Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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२०८ : मुनि श्रोहजारीमल स्मृति-ग्रन्थ : प्रथम अध्याय दिया है, जिसका उल्लेख जैनगुर्जर कविनो भाग ३ पृ० १५३६ पर किया गया है. भाव यह है. कि लांबिया में मुहता मोहनदास की धर्म-पत्नी महमादे की रत्नकुक्षि से इनका जन्म हुआ. व्यापारिक प्रसंग को लेकर मेड़ता पधारे और भूधरजी मुनि की आध्यात्मिक वाणी का श्रवण कर सं० १७८८ मिग० वदि दूज अर्थात २२ वें वर्ष में संयम ग्रहण कर लिया. इससे सिद्ध है कि इनका जन्म सं० १७६६ है. इन्होंने जयपुर, आगरा, दिल्ली, बीकानेर,फतेहपुर, मारवाड़, मेवाड़ किसनगढ़ आदि नगरों में चातुर्मास किये. तिलोक ऋषि-लोंका-गच्छीय विशिष्ट कवियों में तिलोक ऋषि ऐसे कवि हैं जिनकी प्रचुर कृतियां पाई जाती हैं. यह लवजी ऋषि की परम्परा के अयवन्ता ऋषि के शिष्य थे. रतलाम निवासी सुराणा गोत्रीय दुलीचंदजी की धर्मपत्नी नानूबाई की रत्नकुक्षि से इनका जन्म सं० १६०४ चैत्र वदि ३ बुधवार को हुआ था. तिलोकचंदजी ने सं० १९१४ में अर्थात् १० वर्ष की कोमल वय में अयवन्ता ऋषि से दीक्षा ग्रहण की. साधना के कठिन मार्ग पर चलते हुए भी सरस्वती के प्रति इनका आकर्षण बना रहा, जिसकी परिणति निम्नांकित कृतियों में हुई१. पंचवादी काव्य (सं० १६३० वै० व०१० सोमवार मंदसौर) २. धर्म जयकुमार चौपाई (सं० १६३० आषाढ़ शु० ३ शुक्र मंदसौर) ३. तिलोक बावनी (सं० १९३३ वै० शु० ६ शनि रतलाम) ४. श्रेणिक रास (सं० १६३६ आषाढ़ सुदि ३ पूना) ५. चंद्र केवली चरित्र ६. समरादित्य केवली चरित्र ७. सीता-चरित्र ८. धर्मबुद्धि पापबुद्धि चरित्र ६. हंस केशव चरित्र १०. अर्जुन माली चरित्र ११. धन्ना शालिभद्र चरित्र १२. भृगु पुरोहित चरित्र १३. हरिवंश काव्य १४. अमरकुमार चरित्र १५. नन्दनमणिहार चरित्र १६. महावीर स्वामी चरित्र १७. प्रतिक्रमण सत्यबोध १८. ज्ञान प्रदीपक
तेज-तेजमुनि-यह लोंकागच्छीय भीमजी के शिष्य थे. इनकी रचनायें हैं१. चंदराज का रासा (सं० १७०७ दीपावली, सोमवार, राणपुर) २. जितारि रास (सं० १७३४) तेजपाल-यह लोंकागच्छीय इन्द्रजी के शिष्य थे. इनकी रचनायें ये हैं१. रत्न पंचवीसी रत्नचूड चौपाई (सं० १७३५ रविवार, अहमदपुर) २. थावच्चामुनि स्वाध्याय तेजसिंह-यह लोंकागच्छीय मूल परम्परा के १६वें आचार्य पंचेरिया निवासी छाजेड़ गोत्रीय लखमण की धर्म-पत्नी लखमादे के पुत्र थे. जन्म संवत् अज्ञात है. इनकी दीक्षा सं० १७०६ आषाढ़ सुदि १० शुक्रवार को हुई. पदस्थापन वोरा वीरजी द्वारा सूरत में सं० १७२१ वैसाख सुदि ७ गुरुवार को हुआ. यह केशवजी के शिष्य थे. इनके समय में
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