Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीबालमशाह खान : लोंकागच्छ की साहित्य-सेवा : २०७
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३. जोबन पच्चीसी (सं० १६१६ पोस सुदि पूर्णिमा गोंडल) ४. भीमजी स्वामी जी का चोढ़ालिया (सं० १६१६ पोस सुदि १ गोंडल) ५. बोहत्तरी (सं० १६१८ ज्ञान पंचमी) ३. तीर्थंकर चौढालिया (सं० १६१८) ७. अंजना सती का रास (सं० १६१६ वैशाख सुदि ३ गोंडल) ८. ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती का रास (सं० १६२७) ६. चौवीसी १०. जुगत (ट?) पच्चीसी ११. सत्यबाईसी गंग-गांगजी-यह लोंकागच्छीय १७ में पट्टधर कानजी की शिष्य-परम्परा में लक्ष्मीधरजी के शिष्य ये. उनकी रचनाएँ ये हैं१. रत्नसार तेजसार रास (सं० १७६१ जेठ सुदि ६ गुरुवार, हालार (सौराष्ट्र) २. जम्बू स्वामी स्वाध्याय (सं० १७६५ श्रावण सुदि २ राणपुर) ३. गौतम स्वामी स्वाध्याय (सं० १७६५ प्रथम भाद्रवदि ५, बुधवार, मांगरौल) ४. सीमंधरविनति (सं० १७७१ भादों सुदि १३ कुन्तलपुर) गुलाल—यह गुजराती गच्छ के नगराज के प्रशिष्य केशर के शिष्य थे. इन्होंने नोवा में सं० १८२१ में श्रावण सुदि ८ रविवार को तेजसार कुमार चौपाई की रचना की. गोधा-गोवर्धन-इनकी ६८ पद्यों की 'रतन-सी ऋषि की मनभास उपलब्ध है. यह कृति ऐतिहासिक दृष्टि से उपादेय है. चौथमल-इन्होंने उपदेशमाला के आधार दर 'ऋषिदत्ता चौपाई' (सं० १८६४ कातिक सुदि १३ देवगढ़-मेवाड़) की रचना की. इसमें आदर्श नारी का चित्रण हुआ है. इस रचना की प्रतिलिपि इनके शिष्य सूरजमल ने पाली नगर में की. जगजीवन—यह थराद के ओसवाल चौपड़ा गोत्रीय पिता जोइता की पत्नी रत्ना के पुत्र थे. इनके निम्नांकित स्फुट स्तवन उपलब्ध हैं१. संभवजिन स्तवन (सं० १८००) २. मल्लीजिन स्तनवन (सं० १८१४) ३. ऋषभ जिनस्तवन (संह १८१५) ४. नेमि जिन स्तवन (सं० १८२५) जगन-जगन्नाथ-यह लोंकागच्छीय ऋषि शेखा के शिष्य थे. इन्होंने सं० १७६१ में 'सुकोमल मुनि चौपाई' की रचना की जिसकी कवि के हाथ की लिखी प्रति राजस्थान प्राच्यविद्याप्रतिष्ठान में सुरक्षित है. इसमें सुकोशल मुनि के माध्यम से अहिंसामाहात्म्य प्रकट किया गया है. जयमल-ये लोंका-गच्छीय मुनि थे और राजस्थान में विचरण किया करते थे. 'साधुवन्दना' (सं० १८८७ जालौर) इनकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है. इसके अतिरिक्त 'परदेसी राजा का रास' 'अर्जुनमाली का छः ढाला' (सं० १८२० कार्तिक सुदि पूर्णिमा) 'अवन्ति सुकुमार चौढालिया' (सं० १८२५ असौज सुदि ७ नागौर) 'दीपावली स्वाध्याय' 'खंदक चौढालिया', (सं० १८११ चैत्र ७ लाडूया) 'चन्द्रगुप्त सोलह स्वप्न 'स्वाध्याय' 'नेमि चरित्र चौपाई'-सं० १८०४ भादों सुदि ५), 'कमलावती स्वाध्याय' 'स्थूलभद्र स्वाध्याय' आदि अन्य रचनायें हैं. मुनि जयमलजी अपने समय में एक आदर्श मुनि के रूप में मान्य रहे. इनकी यशोगाथा को किसी अज्ञात कवि ने स्वर
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