Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२१० : मुनि श्रीहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय
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नरसिंह मुनि-यह असंदिग्ध सत्य है कि संशोधन के क्षेत्र में कभी-कभी सामान्य गीत का भी बहुत बड़ा महत्त्व प्रमाणित हो जाता है. यहां जिन नरसिंह मुनि का उल्लेख किया गया है वे न तो स्वयं बहुत बड़े ग्रन्थकार थे और न साहित्यकार ही. किंतु इनकी एक मात्र अद्यावधि अज्ञात कृति उपलब्ध हुई है जिसमें १९वीं शती के एक महान व्यक्तित्व की यशोगाथा वणित है. हमारा तात्पर्य रोड़जी स्वामी से है. ये अपने समय के विशिष्ट कोटि के संयमशील तपस्वी स्थानकवासी मुनि थे. रायपुर, सनवाड़, उदयपुर, नाथद्वारा और आमेट में रहकर इन्होंने जो-जो उपसर्ग सहन किये और सूचित स्थानों में इनके संबंध में प्रचलित जन-प्रवादों पर इस गीत में प्रकाश डाला गया है. इसकी रचना सं० १८४७ में रायपुर (मेवाड़) में की गई है. भले ही यह गीत लघुतम है पर महामुनि की यशःकीर्ति को ज्योतित करने में अनुपम है. नानजी—यह कुंवरजी पक्ष के तृतीय आचार्य रतनसी के शिष्य थे. इन्होंने पंचावरण स्तवन सं० १६७६, दीपावली-जामनगर) और नेमिनाथ स्तवन (सं० १६७२ दीपावली-अहमदाबाद) की रचना की. नारायण-यह लोंकागच्छीय अधम पट्टधर जीवराजजी के शिष्य थे, इन्होंने कल्पवल्ली में चातुर्मास रहकर सं० १६८४ आसौज वदि ७ गुरुवार को 'श्रेणिकरास' की रचना की. परमा-यह राजसिंघ के शिष्य थे. इन्होंने 'प्रभावती चौपाई (सं० १६४८ आश्विन शुक्ला १०, शनिवार) की रचना की. प्रकाशसिंह-यह स्थानकवासी संप्रदाय के प्रथम कवि हैं जिन्होंने स्वतंत्र छप्पय लिखे. रचना-काल सं० १८७५ आषाढ़ सुदि ८ (गौंडल) है. यह स्थानकवासी सम्प्रदाय के सद्गृहस्थ थे. पासो पटेल--यह बना के प्रशिष्य और जीवा के शिष्य थे. इन्होंने सं० १८१८ चै० अमावस्या को लीमड़ी में रहकर 'भरत चक्रवर्ती रास' लिखा. प्रेम-इन्होंने सं० १६६१ में 'द्रौपदी रास' और सं० १६६२ में 'मंगल कलश रास' की रचना की. प्रेम—यह नृसिंह के शिष्य थे. इन्होंने 'हरिचंद चौपाई' (सं० १८५८ मगसिर वदि ह रविवार-जोधपुर) की रचना की. स्व० मोहनलाल दलीचंद देसाई ने 'वैधी चौपाई' को भी इनकी रचना मान लिया है जो स्पसृतः भूल है. क्योंकि वैधी चौपाई-जिसकी १८वीं शती की प्रतिलिपि प्राप्त है-के प्रणेता प्रेमराज सूरि थे. जब कि 'हरिचंद चौपाई' के प्रणेता १६वीं शती के कवि थे. भाणुचन्द-यह लोंकागच्छ के प्राचीन कवियों में प्रमुख ऐतिहासिक कवि हैं. इन्होंने 'दयाधर्म चौपाई' (सं० १५७८ माघ सूदि ७) की रचना की जिसमें अपने सम्प्रदाय का ऐतिहासिक वर्णन एवं तात्कालिक साम्प्रदायिक मान्यताओं का उल्लेख है. भीम-यह लोंकागच्छीय बड़े वीरसिंह के शिष्य थे. इन्होंने तीन खण्डों में 'श्रेणिक रास' लिखा, जिसका क्रमशः रचनाकाल इस प्रकार हैप्रथम खण्ड सं० १६२१ भादों सुदि २, बड़ोदा. द्वितीय खण्ड सं० १६३२ भादों वदि २, बड़ोदा. तृतीय खण्ड सं० १६३६ आसोज वदि ७, रविवार. इनकी एक अन्य रचना 'नागलकुमार--नगदत्त का रास' (सं० १६३२ आसोज सुदि ५, गुरुवार बड़ोदा) प्राप्त है. बालचन्द्र-यह कुंवरजी पक्ष के श्रीमल के प्रशिष्य और गंगदास के शिष्य थे. हिन्दी भाषा पर इनके अद्भुत प्रभुत्व का परिचय इनकी 'बालचन्द्र बत्तीसी' (सं० १६५८ दीपावली, अहमदाबाद) से मिलता है. गृहस्थोचित कर्तव्यों का सम्यक् विवेचन एवं नैतिक उपदेशों से परिपूर्ण यह एक आदर्शवादी रचना है. स्मरणीय है कि एक और बाल कवि सं० १५१७ में हुए हैं जिनकी 'बाल-बावनी' प्रसिद्ध है. खरतरगच्छ में भी इस नाम के दो कवि हो गये हैं. मयाचन्द-यह लीलाधरजी के शिष्य और कृष्णदास जी के प्रशिष्य थे. इन्होंने 'गजसिंह राजा का रास' (सं० १८१५ चैत्र वदि ८, गुरुवार जामनगर) की रचना की.
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