-क्रिया जैसी क्रियाओं के लिए अनिवार्य हैं. हमारे विचारों और भावों का प्रभाव इन पर पड़ता है तथा इनका प्रभाव जीव-द्रव्य एवं अन्य पुद्गलों पर पड़ता है. सूक्ष्म-सूचम- इस वर्ग में सूक्ष्मतम स्कन्ध आते हैं. ये नग्न नेत्र [Naked cyc] से नहीं ही देखे जा सकते. इसके उदाहरणों में विद्युदणु [Electrons] उद्यदणु [positrons], उद्युत्कण [protons] और विद्युत्कण [Neutrons] आदि आते हैं. तेईस भेद एक अन्य दृष्टि से पुद्गल के २३ भेद भी किये जाते हैं.' इन भेदों को शास्त्रीय शब्दों में वर्गणाएँ कहते हैं. उनमें से कुछ वर्गणाएँ हैं—पाहार वर्गणा, भाषा वर्गणा, मनोवर्गणा कार्माण वर्गणा और तेजस् वर्गणा आदि. इन वर्गणाओं के अनेक उपभेद भी होते हैं.२
छायातवमादीया थूलेदरखंधमिदि वियाणाहि । सुहुमथूले दि भणिया खन्धा चउरक्खविस्या य । सुहमा हवन्ति खंधा पाओग्गा कम्मवग्गणस्स पुणो ।
तन्निवरीया खंधा अइसहुमा इदि परूवेंदि। -आचार्य कुन्दकुन्द : नियमसार, गा० २१-२४. १. अणुसंखासंखेज्जाता य अगेजनगेहि अंतरिया ।
आहारतेजभासायणकम्मश्या धुवक्खन्य। सांतर निरन्तरेण य सुराणा पत्तेयदेवधुवसुराणा। बादरणिगोदसुगरण। सुहुम गिगोदा एभो महक्खन्धा। -आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती : गो० जी०, गा०५६३-६४. २. परमाणुबग्गण म्मि य, अवरुक्कररां च सेसगे अस्थि ।
गेझमहक्खन्धाणं वरमहिय सेसगं गुणियं । ---वही; गा०५६५.
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