Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
View full book text
________________
८५ : मुनि श्रीजहारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
#FARMERMIRMIRMIRMIREMEMEN
सन्त हृदय नवनीत समाना, कहा कविन पर कहिय न जाना !
निज दुःख द्रवहिं सदा नवनीता,पर दुःख द्रवहिं सन्त पुनीता !! यह उक्ति इनके जीव पर शत प्रतिशत सत्य प्रमाणित होती है. गोसाईं जी का कहना है-कवियों ने सन्तों के हृदयों को नवनीत की उपमा दी है. सन्त हृदय को वे माखन-तुल्य समझते हैं. पर वस्तुस्थिति ऐसी प्रतीत नहीं होती. क्योंकि माखन उस समय द्रवित होता है, पिघलता है, जब स्वयं ताप पाता है, पर सन्तहृदय अपने ताप से कभी द्रवित नहीं होते, दुःख-वेला में तो वे हंसते रहते हैं, कभी घबराते नहीं हैं. वे तो अन्य पीड़ित व्यक्तियों की पीड़ा को देखकर या उसका स्मरण होते ही दुखित हो उठते हैं. अतः सन्त हृदय और नवनीत दोनों में आपसी कोई मेल नहीं है. एक पर-परिताप से द्रवित होता है और एक निज के परिताप से. अपनी बात संक्षेप में कह दूं, श्रद्धेय मंत्री श्री हजारीमल जी म. बड़े कोमल स्वभाव के महापुरुष थे. माखन की कोमलता उनकी कोमलता के समकक्ष नहीं बैठ सकती थी. धन्य है, वे महापुरुष जिन्होंने आत्मा और शरीर के वास्तविक भेद को समझ कर अपनी शान्ति को कभी भंग नहीं होने दिया. इन मंगलमूर्ति महापुरुष की आदर्श कोमलता तथा वज़मय कठोरता देखकर ही मेरे मन की परत पर यह संस्कृत-वाक्य उभर आया है-'वज्रादपि कठोराणि, मृदूनि कुसुमादपि'.
श्रीरोशनमुनिजी महाराज एक वाक्य जीवन-दीप बन जाय
स्थविरपदविभूषित श्रीहजारीमलजी महाराज, गुणागार के रूप में आज भी मेरे सम्मुख साकार हैं. ब्यावर में ही उनके सामीप्य, दर्शन और सेवा का शुभ अवसर प्राप्त हुआ था. वह समय अल्प था. परन्तु उस स्वल्प समय की पवित्र धड़ियों में ही मैंने उनमें कुछ ऐसे गुणों के दर्शन किये ये जिनके आकर्षण स्वरूप उनके दर्शन की शुभाशा पुनःपुनः किया करता था. वे हृदय से स्वच्छ, कोमल, करुणामूर्ति थे. उनके विमल हृदय से निकले वे शब्द आज भी मुझे प्रतिक्षण याद आते हैं. मैं सोचा करता हूँ उनके ये शब्द ही मेरी साधना का आधार बन जाएँ. उन्होंने कहा था--'रोशन मुनि, तुम निर्मोही और अमायी हो'. उन पूज्य आत्मा के इस स्वणिम वाक्य को स्मरण करके श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ. उनका यह वाक्य ही मेरा जीवन-दीप बन जाय. इस वाक्य को मैं जीवनपर्यंत न बिसरूँ.
श्री रिखबराज कण विट एडवोकेट, जोधपुर
सरलता के मूर्तिमान स्वरूप स्वामीजी श्रीहजारीमलजी महाराज ने करीब ६५ पैंसठ वर्षों तक जैन-साधु का जीवन बिताया. प्रकाश-स्तम्भ की तरह विषयान्धकार में भूले-भटके जन-मन को सत्पथ पर चलने की प्रेरणा प्रदान करते रहे. जीवन भर उनकी यही चेष्टा रही कि पाप, ताप व अभाव से पीड़ित मानव समाज का कल्याण हो. स्वामीजी प्रतिपल इसी भावना में रहते थे कि
'सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ! सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग्भवेत् !'
..
.
..
...
....
GOOD
.
Canah
.
................000000000000000000000000000000000
For Private & Personal Use Only
Jain E
0 0000000000
www.jainelibrary.org