Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३३० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय श्री एच० टी० बर्सटापेन का कथन है कि जिस प्रकार बालक बढ़ता है वैसे ही पर्वत भी धीरे-धीरे बढ़ते हैं. आप विश्व के पर्वतों की वृद्धि का अंकन करते हुए लिखते हैं'–न्यूगिनी के पर्वतों ने अभी अपनी शैशवावस्था ही पार की है. सेलिबोस के दक्षिणी पूर्वी भागों, भोलूकास के कुछ टापुओं और इंडोनेशिया के द्वीप-समूह की भूमि भी ऊँची उठ रही है. श्री सुगाते का मत है कि न्यूजीलैण्ड के पश्चिमी नेलसन के पर्वत 'प्लाइस्टोसीन' युग के अंत में विकसित हुए हैं. श्री बेल्मेन के अनुसार आल्पस पर्वतमाला का पश्चिमी भाग अब भी बढ़ रहा है. द्वीपों की भूमि का उठाव तथा पर्वतों की वृद्धि पृथ्वी की सजीवता के स्पष्ट प्रमाण हैं. प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री कैप्टिन स्कवेसिवी ने यंत्र के द्वारा एक लघु जलकण में ३६४५० जीव गिनाये हैं. जिस प्रकार मनुष्य पशु आदि सजीव प्राणी श्वास द्वारा शुद्ध वायु से ओक्सीजन (oxygen) ग्रहण कर जीवित रहते हैं और ओक्सीजन या शुद्ध हवा के अभाव में मर जाते हैं, इसी प्रकार अग्नि भी वायु से ओक्सीजन लेकर जीवित रहती या जलती है और उसे किसी बरतन से ढंक देने या अन्य किसी प्रकार हवा न मिलने देने पर तत्काल बुझ जाती है. वैज्ञानिकों का कथन है कि सुई के अग्रभाग जितनी हवा में लाखों जीव रहते हैं जिन्हें 'थेक्सस' कहा जाता है. वनस्पति भी सजीव है. विज्ञान-जगत् में यह बात सर्वप्रथम सर जगदीशचन्द्र वसु ने सिद्ध की. उन्होंने यंत्रों के माध्यम से प्रत्यक्ष दिखाया कि पेड़-पौधे आदि वनस्पतियां मनुष्य की भाँति ही अनुकूल परिस्थिति में सुखी और प्रतिकूल परिस्थति में दुःखी होती हैं. तथा हर्ष, शोक, रुदन आदि करती हैं. जैनागमों में आहार, भय, मैथुन और परिग्रह इन चारों संज्ञाओं को भी वनस्पति में स्वीकार किया गया है. वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया है कि वनस्पतियाँ मिट्टी, जल, वायु तथा प्रकाश से आहार ग्रहण कर अपने तन को पुष्ट करती हैं. आहार के अभाव में वे जीवित नहीं रह सकतीं. वनस्पतियाँ भी पशु पक्षियों के समान निरामिष आहारी और सामिष आहारी दोनों प्रकार की होती हैं. आम, नीम, जामुन आदि निरामिष आहारी वनस्पतियाँ तो हमारी आँखों के सामने सदैव ही रहती हैं. सामिष आहारी वनस्पतियाँ अधिकतर विदेशों में पाई जाती हैं. आस्ट्रेलिया में एक प्रकार की वनस्पति होती है जिसकी डालों में शेर के पंजों के समान बड़े-बड़े काँटे होते हैं. अगर कोई सवार घोड़े पर चढ़ा इस वृक्ष के नीचे से निकले तो वे घोड़े पर से उस व्यक्ति को इस प्रकार उठा लेती हैं, जैसे बाज किसी छोटी चिड़िया को. फिर वह शिकार उस वृक्ष का आहार बन जाता है. अमरीका के उत्तरी कैरोलीना राज्य में वीनस फ्लाइट्रेप पौधा पाया जाता है. ज्यों ही कोई कीड़ा या पतंगा इसके पत्ते पर बैठता है तो पत्ता तत्काल बंद हो जाता है. पौधा जब उसका रक्त-मांस सोख लेता है, तब पत्ता खुल जाता है और कीड़े का सुखा शरीर नीचे गिर जाता है. इसी प्रकार 'पीचर प्लांट' रेन हैटट्रम्पट, वटर-वार्ट, सनड्यू, उपस, टच-मी-नाट, आदि अनेक मांसाहारी वृक्ष हैं जो जीवित कीटों को पकड़ने व खाने की कला में प्रवीण हैं. भय के लिए तो छुईमुई आदि वनस्पतियाँ प्रसिद्ध ही हैं, जो अंगुली दिखाने मात्र से भयभीत हो अपने शरीर को सिकोड़ लेती हैं. वनस्पति में मैथुन-क्रिया किस प्रकार संपन्न होती है तथा इस क्रिया के संपन्न न होने की स्थिति में फूल फल में परिणत नहीं होते हैं, आदि सब बातें श्री पी० लक्ष्मीकांत ने सविस्तार दिखाई हैं. वनस्पतियाँ अपने और अपनी संतान के लिए आहार का संग्रह या परिग्रह भी करती हैं. वनस्पतिविशेषज्ञों का कथन है कि एक भी फूलने वाला पौधा ऐसा नहीं है जो अपने बच्चे के लिए बीज रूप में पर्याप्त भोजनसामग्री इकट्ठी न कर लेता हो. ऐसे पौधे वसंत और गर्मी में खूब प्रयास करके सामग्री जमा कर लेते हैं. वनस्पति में निद्रा का वर्णन करते हुए हिरण्यमय बोस लिखते
१. नवनीत, सितम्बर १९६२. २. चत्तारि सण्णाश्रो पण्णत्ताओ तंजहा-आहारसण्णा. भयसण्णा, मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा-ठाणांगसूत्र स्था० ४ उ०४. ३. नवनीत, अगस्त १९५५ पृष्ठ २१ से ३२ ४. देखिये नवनीत, अप्रैल १९५२ पृष्ठ २६
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