Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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बन्ध का कारणः—पुद्गल का बन्ध जीव के साथ भी होता है और इसके कई कारण हैं.
यह तो स्पष्ट है कि पुद्गल द्रव्य सक्रिय है और जो सक्रिय होता है उसका टूटते-फुटते रहना, जुड़ते-मिलते रहनास्वभाविक ही है. हाँ, उसमें कोई न कोई कारण निमित्त के रूप में अवश्य होता है. उदाहरणार्थ मिट्टी के अनेक कणों का बन्ध होने पर घड़ा बनता है, इसमें कुम्हार निमित्त कारण है. द्रव्य की अपनी रासायनिक प्रक्रिया भी बन्ध का कारण बन जाती है, कपूर आदि के सम्मिलित से बनी अमृतधारा और उद्जन ( Hydrogen) आदि वातियों (Gases) के मिलने से बना हुआ जल ऐसी ही प्रक्रियाओं के प्रतिफल हैं.
गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३८३
जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्य के बन्ध में मुख्य कारण है जीव का अपना भावनात्मक परिणमन और दूसरा कारण है पुद्गल की प्रक्रिया.
बन्ध की प्रक्रिया:- जैनाचार्यों ने बन्ध की प्रक्रिया का अत्यन्त सूक्ष्म विश्लेषण किया है. यद्यपि विज्ञान इस विश्लेषण को अपने प्रयोगों द्वारा पूर्णतः सिद्ध नहीं कर सका है तथापि विश्वास के साथ कहा जा सकता है कि इसकी वैज्ञानिकता में संदेह नहीं . परमाणु से स्कन्ध, स्कन्ध से परमाणु और स्कन्ध से स्कन्ध किस प्रकार बनते हैं, इस विषय में हम मुख्यतः सात तथ्य पाते हैं.
( १ ) स्कन्धों की उत्पत्ति कभी भेद से, कभी संघात से और कभी भेद-संघात से होती है. स्कन्धों का विघटन अर्थात् कुछ परमाणुओं का एक स्कन्ध से विच्छिन्न होकर दूसरे स्कन्ध में मिल जाना भेद कहलाता है. दो स्कन्धों का संघटन या संयोग हो जाना संघात है और इन दोनों प्रक्रियाओं का एक साथ हो जाना भेद-संघात है. '
(२) अणु की उत्पत्ति केवल भेदप्रक्रिया से ही सम्भव है. २
(३) पुद्गल में पाये जाने वाले स्निग्ध और रूक्ष नामक दो गुणों के कारण ही यह प्रक्रिया सम्भव है. 3
( ४ ) जिन प्रमाणुओं का स्निग्ध अथवा रूक्ष गुण जघन्य अर्थात् न्यूनतम शक्तिस्तर पर हो उनका परस्पर बन्ध नहीं होता. ४
(५) जिन पमाणुओं या स्कन्धों में स्निग्ध या रूक्ष गुण समान मात्रा में अर्थात् सम शक्तिस्तर पर हो उनका भी परस्पर बन्ध नहीं होता है
(६) लेकिन उन परमाणुओं का बन्ध अवश्य होता है जिनसे स्निग्ध और रूक्ष गुणों की संख्या में दो एकांकों का अन्तर होता है. जैसे चार स्निग्ध गुणयुक्त स्कन्ध का छह स्निग्ध गुण युक्त स्कन्ध के साथ बन्ध सम्भव है अथवा छह रूक्ष गुणयुक्त स्कन्ध से बन्ध सम्भव है. ६
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(७) बन्ध की प्रक्रिया में संघात से उत्पन्न स्निग्धता अथवा रूक्षता में से जो भी गुण अधिक परिमाण में होता है, नवीन स्कन्ध उसी गुण रूप में परिणत होता है. उदाहरण के लिए एक स्कन्ध, पन्द्रह स्निग्धगुणयुक्त स्कन्ध और तेरह रूक्ष गुण स्कन्ध से बने तो वह नवीन स्कन्ध स्निग्धगुणरूप होगा. आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में भी हम देखते हैं कि यदि किसी अणु (Atom) में से विद्युदणु (Electron ऋणागु) निकाल लिया जाय तो वह विद्युत्यभूत (Positively charged ) और यदि एक विद जोड़ लिया जाय तो वह नित्यभूत (Negatively charged ) हो जाता है.
१. भेदसंघातेभ्य उत्पद्यन्ते २. मेदादणु । वही श्र० ३. स्निग्धरूक्षतत्वाद् बन्धः ४. न जघन्यगुणानाम् । ५. गुणसाम्ये सहश्यानाम् । ६. द्वयधिकादिगुणानां तु । ७. बन्धाऽधिको पारिणामिकौ च
Jainduntemations
उमास्वामी तत्त्वार्थ सूत्र. अ०५, सू० २६. ५, सू०२७.
वहीं, अ० ५, सू०३३. वहीं अ०५, सू० ३४. वही, श्र० ५, सू० ३ छ. वही, प्र० ५, सू० ३६.
वही, अ० ५, सू० ३७.
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