Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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मरुधरकेसरी श्रीमिश्रीमलजी महाराज
स्थानकवासी जैन समाज रा साचा सपूत
स्थानकवासी जैन समाज रा साचा सपूत, म्हारा प्यारा दयाधर्म रा लाड़ला भाइयो! श्रमण भगवान् श्रीमहावीर स्वामीरो शासण २१०००वर्षों तांइ अखंड चालसी,इसो भगवती सूत्रमें दाखलो आयो है. जिणसू पूरो-पूरो भरोसो है कि ओ दयामय धर्म सींघरी तरह सुं चालतो हीज रेवेला. पिण सोले सुपणां रा वरतारा सूं कणेही मंद ने कणे ही तेज वेतो वरतेला. जिणरा प्रत्यक्ष दाखला गया कालरा पढ़वा में तथा सुणवा में आया है और अबार भी ओहिज ढंग देख रया हां. समयसमय पर धर्म में सिथिलता आइ जरे चमत्कारी पुरुष पैदा हुआ ने नीचो पड़ता धर्म ने झेलने उंचो चढायो. एडा पुरुष त्यागी वैरागी क्रियापात्र एक हीज नहीं, घणा हुआ है. जिणोंरा थोडासाक नमूनारूप दाखला आप लोगां रे सन्मुख राखू हूं सो ध्यान सूं पढजो. (१) धर्मदासजी म०-जातरा भावसार, जीवणदास भाइरा बेटा ने हीराबाई रा अंगजात हा. वे संवत् १७ सौ में पोतियाबंध पंथ ने छोड़ने साचो साधुमार्ग अपणायो. आपरे चेला ६६ हुआ. २२ संप्रदायरी थापना किवी. दयाधर्म दिपायो, घणा चमत्कारी-उग्रविहारी-घोर तपस्वी ने क्रियोद्धारक हा. ग्वालियर महाराजा आपरा पूर्ण भक्त बणिया ने खूब सेवा कीधी. कारण एक बार आप ग्वालियर पधारिया ने मसाणां में रूंखरे नीचे स्वाध्याय कर रया हा. उण समें सिकार में गयोडा सिंधिया दरबार ने सर्प काट खायो ने बेहोस होय गया. सारा सरदार दिलगीर होय ने पाछा सहर में जावतां मसाणां रे पास में आया ने श्रीधर्मदासजी म० ने देखिया. जरे सरदारां पूछियो के महाराज, अठे कांइ कर रया हो ? स्वामीजी फरमायो कि आत्मा रो साधन कर रया हां. सरदारां कयो के महाराज ! थांरो पगफेरो चोखो नहीं हुवो कारण के थारे आवासू म्हारा राजाजी ने सर्प काट खायो ने उपाय लागे कोयनी. दरबार लासरे ज्यु होय गया है. सो या तो आप इणां ने सावल करो नहीं तर थांने घणी तस्दी देवांला. स्वामीजी फुरमायो के भाई, थारी थे जाणो, म्हां तो इसा पडपंच में पड़ां कोयनी. पिण एक बात है के जो राजाजी आज सूं सिकार जावता बंध हो जावे तो सर्प रो जहर तो कांइ बड़ी बात है-म्होटा जहर पिण अमृत सरीखा हो जावे है. सरदारां मंजूर कर दरबार ने चरणां में सुवाणिया, ने आपरा पगां हेटली धूड लेईने माथे सरदारां नाखी. धर्मरा प्रतापसूं केवो या स्वामीजी रा त्यागबलसू केवो, राजाजी रो जहर उतर गयो ने उठने बैठा होय गया. सारां ने घणो अचंभों आयो. राजाजी सुण ने खुशी मानी ने स्वामीजी ने गुरुपणे धारण किया तथा मदिरा-मांसरा त्याग कर पाछा शहर में आया. स्वामीजी ने पिण शहर में लाया, घणो धर्मरो उद्योत कियो. आ बात संवत् १७६४ रा अषाढ़ सुदी ७ री है. श्रीधर्मदासजी म. सा० रो नाम घणो वधियो. सैंकड़ों साधु-साधवी हुया, ने संवत् १७७२ में धार नगर में २२ संप्रदाय स्थापित करी. उणहीज वर्ष एक आपरो शिष्य लूणकरणजी धार में संथारो कियो, उण समय आचार्य श्रीजी म० उज्जैण विराजता हा. चेलारा भाव संथारा में ढीला पड़ गया. समजायां समजे नहीं, जरे समाचार उज्जैण पूज्यजी म. सा० ने भेजिया. सुणतां पाण उठा सु विहार करायो. सिताव पणासुं चालता एक गाम में अहार कियो. अहार में
Tella
Jair pricala
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