Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मिलापचन्द कटारिया जीवतत्त्व विवेचन : ३६३
कि उस वक्त तेज का प्रभाव होने से चेतना पैदा नहीं होती है और चेतना पैदा होने योग्य विशिष्ट वायु की उपलब्धि भी नहीं होती है, तो फिर यों ही क्यों न कहो कि वह तेज और विशिष्ट वायु आत्मतत्त्व के सिवाय अन्य कोई नहीं है ?
प्रश्न- जैसे मिट्टी जल आदि के संयोग से धान्य आदि पैदा होना प्रत्यक्ष देखते हैं, वैसे ही भूतों के संयोग से जीव पैदा होते हैं ऐसा मानना भी उचित ही है.
उत्तर
-धान्य के पैदा होने में मिट्टी जलादिक उपादान कारण नहीं है. उपादान कारण उनके बीच में हैं. वे बीज मिट्टी जलादि से भिन्न हैं. उसी तरह शरीर में चेतना भूत समुदाय की नहीं है किन्तु भूत समुदाय से भिन्न आत्मा की है. जैसे एक वृद्ध पुरुष का ज्ञान युवावस्था के ज्ञान पूर्वक होता है और युवावस्था का ज्ञान बाल्यावस्था के ज्ञान पूर्वक होता है, उसी प्रकार बाल्यावस्था का ज्ञान भी उसके पूर्व की किसी अवस्था का होना चाहिये. वह अवस्था उस जीव के पूर्व भव की ही सम्भव है. जैसे जीव को वृद्धावस्था में अनेक अभिलाषायें होती है. उसके पूर्व युवावस्था में भी होती थीं और युवावस्था के पूर्व बाल्यावस्था में होती हैं. वैसे ही बाल्यावस्था के पूर्व भी कोई अवस्था होनी चाहिये ताकि इच्छाओं की परम्परा टूट न सके. वह अस्वथा जीव का पूर्व जन्म ही हो सकती है. इसी कारण से तो जन्म लेते ही बछड़ा गाय का स्तन चूसने लगता है. इससे यही सिद्ध होता है कि भवांतर से जीव आकर शरीर को अपना आश्रय बनाता है. वर्तमान में भी समाचार-पत्रों में पूर्व जन्म की घटनायें छपती रहती हैं. अगर पूर्व जन्म नहीं है तो बिल्ली का चूहे से और मयूर का सर्प से स्वाभाविक वैर होने का क्या कारण है ?
प्रश्न -यदि प्रत्येक शरीर में जीव भवांतर से आता है तो इसका अर्थ है वही पूर्वजन्म के शरीर में था. शरीर बदला है जीव तो वही का वही है. याद क्यों नहीं हैं ?
उत्तर - जैसे वृद्धावस्था में किन्हीं को अपनी बाल्या अवस्था की बातें याद रहती हैं और किन्हीं को नहीं रहती हैं, इसी प्रकार किसी जीव को भवांतर की बातें याद आजाती हैं, किसी को नहीं. इसमें कारण जीव की धारणा शक्ति की हीनाधिकता है. दूसरी बात यह है कि जिन बातों पर अधिक सूक्ष्म उपयोग लगाया गया हो वे सुदूरभूत की होने पर भी याद आ जाती हैं और जिन पर मामूली उपयोग लगाया गया हो, वे निकट भूत की भी स्मरण में नहीं रहती हैं. मनुष्य को अपनी गर्भावस्था का स्मरण इसीलिये नहीं रहता है कि वहां उसको किसी विषय पर गम्भीरता पूर्वक सोचने की योग्यता ही पैदा नहीं होती है. इसके अतिरिक्त पूर्व शरीर को छोड़कर अगले शरीर को धारण करने में प्रथम तो बीच में व्यवधान पड़ जाता है, दूसरे अगला शरीर पूर्व शरीर से भिन्न प्रकार का होता है और उसके विकसित होने में भी समय लगता है. चूंकि जीव की ज्ञानोत्पत्ति में शरीर और इंद्रियों का बहुत बड़ा हाथ रहता है. यदि पूर्व जन्म में जीव असंज्ञी रहा हो तो वहां किसी विषय का चिंतन ही न हो सका. अतएव अगले जन्म में याद आने का प्रश्न ही नहीं रहता है. इत्यादि कारणों से प्रत्येक प्राणी को जाति स्मरण का होना सुलभ नहीं है.
प्रश्न-- एक लोहे की कोठी में किसी प्राणी को बन्द कर दिया जाय और उस कोठी के सब छिद्रों को ढंक दिया जाय तो प्राणी मर जाता है. उस प्राणी की आत्मा उस कोठी से बाहर निकल जाती है. मगर उस कोठी में कहीं छिद्र नहीं होता है. इससे सिद्ध होता है कि उस प्राणी का जो शरीर था वही जीव था.
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यही हुआ कि इस जन्म के शरीर में जो जीव तो फिर सभी जीवों को पूर्व जन्म की बातें
बैठा आदमी शंख बजावे तो शंख की आवाज कोठी के बाहर छेद हुआ नजर नहीं आता है. फिर आत्मा तो आवाज से भी आत्मा के निकलने पर कोठी में छेद होने की क्या जरूरत है ?
उत्तर- -उस कोठी में शंख देकर किसी आदमी को बैठाया जावे और सब छिद्र बंद कर दिये जावें. फिर उस कोठी में सुनाई देती है. आवाज के निकलने से कोठी में कहीं अत्यधिक सूक्ष्म है. आवाज मूर्त है, आत्मा अमूर्त है.
प्रश्न
- मरणासन्न मनुष्य को जीवित अवस्था में तोला जाय और फिर मरने के पश्चात् तत्काल तोला जाय तो वजन
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