Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३५६ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-प्रन्थ : द्वितीय अध्याय
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यह जो आज परिवारों में लड़ाई-झगड़े और कलह-क्लेश हैं, सार्वजनिक-जीवन में क्रूरता तथा कल्मष है, धार्मिक क्षेत्र में 'मैं-तू' का बोलबाला है, अन्तर्राष्ट्रीय वातावरण में गहरी तनातनी है, वह सब अनेकान्त के दृष्टि-कोण को न अपनाने के कारण ही हैं. दुनिया का यह एक रिवाज-सा बन गया है कि वह अपनी आँखों से अपनी कल्पना तथा विचारदृष्टि के अनुसार ही सब कुछ देखना-समझना चाहती है. समाज का प्रत्येक व्यक्ति यही चाहता है कि सब जगह मेरी ही चले, समूचा समाज मेरे इशारे पर ही नाचे. और जब यह नहीं हो पाता तो आपस में एक-दूसरे के दोष निकालते हैं, टीका-टिप्पणी के रूप में एक-दूसरे पर छींटा-कशी करते हैं, इससे 'मै-तू' का वातावरण गरम हो जाता है और सर्वत्र अशान्ति की लहर दौड़ जाती है. राजनीति के क्षेत्र को ही ले लीजिए. राजनीति के पचड़े में पड़कर सारा संसार वादों के चक्कर में फंसा हुआ है, अपनी अपनी बात को खींच रहा है. कोई कहता है : समाजवाद ही विश्व की समस्याओं को सुलझा सकता है. दूसरा कहता है : साम्यवाद से ही विश्व में शान्ति हो सकती है. तीसरा पुकार रहा है पूंजीवाद की छत्रछाया में ही संसार सुख की सांस ले सकता है. कोई किसी वाद से और कोई किसी वाद से विश्व-शांति की रट लगा रहा है. इस पारस्परिक तनाव और खींचतान से ही विश्व के राजनीतिक मंच पर ईर्ष्या, कलह, संघर्ष, भय तथा द्वन्द्व अपनी-अपनी छाती तान कर खड़े हो जाते हैं और संसार अशान्ति का अखाड़ा बन जाता है. यही स्थिति धार्मिक क्षेत्र में है. वहाँ भी अपनी-अपनी ढपली अपना-अपना राग है. प्रत्येक धर्म अपनी उच्चता, सच्चाई तथा मुक्ति की ठेकेदारी का राग अलाप रहा है. अपने-आप को सच्चा और दूसरे को झूठा बतला रहा है. यदि ये सब विचारक, एक मंच पर बैठकर सहिष्णुता और धैर्य के साथ, एक-दूसरे की बात सुनें और अपनी ही दृष्टि को दूसरों पर बलात् थोपने का यत्न न करें, तो फिर सत्य-तथ्य इनकी आंखों के सामने न तैरने लगे! इनमें परस्पर मेल न हो जाए! 'समझौते और समन्वय का द्वार न खुल जाए! सर्वोदय की पगडंडी साफ न हो जाए! सर्वत्र शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व और सहजीवन का प्रकाश न फैल जाए! और यही सिखाता है जन-संस्कृति के तत्त्व-ज्ञान का मूलाधार अनेकान्तवाद. जैसे प्रकाश के आते ही अन्धकार अदृश्य हो जाता है, उसी प्रकार अनेकान्त का आलोक मन-मस्तिष्क में आते ही कलह, द्वेष, वैषम्य, कालुष्य, पारस्परिक तनाव संकीर्ण वृत्ति एवं संघर्ष बात की बात में शान्त हो जाते हैं. और शान्ति तथा समन्वय का एक मधुर वातावरण बनता-बढ़ता चला जाता है. पारस्परिक विरोध और संघर्षात्मक तनाव के जहर को निकालकर अविरोध, शांति, सह-अस्तित्व के इस अमृतवर्षण में ही अनेकान्तवाद की सर्वोपरि उपयोगिता निहित है.
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