Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३६२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय दिखाई नहीं देता है. जैसे चम्पा के पुष्प को तेल में क्षपण करने से उसकी सुगन्ध पृथक् होकर तेल में मिल जाती है किन्तु पुष्प बना रहता है. इसी प्रकार आत्मा मृत्यु के समय इस शरीर से निकल कर भवान्तर में, अन्य शरीर में, चला जाता है और पूर्व शरीर यहां पड़ा रह जाता है. माता पिता के शुक्रशोणित से बनने वाली देह के सिवा उसमें आने वाली आत्मा का निषेध किया सो भी ठीक नहीं है. क्योंकि माता पिता कई बार मैथुन कर्म करते हैं, किन्तु गर्भ तो कभी-कभी ही रहता है. इससे सिद्ध होता है कि जब कभी उस समय भवान्तर से जीव आने का संयोग बैठता है तभी गर्भ रहता है. अगर गर्भोत्पत्ति में एक मात्र शुक्रशोणित ही कारण होता तो माता पिता के हर मैथुन कर्म के समय में गर्भ रहना चाहिये था. जैसे वनस्पति सचित्त अवस्था में होने पर ही जल सींचने से बढ़ती है सूखा ठूठ अचित्त होने से नहीं बढ़ता है उसी तरह गर्भ की वृद्धि भी सजीव अवस्था में ही होती है, निर्जीव अवस्था में नहीं. साधु लोग बरसों नंगे पांव चलते हैं. पर उनके तलुवे नहीं घिसते हैं, जब कि जूता पहनकर चलने से वह कुछ काल में ही घिस जाता है. इसका कारण यही है कि तलुवे सजीव हैं. उन्हें खुराक मिलती रहती है जिससे वे घिसते नहीं. जूता निर्जीव होने से घिसता है. पुष्प का नाश होने से उसकी गंध का भी नाश हो जाता है, उसी तरह देह के नाश होने पर आत्मा का नाश हो जाता है, ऐसा मानना समिचीन नहीं है. क्योंकि मृत्यु के समय देह का नाश कहां होता है ? देह तो मौजूद रहती है. फिर क्यों मृत्यु होनी चाहिए? प्रश्न-देह तो रहती है पर जिन भू, जल, अग्नि आदि पंचभूतों के समुदाय से देह में चेतना उत्पन्न होती है, उनके जीर्ण हो जाने पर देह के रहते भी चेतना नहीं रहती है. इसे ही मृत्यु कहते हैं. जैसे धातकी, पुष्प, दाख, जल आदि के मिश्रण से शराब में मादकता उत्पन्न होती है. वह मादकता शराब पुरानी पड़ जाने पर भी शराब के रहते हुए उसमें से निकल जाती है. उत्तर-पंचभूतों में से किसी भी भूत में चेतना नही है. फिर वह पंचभूतों के मिश्रण से कैसे उत्पन्न हो सकती है ? यदि कहा जाय कि घातकी आदि अलग-अलग द्रव्य में मादकता नहीं है किन्तु सब के मिलने पर मद्य उत्पन्न हो जाता है उसी तरह पंचभूतों में से अलग-अलग किसी में चेतना न होने पर भी उनके समुदाय में चेतना उत्पन्न हो जाती है किन्तु ऐसा ही हो तो जलते हुए चूल्हे पर पानी की भरी हंडिया को गरम करते समय पंचभूत इकट्ठे हो जाते हैं, वहां चेतना क्यों नहीं पैदा होती है ? मद्य के प्रत्येक उपादान द्रव्य में अगर मादकता के कुछ अंश न हों तो उनके समुदाय में भी मादकता कैसे हो सकती है ? और फिर धातकी आदि से ही मद्य क्यों बनता ? अन्य द्रव्यों से क्यों नहीं ? जैसे हर रज-कण में तेल के अंश नहीं होते तो उनके समुदाय में भी तेल उत्पन्न नहीं होता है. उसी तरह मद्य के हर एक उपादान द्रव्य में मादकता न होती तो उनके समुदाय में भी मादकता नहीं हो सकती थी. सही चीज तो यह है कि धातकी आदि से जो मदिरा पैदा होती है सो धातकी आदि भी पुद्गल है और उनसे उत्पन्न मदिरा भी पुद्गल है. अतः पुद्गल से पुद्गल ही पैदा हुआ उसी तरह पंचभूत भी पुद्गल है तो उनमें भी पौद्गलिक शरीर ही पैदा हो सकता है, चंतनामय आत्मा नहीं. पुरानी हो जाने से शराब रहते भी शराब में से मादकता निकल जाती हैं उसी तरह शरीर के जीर्ण हो जाने से शरीर रहते भी उसमें से चेतना निकल जाती है, यह कहना भी ठीक नहीं है, क्योंकि सब ही की मृत्यु वृद्धावस्था में होती तो यह भी मान लिया जाता कि शरीर के जीर्ण होने से चेतना नष्ट हो गई किन्तु मृत्यु तो छोटे बच्चों व युवाओं की भी देखी जाती है, यहां तक कि कोई तो गर्भ में ही मर जाता है. प्रश्न-धातकी दाख आदि प्रत्येक में अल्परूप में मादकता विद्यमान होती है. इस सिद्धान्त को मान लेते हैं. उसी तरह पंचभूतों में भी प्रत्येक में चेतना के अंश हैं और उनके समुदाय में पूरी आत्मा बन जाती है.. उत्तर—ऐसा मानने में भी बाधा है. पंचभूत पुद्गल हैं-मूर्तिक हैं, उनके अंश अमूर्तिक-चेतनास्वरूप कैसे हो सकते हैं ? और सब भूतों के इकट्ठे हो जाने पर चेतना की नई उत्पत्ति मानी जाय तो मृत शरीर में भी भूत समुदाय तो रहता ही है. फिर उसमें आत्मा का अभाव क्यों है ? यदि कहो कि मृत शरीर में से वायु निकल जाने के कारण चेतना नहीं रहती, तो नली के द्वारा वायु प्रवेश कराने पर चेतना पैदा हो जानी चाहिये पर पैदा नहीं होती है. जो कहो
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