Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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महेन्द्र राजा : विदेशी लेखकों की दृष्टि में जैनधर्म और महावीर : २७३
बाद में जैनधर्म एवं ब्राह्मण धर्म की समानता का विलक्षण उदाहरण देते हुए लेखक ने जैनधर्म का मूल ब्राह्मण धर्म में बतलाया है. लेखक का मत है कि जैनधर्म का अधिकांश आचार-विचार ब्राह्मण धर्म पर आधारित है. उदाहरणतः ब्राह्मण धर्म में साधुओं को वर्षाकाल में विहार करना मना है तथा किसी एक स्थान पर निश्चित काल से अधिक समय तक ठहरने का भी निषेध है. यही बात जैन धर्म में भी है. ब्राह्मण एवं जैन धर्म दोनों में ही साधुओं को केश न कटवाने का विधान है तथा दोनों ही धर्मों में पानी छान कर पीने तथा साधुओं को साथ में एक भिक्षापात्र रखने का नियम है. अत: जैनधर्म को ब्राह्मण धर्म के विरोध में खड़े दो आन्दोलनों में से एक ही माना जा सकता है, जैनधर्म की नींव, विचारधारा एवं आचार-विचार का आधार ब्राह्मण धर्म ही है." कहने की आवश्यकता नहीं कि लेखक के उक्त मत से विशेषकर 'पानी छानकर पीने की बात' से शायद ही कोई व्यक्ति सहमत होगा. अहिंसा के समान ही पानी छानकर पीने की बात भी जैनधर्म की अपनी विशेषता है तथा उसका उद्देश्य भी अनावश्यक हिंसा से बचाव ही है. आज तक ऐसा कहीं कभी सुना या पढ़ा नहीं गया कि ब्राह्मण धर्म में भी पानी छानकर पीने का एक आवश्यक नियम बतलाया गया है. जैनधर्म को इतनी जल्दी महत्त्व कैसे मिल गया तथा महावीर को अपने सिद्धांतों का प्रचार करने में इतनी अधिक सफलता क्यों मिली, इसका समाधान भी लेखक ने अपनी विलक्षण सूझ-बूझ से किया है. लेखक का मत है कि चूंकि महावीर को समाज में महत्त्व प्राप्त था तथा धनी लोगों से उनका परिचय था अतः उन्हें उन सभी का सहयोग आसानी से प्राप्त हो गया. दूसरी ओर उनके सरल जीवन एवं विचारधारा से निम्न वर्गों के लोग भी उनकी ओर आकर्षित हए. जैनधर्म को ब्राह्मण धर्म के विरोध में सफलता केवल इसीलिए मिली कि जैनधर्म ने सभी वर्गों के लिए अपना द्वार खोल दिया और तथाकथित जातिवाद को कोई प्रश्रय नहीं दिया. जैनधर्म के सिद्धांतों का जितना स्पष्ट, निष्पक्ष एवं सही-सही परिचय लंदन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर श्री ए० एल० बाशम ने 'कान्साइज एन्साइक्लोपीडिया आफ लिविंग फैथ्स' में दिया है, वैसा संभवत: अब तक कोई अन्य आधुनिक लेखक नहीं दे पाया है. श्री बाशम का मत है कि हिन्दु धर्म से अपने आपको अलग एवं स्वतन्त्र माने जाने का जितना दावा बौद्ध धर्म का है, करीब उतना ही, बल्कि उससे कुछ अधिक ही, दावा जैन धर्म का भी है. जैन धर्म प्रारम्भ से ही विशुद्ध रूप में एक भारतीय धर्म रहा है. बौद्धधर्म के विपरीत जैन धर्म Theism से कभी समझौता नहीं किया और वह अपनी जन्मभूमि में ही फलता-फूलता रहा. बौद्ध धर्म यदि जीवित रह सका तो इसका मुख्य श्रेय उन बौद्ध मठों को मिलना चाहिए जो बाद में मुस्लिम आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दिये गये. इसके विपरीत जैनधर्म यदि जीवित रह सका तो केवल उन इने-गिने शिक्षित एवं सुसंस्कृत अनुयायियों के कारण जो अपने भिक्षुओं के कड़े आचरण के कारण उनसे प्रभावित रहे तथा अपने सिद्धान्त एवं विश्वास पर दृढ रहे. जैन धर्म के सिद्धान्तों को उन्होंने अपने जीवन में उतारा. इन थोड़े से धर्मभक्त नागरिकों एवं उनकी भावी पीढ़ी ने आज तक जैन धर्म को जीवित रखा है. लेखक का मत है कि जैन धर्म का आत्मा एवं मोक्ष का सिद्धान्त हिन्दुओं के सांख्यदर्शन से बहुत कुछ मिलता-जुलता है और इस बात की भी सम्भावना की जा सकती है कि जैन एवं सांख्यदर्शन दोनों का ही आधार कोई एक प्राचीन मुल सुत्र रहा हो. ... ... अन्य धर्मों की अपेक्षा जैन धर्म की एक मुख्य विशेषता यह है कि इस धर्म ने ही सर्व प्रथम यह मत प्रतिपादित किया कि संपूर्ण विश्व जीवमय है. वैसे देखा जाय तो अब बहुत कुछ बातों में जैन धर्म ने हिन्दू धर्म से अप्रत्यक्ष रूप में समझौता कर लिया है. कुछ
१. Concise encyclopedia of living faiths; edited by R. C. Zaehner. (London, Hutchinson,
1959)
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