Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३७४ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय कारण परमाणु और स्कन्ध सभी सूक्ष्मरूप परिणत हो जाते हैं और इस प्रकार एक ही आकाशप्रदेश में अनन्तानन्त पुद्गल रह सकते हैं.'
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उदाहरणार्थ, एक कमरे में एक दीपक का प्रकाश पर्याप्त होता है, लेकिन उसमें सैकड़ों दीपकों का प्रकाश भी समा सकता है अथवा एक दीपक का प्रकाश, जो किसी बड़े कमरे में फैला रहता है, किसी छोटे वर्तन से ढंके जाने पर उसी में समा जाता है. इससे स्पष्ट है कि पुद्गल के प्रकाश-परमाणुओं में सूक्ष्म परिणमन शक्ति विद्यमान है, उसी प्रकार पुद्गल के प्रत्येक परमाणु की स्थिति है. परमाणु की भांति स्कन्धों में भी सूक्ष्म परिणमन और अवगाहन शक्ति होती है. अवगाहन शक्ति के कारण परमाणु अथवा स्कन्ध जितने स्थान में स्थित होता है उतने ही, उसी स्थान में अन्य परमाणु और स्कन्ध भी रह सकते हैं.' सूक्ष्म परिणमन की क्रिया का अर्थ ही यह हुआ कि परमाणु में संकोच हो सकता है, उसका धनफल कम हो सकता है.
वैज्ञानिक समर्थन यह सूक्ष्म परिणमन क्रिया विज्ञान से मेल खाती है. अणु (Atom) के दो अंग होते हैं, एक मध्यवर्ती न्यष्टि (Nucleus) जिसमें उद्युत्कण (Protons) और विद्युत्कण (Neutrons) होते हैं और दूसरा बाह्य कक्षीय कवच (Orbital Shells) जिसमें विद्युदणु (Electrons) चक्कर लगाते हैं. न्यष्टि (Nucleus) का घनफल पूरे अणु (Atom) के घनफल से बहुत ही कम होता है. और जब कुछ कक्षीय कवच (Orbital Shells) अणु से विच्छिन्न (Disintigrated) हो जाते हैं तो आणु का घनफल कम हो जाता है. ये अणु विच्छिन्न अणु (Stripped atoms) कहलाते हैं. ज्योतिष सम्बन्धी अनुसन्धाताओं से पता चलता है कि कुछ तारे ऐसे हैं जिनका घनत्व हमारी दुनिया की घनतम वस्तुओं से भी २०० गुणित है. एडिग्टन ने एक स्थान पर लिखा है कि एक टन (२८ मन) न्यष्टीय पुद्गल (Nuclear matter) हमारी वास्केट के जेब में समा सकता है. कुछ ही समय पूर्व एक ऐसे तारे का अनुसन्धान हुआ है जिसका घनत्व ६२० टन (१७३६० मन) प्रति घन इंच है. इतने अधिक धनत्व का कारण यही है कि वह तारा विच्छिन्न अणुओं (Stripped atoms) से निर्मित है, उसके अणुओं में केवल व्यष्टियां ही हैं, कक्षीय कवच (Orbital shells) नहीं. जैन सिद्धान्त की भाषा में इसका कारण अणुओं का सूक्ष्म परिणमन है. पुद्गल द्रव्य का जीव द्रव्य से संयोग भी होता है. आगे पुदगल द्रव्य के वर्गीकरण (Classification) का विषय आने वाला है. यह वर्गीकरण कई प्रकार से सम्भव है. एक प्रकार से पुद्गल को २३ वर्गणाओं या वर्गों में रखा जाता है. इन वर्गणाओं में से एक है कार्मण वर्गणा. कार्मण वर्गणा का तात्पर्य ऐसे पुद्गल-परमाणुओं से है जो जीव द्रव्य के साथ संयुक्त हुआ करते हैं पुद्गल परमारणुओं का संयोग जीव द्रव्य के साथ दो प्रकार से होता है, प्रथम अनादि और द्वितीय सादि. सम्पूर्ण जीवद्रव्यों का संयोग पुद्गल- परमाणुओं के साथ अनादिकाल से है या था. इस अनादि संयोग से मुक्त भी हुआ जा सकता है, मुक्त जीव को फिर यह संयोग कदापि नहीं होता-लेकिन अमुक्त या बद्ध (संसारी) जीव को यह प्रतिक्षण होता व मिटता रहता है. इसी होने-मिटने वाले संयोग को सादि कहते हैं.
१. सूक्ष्मपरिणामावगाह्य शक्तियोगात् परमारवादयो हि सूक्ष्ममानेन परिणता एकैकस्मिन्नप्याकाशप्रदेशेऽनन्तानन्ता व्यवतिष्ठन्ते, अवगाहन
शक्तिश्चैषामव्याहताऽस्ति, तस्मादेकस्मिन्नपि प्रदेशेऽनन्तानन्तावस्थानं न विरुध्यते । ---आचार्य पूज्यपाद-सर्वार्थसिद्धि, अ०५, सू०१६. २. प्रदेशसंहारविसर्गाभ्यां प्रदीपवत् । ---प्राचार्य उमास्वामी : तत्वार्थसूत्र, अ०५, सू० १६. ३. जावदियं यासं अविभागी पुगलागुवट्ठद्धं,
तं तु पदेसं जाणे सवाणट्ठा न दाणरिहं । --आचार्य नेमिचन्द्र सिद्धान्तचक्रवर्ती : द्रव्यसंग्रह.
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