Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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३३२ : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति ग्रन्थ : द्वितीय अध्याय
इतना अधिक साम्य है कि ये दोनों एक द्रव्य के दो पृथक्-पृथक् नाम हैं, ऐसा कहना असमीचीन न होगा. ईथर के विषय में भौतिक विज्ञानवेत्ता डा० ए० एस० एडिंगटन लिखते हैं:
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"आज कल यह स्वीकार कर लिया गया है कि ईथर भौतिक द्रव्य नहीं है. भौतिक की अपेक्षा उसकी प्रकृति भिन्न हैभूत में प्राप्त पिण्डत्व और घनत्व गुणों का ईथर में अभाव होगा परन्तु उसके अपने नये और निश्चयात्मक गुण होंगे"ईथर का अभौतिक सागर. "
अलबर्ट आईन्स्टीन के अपेक्षाबाद के सिद्धांतानुसार ईवर अभौतिक (अपारमाणविक), लोकव्याप्त नहीं देखा जा सकने वाला, अखंड द्रव्य है. प्रोफेसर जी० आर० जैन एम० एस-सी० धर्म द्रव्य और ईथर का तुलनात्मक अध्ययन करते हुए लिखते हैं:
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"यह सिद्ध हो गया है कि विज्ञान और जैन दर्शन दोनों यहाँ तक एकमत हैं कि धर्मद्रव्य या ईथर अभौतिक, अपारमाणविक, अविभाज्य, अखंड आकाश के समान व्यापक, अरूप, गति का अनिवार्य माध्यम और अपने आप में स्थिर है." इसी प्रकार स्थिति में सहायक अधर्म द्रव्य ( Medium of rest ) के विषय में वैज्ञानिकों की खोज जारी है. आकाश और काल
जैन दर्शन के समान ही विज्ञान जगत् में आकाश और काल का भी द्रव्य के रूप में अस्तित्व स्वीकार कर लिया गया है. विश्वविख्यात वैज्ञानिक आइन्स्टीन का कथन है कि देश और काल स्वतंत्र पदार्थ हैं और ये भी घटनाओं में भाग लेते हैं. नयी भौतिकी संकेत देती है कि देश और काल के भीतर केवल द्रव्य और विकिरण ही नहीं बहुत सी और भी चीजें हैं जिनका महत्त्व है. डा० हेनशा का मत है
These four elements (Space, Matter, Time and Medium of motion) are all seperate in our mind. We cannot imagine that the one of them could depend on another or converted into another.
अर्थात् 'आकाश, पुद्गल, काल और गति का माध्यम (धर्म) ये चारों तत्त्व हमारे मस्तिष्क में भिन्न-भिन्न हैं. हम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते कि ये एक दूसरे पर निर्भर रहते हों या एक दूसरे में परिवर्तित हो सकते हों. इससे जैनदर्शन के इस सिद्धांत की पुष्टि होती है कि सभी द्रव्य स्वतंत्र परिणमन करते हैं और कोई किसी के अधीन नहीं है. उत्तराध्ययन सूत्र अ०२८ गाथा के अनुसार 'अणंताणि य दव्वाणि कालो पुग्गल जंतवो' अर्थात् काल द्रव्य अनन्त है. तथा अलोकाकाश में काल आदि द्रव्य नहीं है. जैनदर्शन की इन दोनों मान्यताओं की पुष्टि एडिंग्टन ने की है :The World is closed in space dimensions ( लोकाकाश ) but it opens at both ends its time dimensions. I shall use the phrase arrow to express this one way property which has no analogue in space.
१. Now a days it is agreed that ether is not a kind of matter, being non-material, its properties are quite unique, characters such as a mass and rigidity which we meet with in matter will naturally be absent in ether but that ether will have new definite characters of its own............. ..non material ocean of ether.
The Nature of the physical world P. 31. 2. Thus it is proved that Science and Jain physics agree absolutely so far as they call Dharm (ether) non-material, non-atomic, non-discrete, continuous, co-extensive with space, in divisible and as a necessary medium for motion and one which does not it self move.
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