Book Title: Hajarimalmuni Smruti Granth
Author(s): Shobhachad Bharilla
Publisher: Hajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
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श्रीमिश्रीमलजी मरुधरकेसरी : समाजरा साचा सपूत : १६५ तेलरा भुजिया अरोगिया ने फेर विहार कर सांजरे पेली आप धार पधारिया. पाणी पी सकिया नहीं ने पडिकमणो ठाय दियो. बाद में पच्चखाण कर चेलाने समजायो, स्वर्गारा सुख बताया, पिण डिग्योडो मजबूत नहीं हुवो. जरे उण ने उठाय ने उणरी ठौर आप संथारो करने पोढ गया. गर्मीरा जोग सूं बड़ी खेद उत्पन्न हुइ पिण वीर माता रा वीर पुरुष धर्म रे उपर आप बलिदान दे दियो-तीन दिनरो संथारो आयो ने चैत सुदी ११ ने स्वर्ग पधार गया. उणों रो वो पाट आजत्ताइ धार में मौजूद केवे है. धन्य इसा पुरुषां ने. (२) श्रीलवजी ऋषिजी म०—सूरतरा वासी, फूलां बाइ रा अंगजात, वोहरा वीर जी रा दोहिता हा. लोंका गछरा यति बजरंगजी रे पास ज्ञान पढतां वैराग्य उत्पन्न होय गयो ने यति दीक्षा लिवी; पिण उन्हारो सिथिलाचार सहन नहीं हुवो, जरे आप आज्ञा ले ने स्वतंत्र विहार कर दियो. ने सोमजी सेठ ने वैराग भाव जाग्रत कर संजम दिरायो ने तीसरा भाणजी भाई भी संजम लियो. तीनां स्वयं भगवानरी साक्षी सं दयाधर्म धारण कर सुद्ध दीक्षा अंगीकार करी. आप लोंकाशाह रे बाद पेला क्रिया सुद्ध करने वाला महा उत्तम पुरुष ज्ञानरा धणी ने प्रभावशाली क्षमारा अवतार हा. घणो प्रचार कर सैकड़ों भवि जीवा ने समकित्तरो स्वरूप ओलखायो. आपरा घणा लाडला सोमजी स्वामी ने धर्मरा द्वेषी मार नांखिया पिण आप घणी शांति रखाइ. ने धर्म ने उंचो लाया. (३) श्रीधर्मसिंहजी म.-उत्तर गुजरातरा सरवानिया गामरा रेवासी, रेवा भाइ रा पुत्र ने रंभा वाइ रा अंगजात हा. आप अष्टावधानी हा, ने दो पगां सूं ने दो हाथां तूं अर्थात् चार कलमां सूं एक साथ लिखता हा. आपरी बुद्धि धणी निर्मल ही. ३२सूत्रां रा टब्बा आप बणाया जिका आज दरियापुरी टब्बा नाम सूं समाज में मौजूदा है. आप तीसरा प्रचारक हा, क्रिया उद्धार करने शासण ने दिपायो. (४) श्री प्रा. जीवराजजी म०—आप कुंवरजी यतिरा चेला हा. घणा विद्वान् भाग्यशाली और विचारक पुरुष हा. एक बार, गर्मी री मौसम में रातरा प्यास लाग गइ, जिण सूं बड़ी वेदना हुई. जतिजी चेलारा मोह में आय ने पानी पीवण रो इशारो कर दियो ने कयो कि एडी तकलीफ हो जावे तो पानी पी लेवे तो चौविहार में टंटो नहीं लागे. आ बात सुण ने जीवराजजी म० फुरमायो के गुरु महाराज, आपने सहाय देणो तो दूर रह्यो, उल्टो म्हने कायर बनाओ हो. चेलारो मोह डुबावण वालो है. मैं तो मर जाऊं पर व्रत भांगु कोनी. रात ज्यों-त्यों पूरी करी. प्रभात होतां ही गुरुजी ने नमस्कार कर चालता रहिया ने स्वयं दीक्षा लेइने दया धर्म रो प्रचार शुरू कियो. आप रो परिवार भी घणो बढियो ने त्याग तपस्या रा जोर सूं हजारां लोगों ने धर्मरे सन्मुख किया. (५) श्री दौलतरामजी म.-कोटा संम्प्रदायरा संस्थापक हा. बडा सूत्रों रा जाण, क्रियापात्र और महा म्होटा पुरुष हा. उण जमाना में दिल्ली में दलपतराजजी श्रावक द्रव्यानुयोग रा प्रखर विद्वान् हा. मा बेटा दो जणा हा. धनमाया घर में घणी ही, पिण ब्याव कियो नहीं ने श्रावक धर्म में घणा मजबूत हा. सारो धन माताजी ने संभलाय दियो ने बादशाहरे साथ जूवे रमता रोजिना ५ रूपिया जीतता, जिण माय सूं १ रुपिया खावन सारु, ने २ रुपिया स्वमि भाई बहिनारी सहायता में देता. २ रुपिया ज्ञान खाता में लगावता. आप रा वणायोड़ा ग्रंथ, नवतत्त्व प्रश्नोत्तर, दलपतराय ना प्रश्नोत्तर, समकिलछप्पनी, नय निक्षेप प्रमाण आदि ग्रंथ आज है वे सूत्रां सूं बराबर मिलता तथा प्रमाणिक है. सुणण में एडी भी आई के महाविदेह क्षेत्र में सीमंधर स्वामीजी रे श्रीमुख सूं पहिला देवलोकरा इन्द्र निगोदरो स्वरूप सुणियो जरै उछरंग भाव सू इन्द्र पूछियो के भगवान् ऐडो निगोदरो स्वरूप समजावण वालो भरत क्षेत्र में कोई है ? भगवान् फरमायो के दिल्ली में दलपतराज श्रावक है, उणरो ज्ञान निर्मल है. इन्द्र महाराज ने सुणने घणो इचरज आयो. ब्राह्मण रो रूप वणायने श्रावकजी कने पहोचिया ने विनय सू कयो के मैं आप कने निगोद रो स्वरूप सुननो चावू हूं. श्रावक जी कयो के खुशी सूं सुणो. श्रावक जी भिन्न-भिन्न तरहसू निगोद पद सुणायो. सुणने इन्द्र महाराज तो आनन्द में मगन होय गया ने पाछो कयो के श्रावक जी, धन्य है आप रा ज्ञानने. श्रावकजी कयो के ज्ञानीरो ज्ञान तो घणो गहन है, म्हारा क्षयोपशम प्रमाणे सुनायो हूं. पछे श्रावकजी रे सामने आपरो हाथ लंबो कर ने पूछियो के श्रावकजी, म्हारो आउखो आपरा ध्यान में कितरोक जंचे है ? श्रावकजी हाथ देखने उपयोग
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