Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मुनि कान्तिसागर : लोंकाशाह की परंपरा और उसका अज्ञात साहित्य : २४७
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रविमुनि रचित प्राचार्य श्रीतेजसी भास
म्हारी सही रे समाणी, ए देशी प्रथम नमी जिन पाय सुमति ना तो गुण गाउं गछपतिनां रे । माहरो गुरु रे वैरागी श्रीतेजसिंहजी सुगण सुजाता तो । नाम लही सुखसाता रे माहरो ॥१॥ गुरु रे वैरागी अनइ रागी गुणनां तो सुंदर साध सोभागी रे माहरो, आंकणी । वदन सोहइ जिम पुन्यमचंद तो दीठां हो ए आनन्द रे माहरो । नयन कमल सम सोभाकारी तो संपदा सहु अति सारी रे ॥२॥ बाल-ब्रह्मचारी सदा सुखकारी तो श्रीपतिजी नो पट्टधारी रे मा० । सरस सुधारस सारसी वाणी तो सुणता रीझइ बहु प्राणी रे मा० ॥३॥ साह लखमण सुत वसुधा विख्याता तो करणी अधिक तुम्हारी रे मा० ॥४॥ तप संयम गुण अधिको अंगि तो सत्य संवेग धरइ रंगी रे । नय निगमादिक न्याय विचारी तो आगम अरथ सुधारी रे ॥५॥ युगतिवंत देखी बहु अन्य तो सहु को कहइ धन्य धन्य रे । सरस बखांण कला जन पेखी तो प्रसरइ गुरजीनी निरखी रे ।।६।। पार न पाम हुँ गुण प्रभुजीनां तो गुण अनन्त गुरुजीनां रे । सुंदर सुरति नयर सुहावइ तो रविमुनि तुम्ह गुण गावइ रे ॥७॥
॥ इति भास समाप्त ।। लेखन काल सं० १७३२ पोष वदी १ रविवार ।
देवमुनि रचित प्राचार्य श्री कानजी भास
ढाल बिदलानी प्रथम नमु जिन पाय गुण गावू तास पसाय हो। गुरु ने भाषण. श्रीपूज्यनां, पटधार नामें कांहन उदार हो गुरु० ॥१॥ मरुधर देश मझार नडुलाई नयर सिरदार हो गु० । कचरा तात सुखदाई जगीसा गुरुजी नी माई हो गुरु० ॥२॥ बाल पणे वत, लीधो श्रीपूज्यजी निज कर दीद्धो हो गुरु० । सिद्धान्त भण्यां न्याय सार व्याकरण काव्य विचार हो गुरु० ॥३॥ सूरत नयर पद दीधो पूरवली पैरे कीधो हो गुरु० । वरसंघ वरसघ दीठो वरसंघ जसवंत कीद्धो हो गुरु०॥४॥ श्रीपूज्यजी एम विचारी कीद्धा निज पटधारी हो गुरु० । अविचल जोडी जग मांहि जेहनें वांद्या अति सुख थाय हो गुरु० ॥५॥ संघनी विनती जांणी श्रीपूज्यजी चित्तमां आणी हो गुरु०। बंबावती नयरे आया सकल संघ सुख पाया हो गुरु० ॥६॥
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