Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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गोपीलाल अमर : दर्शन और विज्ञान के आलोक में पुद्गल द्रव्य : ३७१ में देखते हैं कि यदि रक्त से लेकर कासनी (Violet) तक तरंगप्रमाणों (Wavelengths) की विभिन्न अवस्थितियों (Stages) की दृष्टि से विचार किया जाय तो ये अनन्त सिद्ध होंगी और इनके अनन्त होने के कारण वर्ण भी अनन्त सिद्ध होंगे. इसका भी कारण यह है कि यदि एक प्रकाशतरंग प्रमाण में दूसरी प्रकाशतरंग से अनन्तवें भाग (Infinitesimal amount) भी न्यूनाधिक होती है तो वे तरंगें दो विसदृश वर्णों को सूचित करती हैं.
पुद्गल की विशेषताएँ
वैसे तो पुद्गल की मुख्य विशेषता उसके स्पर्श आदि चार गुण ही हैं, ये चारों उसके असाधारण भाव हैं अर्थात् उसके अतिरिक्त किसी अन्य द्रव्य में सम्भव नहीं हैं. ऐसी विशेषताएँ मुख्यतः छह कही जा सकती हैं. पुद्गल द्रव्य के स्वरूप का विश्लेषण करना ही इन विशेषताओं का उद्देश्य है. पुद्गल द्रव्य है-द्रव्य की परिभाषा हम पहले प्रस्तुत कर चुके हैं और उस की कसौटी पर पुद्गल खरा उतरता है. इसे समझाने के लिए हम एक उदाहरण देंगे. सुवर्ण पुद्गल है. किसी राजा के एक पुत्र है और एक पुत्री. राजा के पास एक सुवर्ण का घड़ा है. पुत्री उस घड़े को चाहती है और पुत्र उसे तोड़कर उसका मुकुट बनवाना चाहता है. राजा पुत्र की हठ पूरी कर देता है. पुत्री रुष्ट हो जाती है और पुत्र प्रसन्न. लेकिन राजा की दृष्टि केवल सुवर्ण पर ही है जो घड़े के रूप में कायम था और मुकुट के रूप में भी कायम है. अत: उसे न हर्ष है न विषाद.' एक उदाहरण और लीजिए. लकड़ी एक पुद्गल द्रव्य है. वह जलकर क्षार हो जाती है. उससे लकड़ीरूप पर्याय का विनाश होता है और क्षाररूप पर्याय का उत्पाद, किन्तु दोनों पर्यायों में वस्तु का अस्तित्व अचल रहता है, उसके आंगारत्त्व (Carbon) का विनाश नहीं होता. मीमांसा-दर्शन के प्रकाण्ड व्याख्याता कुमारिल भट्ट ने इस सिद्धान्त का समर्थन ऐसे ही एक उदाहरण द्वारा मुक्तकण्ठ से किया है.२ द्रव्य की परिभाषा एक-दूसरे ढंग से भी की जा सकती है. जिसमें गुण (Fundamental realities) और पर्यायें (Modifications) हों वह द्रव्य. जो द्रव्य में रहते हों और स्वयं निर्गुण हों वे गुण कहलाते हैं. चूंकि गुण द्रव्य में अपरिवर्तनीय (Non-transformable) और स्थायी रूप से रहते हैं अतः वे द्रव्य के ध्रौव्य (Continuity) के प्रतीक हैं. संज्ञान्तर या भावान्तर अर्थात् रूपान्तर को पर्याय (Modification) कहते हैं.५ पर्याय का स्वरूप ही चूंकि यह है कि वह प्रतिसमय बदलती रहे, नष्ट भी होती रहे और उत्पन्न भी, अतः वह उत्पाद और विनाश, दोनों की प्रतीक है. द्रव्य की इस परिभाषा की दृष्टि से भी पुद्गल की द्रव्यता सिद्ध होती है.
१. घट-मौलि-सुवर्णार्थी नाशोत्पादस्थितिष्वयम् |
शोक-प्रमोद-माध्यस्थ्यं जनो याति सहेतुकम् ।। -आचार्य समन्तभद्र. आप्तमीमांसा, श्लोक ५६. २. वर्षमानकभंगे च रुचकः क्रियते यदा ।
तदा पूर्वार्थिनः शोकः प्रीतिश्चाप्युत्तरार्थिन । हेमाथिनस्तु माध्यस्थ्यं तस्मात् वस्तूभयात्मम् । नोत्पादस्थितिभंगानामभावे स्यान् मतित्रयम् । न नाशेन विना शोको नोत्पादेन विना मुखम् ।
स्थित्या विना न माध्यस्थ्यं तेन सामान्यनित्यता ।। -मीमांसाश्लोकवार्तिक, श्लोक २१.२३. ३. गुणपर्ययावद् द्रव्यम् । -आचार्य उमास्वामी : तत्वार्थसूत्र, अ०५, ०३८ । ४. द्रव्याश्रया निगुणाः गुणाः । -वही, अ०५, सू० ४१. ५. संज्ञान्तरं भावान्तरं च पर्यायः । -आचार्य सिद्धसेन गणीः तत्त्वार्थभाध्य टीका, अ, ५, सू० ३७.
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